जयपुर: हिंदू कैलेंडर के अनुसार आषाढ़ माह के शुक्लपक्ष की एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है. पुराणों के अनुसार इस दिन से चार माह तक भगवान विष्णु योग निंद्रा में रहते हैं. कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान विष्णु की योग निंद्रा पूर्ण होती है. इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है. देवशयनी एकादशी इस साल जुलाई में है. इस एकादशी से विष्णु भगवान शयन को चले जाएंगे और चार महीने बाद देव उठनी एकादशी के दिन जागेंगे. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल देवशयनी एकादशी 17 जुलाई को पड़ेगी. इसलिए मांगलिक कार्य जुलाई तक ही किए जाएंगे. इसके बाद मांगलिक कार्य जैसे यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश नहीं किए जाते हैं. इन चार महीनों को चातुर्मास कहते हैं. इनमें कोई भी शुभ कार्य नहीं किए जाते हैं. इसमें आषाढ़ के 15 और कार्तिक के 15 दिन शामिल है. आषाढ़ शुक्ल एकादशी से प्रारंभ होकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक चलता है. ऐसा कहा जाता है कि चातुर्मास आरंभ होते ही भगवान विष्णु धरती का कार्य भगवान शिव को सौंपकर खुद विश्राम के लिए चले जाते हैं. इसीलिए इस दौरान शिव आराधना का भी बहुत महत्व है. सावन का महीना भी चातुर्मास में ही आता है. इसलिए इस महीने में शिव की अराधना शुभ फल देती है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि देवशयनी एकादशी इस बार 17 जुलाई को पड़ रही है. इसी दिन से चातुर्मास भी शुरू हो जाता है. इसलिए अब 17 जुलाई से करीब 4 महीनों तक मांगलिक काम नहीं होंगे. चातुर्मास के दौरान पूजा-पाठ, कथा, अनुष्ठान से सकारात्मक ऊर्जा मिलती है. चातुर्मास में भजन, कीर्तन, सत्संग, कथा, भागवत के लिए सबसे अच्छा समय माना जाता है. इस साल भगवान विष्णु 118 दिनों तक विश्राम करेंगे. भगवान विष्णु के विश्राम करने से सभी तरह के मांगलिक कार्य रुक जाते हैं. इस अवधि को चातुर्मास भी कहा जाता है. भगवान श्री नारायण की प्रिय हरिशयनी एकादशी या फिर कहें देवशयनी एकादशी से सभी मांगलिक कार्य जैसे शादी-विवाह, गृह प्रवेश, यज्ञोपवीत आदि पर अगले चार मास के लिए विराम लग जाएगा. इसी दिन से सन्यासी लोगों का चातुर्मास्य व्रत आरम्भ हो जाता है. धार्मिक दृष्टि से ये चार महीने भगवान विष्णु के निद्राकाल माने जाते हैं. चिकित्सा विज्ञान के अनुसार इस दौरान सूर्य व चंद्र का तेज पृथ्वी पर कम पहुंचता है, जल की मात्रा अधिक हो जाती है, वातावरण में अनेक जीव-जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जो अनेक रोगों का कारण बनते हैं. इसलिए साधु-संत, तपस्वी इस काल में एक ही स्थान पर रहकर तप, साधना, स्वाध्याय व प्रवचन आदि करते हैं.
देवशयनी एकादशी
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि 16 जुलाई को रात में 8:34 मिनट से एकादशी तिथि का आरंभ हो जाएगा और अगले दिन यानी 17 जुलाई को रात में 9:03 मिनट तक रहेगी. उदय तिथि में एकादशी का तिथि 17 जुलाई को होने के कारण देवशयनी एकादशी का व्रत इसी दिन रखा जाएगा. इसी के साथ 17 जुलाई से ही चातुर्मास का आरंभ भी हो जाएगा जो कि 12 नवंबर तक रहेगा.
118 दिनों तक भगवान शिव करेंगे सृष्टि का संचालन
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान विष्णु के विश्राम करने से सृष्टि का संचालन भगवान शिव करते हैं. इस दौरान सभी तरह के धार्मिक अनुष्ठान किए जाते हैं, बस विवाह समेत अन्य मांगलिक कार्य नहीं होते हैं. इस दौरान भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करना चाहिए.
चातुर्मास में इन पर्वों की रहती है धूम
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि चातुर्मास में सबसे पहले सावन का महीना आता है. सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित होता है. इस माह में भगवान शिव की अराधना करने से शुभ फल की प्राप्ति होती है. इसके बाद गणेश चतुर्थी से अनंत चतुर्दशी तक भगवान गणेश की विशेष पूजा- अर्चना की जाती है. इसके बाद भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है.
4 महीने नहीं बजेगी शहनाई
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि चतुर्मास का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. हिंदू पंचांग के अनुसार चतुर्मास आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि तक रहता है. साल 2024 में चतुर्मास 17 जुलाई से शुरू होगा. इस दिन देवशयनी एकादशी भी है. 12 नवंबर 2024 को देवोत्थान एकादशी है. कहा जाता है कि इस दिन से भगवान विष्णु विश्राम काल पूरा करने के बाद क्षीर सागर से निकल कर सृष्टि का संचालन करते हैं.
देवशयनी और देवउठनी एकादशी
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस साल 17 जुलाई को देवशयनी एकादशी और 12 नवंबर को देव उठनी एकादशी रहेगी. इसलिए चातुर्मास 118 दिनों का रहेगा. इन दिनों में भगवान विष्णु योग निद्रा में रहेंगे. पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस अवधि में सृष्टि को संभालने और कामकाज संचालन का जिम्मा भगवान भोलेनाथ के पास रहेगा. इस दौरान धार्मिक अनुष्ठान किए जा सकेंगे पर विवाह समेत मांगलिक काम नहीं होंगे.
भगवान विष्णु और शिव पूजा
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि चातुर्मास में पूजा और ध्यान करने का विशेष महत्व है. देवशयनी एकादशी से देवप्रबोधनी एकादशी तक भगवान विष्णु विश्राम करेंगे. इस दौरान शिवजी सृष्टि का संचालन करेंगे. इन दिनों में शिवजी और विष्णुजी की पूजा करनी चाहिए. चातुर्मास के दौरान भगवान विष्णु और शिवजी का अभिषेक करना चाहिए. विष्णुजी को तुलसी तो शिवजी को बिल्वपत्र चढ़ाने चाहिए. साथ ही ऊँ विष्णवे नम: और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जाप करना चाहिए. इन दिनों में भागवत कथा सुनने का विशेष महत्व है. साथ ही जरूरतमंद लोगों को धन और अनाज का दान करना चाहिए.