जयपुर: जयपुर शहर में राहगीरों का फुटपाथ पर चलना मुश्किल सा हैं. क्योंकि फुटपाथ एनक्रोचमेंट से अटे पड़े है. शहर में अस्थाई अतिक्रमणों के चलते फुटपाथ पर थड़ी ठेलों का कब्जा हैं. फुटकर व्यापारियों के लिए तय नियम कायदों से नहीं चलने पर माफिया पनपते जा रहे हैं. जो सरकारी जमीनों पर आए दिन कब्जे करने में लगे हैं. लेकिन नगर निगमों के अधिकारी चैन की बंशी बजाकर अपनी नौकरी पूरी कर रहे हैं.
जयपुर के दोनो नगर निगम जिस तरह से अस्थाई अतिक्रमण हटाने में जितनी सक्रियता दिखा रहे हैं. उसके मुताबिक तो शहर साफ-सुथरा और व्यवस्थित होना चाहिए. क्योंकि हर दिन सरकारी जमीन पर थड़ी ठेला हटवाने की दर्जनों की कार्रवाई करने वाले नगर निगमों की इतनी सक्रियता के बाद इनकी संख्या दिन रात बढती जा रही हैं. शहर के प्रमुख मार्ग-चौराहे, अन्य सार्वजनिक स्थान थड़ी और ठेला संचालकों के कब्जे में नजर आ रहे हैं. बीटू बायपास के आगे टोंक रोड हो सब्जी मंडी सहकार मार्ग. ऐसे कई मुख्य सड़क मार्ग है जहां ठेला लगाकर वेंडर्स ने ट्रेफिक जाम कर रखा हैं. शहर की मुख्य सड़कों पर सामान बेचने वाले लोडिंग टैंपो और ट्रेक्टर खड़े रहते है तो कॉलोनियों में पान-गुटखा की कैबिन बनती जा रही हैं.
कहीं डेयरी बूथ वाले ने सड़क कब्जे में कर ली तो कहीं, कालोनियों में लोगों के घरों नजदीक भी चाय की थड़ियां खुल गई हैं. अवैध अतिक्रमण करने वालों के हौंसले इस कदर भी बुंलद है कि छोटे बड़े प्रलोभन से ही उनका काम हो जाता हैं. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2016 में स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट लागू कर दिया गया. लेकिन 2019 से टाउन वेंडिंग कमेटी की निष्क्रियता के कारण वेंडर्स माफिया पनप गए हैं. वे मनमर्जी से चुने हुए स्थानों पर ठेले लगवाते हैं. वह दुकान के सामने ठेला लगाने की एवज में दुकानदार को प्रतिमाह बंदी देते हैं. आम जन के लिए यह काफी परेशानी का सबब बनता जा रहा हैं.
वैसे तो जयपुर शहर में वेंडिंग और नॉन वेंडिंग जोन तय किए गए हैं. लेकिन पथ विक्रेताओं को ठेला या थड़ी लगाने के लिए उसके अनुरूप पाबंद नहीं किया है. इससे मनचाहे स्थान पर ठेला लगाकर यातायात व्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं. शहर के प्रमुख मार्गों पर हो रहे अतिक्रमण और बेतरतीब खड़ी थडिय़ों को हटाने के लिए नगर निगम द्वारा ना तो इस बारे में कोई सख्ती बरती गई और ना ही कोई कार्रवाई की जा रही है. जबकि शहर में वेंडिंग और नॉन वेंडिंग जोन की पालना नहीं होने का खामियाजा ठेला संचालकों को उठाना पड़ रहा है. प्रत्येक फुटकर व्यवसायी को आईडी कार्ड व एक नंबर अलॉट होने से उनके लिए भी बेहतर होता है. पंजीकृत फुटकर व्यापारी तय जगह के अलावा दूसरी जगह पर व्यवसाय करता मिलता तो उन पर सख्त कार्रवाई होती.
फुटकर व्यापारियों का पंजीयन नहीं होने से अब इसके गिरोह पनप गए है और मनमर्जी की जगह पर किराया वसूल कर लोगों से ठेले लगवा रहे हैं. हाल ही में निगम ग्रेटर में अस्तित्व में आई फुटकर व्यवसाय पुनर्वास समिति के चैयरमेन अरुण शर्मा बताते है कि निगमों यह सबसे बड़ी जिम्मेदारी है. लेकिन अभी तक कमेटी को सरकार द्वारा अधिकार नहीं दिए गए. लेकिन अब कमेटी इस दिशा में कार्य करेगी. दूसरी तरफ निगम में उपमहापौर पुनित कर्णावट की माने तो निगम का कार्य कार्य फुटपाथ पर व्यवसाय करने वाले लोगों का पंजीकरण करने के साथ ही वेंडिंग और नॉन वेंडिग जोन की कडाई से पालना कराई जाना फोकस होगा.
गांवों से शहरों में लगतार रोजगार के अभाव में पलायन को रोकना भी बड़ी चुनौती हैं. इसके चलते ही छोटे बडे अस्थाई रोजगार से शहरों में इन अतिक्रमणों को बढावा मिलता हैं. हालाकि मानवीय दृष्टिकोण से लोगों के रोजगार की बात सोची जानी चाहिए. लेकिन इसके पीछे पनपने वाले गिरोहों पर भी कार्रवाई की जरूरत हैं. ताकि शहर सुव्यवस्थित रह सके और ट्रेफिक फी सिटी की परिकल्पना साकार हो सके. उम्मीद की जानी चाहिए कि नगर निगमों प्रशासन महज खानापूर्ति की बजाय पॉलिसीज को ठीक तौर पर लागू कर पाए.