जयपुरः हरियाली तीज आज मनाई जा रही है. इसे श्रावणी तीज भी कहा जाता है. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए व्रत करती हैं और भगवान शंकर व माता पार्वती की पूजा करती हैं. कुछ स्थानों पर कुंवारी कन्यारएं भी सुयोग्यी वर पाने के लिए भी तीज का व्रत करती हैं. हरियाली तीज पर महिलाएं अपनी सखियों के साथ मिलकर पेड़ पर झूला डालती है और सावन के लोकगीत गाकर इस त्यो हार की खुशियां मनाती हैं. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हरियाली तीज 7 अगस्त को मनाई जाएगी. पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 06 अगस्त को रात 07:52 मिनट पर होगी. वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 07 अगस्त को रात 10: 05 मिनट पर होगा. सनातन धर्म में उदया तिथि मान है. अतः 07 अगस्त को हरियाली तीज मनाई जाएगी. इस दिन हरे रंग का विशेष महत्व होता है इसलिए इस दिन हरी साड़ी के साथ हरी चूड़ियां भी पहनने का प्रचलन है. हरियाली तीज का व्रत करने से महिलाओं को अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इस पर्व को नाग पंचमी से दो तिथि पूर्व मनाया जाता है. हरियाली तीज के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और माता पार्वती के साथ गणेश जी और भगवान शिव की पूजा करती हैं.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि सनातन धर्म में हर त्योहार का अपना एक विशेष महत्व हैं. इन्हीं त्योहारों में से एक है हरियाली तीज है, जो देशभर में मनाई जाती हैं. हरियाली तीज को श्रावणी तीज के नाम से भी जाना जाता हैं. हरियाली तीज सावन मास का सबसे महत्वपूर्ण पर्व हैं. महिलाएं इस दिन का पूरे वर्ष इंतजार करती हैं. हरियाली तीज सौंदर्य और प्रेम का पर्व हैं. यह उत्सव भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता हैं. यह पर्व प्रकृति से जुड़ने का पर्व हैं. हरियाली तीज का जब पर्व आता है तो हर तरफ हरियाली छा जाती हैं. पेड़ पौधे उजले उजले नजर आने लगते हैं. हरियाली तीज का पर्व श्रावण मास में शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता हैं. हरियाली तीज या श्रावणी तीज, श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को कहते हैं.
ज्योतिषाचार्य डॉ अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार, सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 06 अगस्त को रात 07:52 मिनट पर होगी. वहीं, इसका समापन अगले दिन यानी 07 अगस्त को रात 10: 05 मिनट पर होगा. सनातन धर्म में उदया तिथि मान है. अतः 07 अगस्त को हरियाली तीज मनाई जाएगी. हरियाली तीज का पर्व भगवान शिव और माता पार्वती के मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. पौराणिक कथा के अनुसार, यह वह दिन है जब देवी ने शिव की तपस्या में 107 जन्म बिताने के बाद पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था. इस व्रत को रखने से स्त्री के पति को लंबी उम्र का वरदान मिलता है. ये व्रत महिलाओं के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने में भी मदद करता है. यह व्रत श्रद्धालु को मानसिक विकारों से निजात दिलाता है.
भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हिन्दू धर्म के सभी व्रतों में हरियाली तीज के व्रत को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है. इस व्रत को मुख्य रूप से पति की लंबी आयु के लिए किया जाता है. ऐसी मान्यता यह है कि तीज का दिन भगवान शिव और माँ पार्वती की उपासना करने के लिए श्रेष्ठ होता है. इस दिन शिव जी और माँ पार्वती के पूजन से सुहागिन महिलाओं को अपने पति की दीर्घायु का आशीर्वाद प्राप्त होता है. हरियाली तीज पर सुहागिन स्त्रियाँ सोलह श्रृंगार करती हैं. इस दिन महिलाओं को मायके से आने वाले वस्त्र ही धारण करने चाहिए, साथ ही मायके से आई हुई शृंगार की वस्तुओं का ही प्रयोग करना चाहिए. यह सब हरियाली तीज की परंपरा है. तीज के त्यौहार को साल में तीन बार मनाया जाता है जो इस प्रकार है: हरियाली तीज, कजरी तीज और हरतालिका तीज.
हरियाली तीज परम्पराएं
भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि सावन के माह में आने वाले त्यौहारों को नवविवाहित स्त्रियों के लिए अत्यंत विशेष माना गया है. हरियाली तीज के अवसर पर महिलाओं को ससुराल से मायके बुलाया जाता है. हरियाली तीज से एक दिन पूर्व सिंजारा मनाने की परम्परा है. इस दिन ससुराल पक्ष से नवविवाहित स्त्रियों को वस्त्र, आभूषण, श्रृंगार का सामान, मेहंदी और मिठाई आदि भेजी जाती है. इस तीज के अवसर पर मेहंदी लगाना अत्यधिक शुभ माना जाता है. महिलाएं और युवतियां अपने हाथों पर मेहंदी लगाती हैं, साथ ही हरियाली तीज पर पैरों में आलता भी लगाया जाता है. यह सुहागिन महिलाओं की सुहाग की निशानी मानी गई है. हरियाली तीज के दिन सुहागिन स्त्रियां अपनी सास के पैर छूकर उन्हें सुहागी देती हैं. अगर सास नहीं हो तो सुहागा जेठानी या किसी अन्य वृद्धा को दिया जा सकता है. इस अवसर पर महिलाएं श्रृंगार और नए वस्त्र पहनकर श्रद्धा एवं भक्तिभाव से मां पार्वती की पूजा करती हैं. हरियाली तीज के दिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं खेत या बाग में झूले झूलती हैं और लोक गीत पर नृत्य करती हैं.
पूजा विधि
कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि शिव पुराण में हरियाली तीज का वर्णन करते हुए कहा गया है कि इस दिन भगवान शिव और माँ पार्वती का पुनर्मिलन हुआ था इसलिए इस व्रत की विवाहित स्त्रियों के लिए बड़ी महिमा है. इस दिन महिलाएं महादेव और माता पार्वती के लिए व्रत एवं उनका पूजा-अर्चना करती हैं. हरियाली तीज के दिन साफ-सफाई करके घर को तोरण और मंडप से सजाएं. एक चौकी पर मिट्टी में गंगाजल मिलाकर शिवलिंग, श्री गणेश, माँ पार्वती और उनकी सखियों की प्रतिमा का निर्माण करें. सभी देवी-देवताओं की मिट्टी की प्रतिमा बनाने के उपरांत सुहाग की समस्त सामग्री को एक थाली में एकत्रित करें और माता पार्वती को अर्पित करें. माँ पार्वती के बाद भगवान शंकर को वस्त्र अर्पण करें. इसके बाद देवताओं का ध्यान करते हुए षोडशोपचार पूजन करें. अंत में हरियाली तीज की कथा सुननी या पढ़नी चाहिए. हरियाली तीज व्रत की पूजा पूरी रात चलती है. इस दौरान महिलाओं द्वारा जागरण और कीर्तन भी किये जाते हैं.
महत्व
भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हरियाली तीज को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन का प्रतीक माना गया है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, माँ पार्वती ने भगवान शंकर को अपने पति के रूप में प्राप्त करने के लिए 108 जन्मों तक कठोर तप किया था. इस कठोर तप के बाद भगवान शिव ने माता पार्वती को पत्नी के रूप में स्वीकार किया था. ऐसा भी कहा जाता है कि ये हरियाली तीज के दिन अर्थात श्रावण माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि पर हुआ था. उस समय से ही श्रावण माह की तृतीया के दिन भगवान शिव और माता पार्वती सुहागिन स्त्रियों को अपना आशीष प्रदान करते हैं. यही वजह है कि इस दिन भगवान शंकर और माता पार्वती के पूजन से सुहागिन स्त्रियों को सौभाग्यपूर्ण जीवन और उनके पतियों को लंबी आयु की प्राप्ति होती है. हरियाली तीज के दिन कुंवारी कन्याएं मनोवांछित वर की प्राप्ति के लिए व्रत करती है, वहीँ सुहागिन महिलाओं द्वारा निर्जला व्रत किया जाता है.
ऐसे मिला था देवी पार्वती को तप का फल
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि भोलेनाथ कहते हैं कि हे पार्वती! इस शुक्ल पक्ष की तृतीया को तुमने मेरी आराधना करके जो व्रत किया था. उसी के परिणाम स्वरूप हम दोनों का विवाह संभव हो सका. इस व्रत का महत्व यह है कि इस व्रत को पूर्ण निष्ठा से करने वाली प्रत्येक स्त्री को मैं मन वांछित फल देता हूं. भोलेनाथ ने पार्वती जी से कहा कि जो भी स्त्री इस व्रत को पूरी श्रद्धा और निष्ठा से करेगी उसे तुम्हारी तरह अचल सुहाग की प्राप्ति होगी. मान्यता है कि इस कथा को जो भी स्त्री पढ़ती या सुनती है वहअखंड सौभाग्यवती होती है.
हरियाली तीज व्रत कथा
भविष्यवक्ता एवं कुंडली विश्लेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हरियाली तीज उत्सव को भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था. इस कड़ी तपस्या से माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया. कथा के अनुसार माता गौरी ने पार्वती के रूप में हिमालय के घर पुनर्जन्म लिया था. माता पार्वती बचपन से ही शिव को वर के रूप में पाना चाहती थीं. इसके लिए उन्होंने कठोर तप किया. एक दिन नारद जी पहुंचे और हिमालय से कहा कि पार्वती के तप से प्रसन्न होकर भगवान विष्णु उनसे विवाह करना चाहते हैं. यह सुन हिमालय बहुत प्रसन्न हुए. दूसरी ओर नारद मुनि विष्णुजी के पास पहुंच गये और कहा कि हिमालय ने अपनी पुत्री पार्वती का विवाह आपसे कराने का निश्चय किया है. इस पर विष्णुजी ने भी सहमति दे दी. नारद इसके बाद माता पार्वती के पास पहुंच गए और बताया कि पिता हिमालय ने उनका विवाह विष्णु से तय कर दिया है. यह सुन पार्वती बहुत निराश हुईं और पिता से नजरें बचाकर सखियों के साथ एक एकांत स्थान पर चली गईं. घने और सुनसान जंगल में पहुंचकर माता पार्वती ने एक बार फिर तप शुरू किया. उन्होंने रेत से शिवलिंग का निर्माण किया और उपवास करते हुए पूजन शुरू किया. भगवान शिव इस तप से प्रसन्न हुए और मनोकामना पूरी करने का वचन दिया. इस बीच माता पार्वती के पिता पर्वतराज हिमालय भी वहां पहुंच गये. वह सत्य बात जानकर माता पार्वती की शादी भगवान शिव से कराने के लिए राजी हो गये. शिव इस कथा में बताते हैं कि बाद में विधि-विधान के साथ उनका पार्वती के साथ विवाह हुआ. शिव कहते हैं, ‘हे पार्वती! तुमने जो कठोर व्रत किया था उसी के फलस्वरूप हमारा विवाह हो सका. इस व्रत को निष्ठा से करने वाली स्त्री को मैं मनवांछित फल देता हूं.