VIDEO: जैसलमेर की रेत पर भारतीय सेना का ड्रोन अभ्यास, बढ़ी युद्ध क्षमता, बढ़ा आत्मविश्वास, देखिए ये खास रिपोर्ट

जैसलमेर : जैसलमेर की रेतली धरती पर भारतीय सेना ने रचा इतिहास भविष्य के युद्धों की तस्वीर बदलने वाली ड्रोन तकनीक और उसे मात देने वाले काउंटर-ड्रोन सिस्टम का शानदार प्रदर्शन. दक्षिणी कमान के अंतर्गत बैटल एक्स डिवीजन ने कोणार्क कोर के तत्वावधान में किया एक्सरसाइज ड्रोन अस्त्र-II.अभ्यास का मकसद था. यह परखना कि अगर भविष्य में दुश्मन ड्रोन से हमला करे, तो भारतीय सेना कितनी तेजी और मजबूती से जवाब दे सकती है.

रेगिस्तान की सुनहरी रेत पर जब एक साथ दर्जनों ड्रोन ने उड़ान भरी, तो नज़ारा किसी फिल्मी सीन से कम नहीं था. लेकिन यह सिर्फ प्रदर्शन नहीं, बल्कि भविष्य की लड़ाइयों की तैयारी थी. इस अभ्यास में अलग-अलग प्रकार के ड्रोन शामिल हुए. निगरानी के लिए हाई-एंड ड्रोन, छोटे लेकिन तेज़ आक्रामक ड्रोन और कई ड्रोन का झुंड यानी स्वार्म ड्रोन.सेना ने इन सभी के खिलाफ काउंटर-ड्रोन ऑपरेशन्स का प्रदर्शन किया.कुछ ड्रोन हवा में ही ध्वस्त कर दिए गए, कुछ को इलेक्ट्रॉनिक जैमिंग से निष्क्रिय कर दिया गया, और कुछ को सुरक्षित जमीन पर उतार लिया गया. अभ्यास का सबसे बड़ा संदेश यही था- कि भारतीय सेना अब किसी भी परिस्थिति में ड्रोन हमलों को झेलने और उन्हें नाकाम करने की क्षमता रखती है.यही वजह है कि सेना अधिकारी भी मानते हैं. आने वाले समय में ड्रोन निर्णायक भूमिका निभाएंगे, और हमारी तैयारी पूरी है.

इस अभ्यास के जरिए भारतीय सेना ने यह भी दिखाया कि वह आधुनिक तकनीक को कितनी तेजी से आत्मसात कर रही है. अब सेना केवल विदेशी उपकरणों पर निर्भर नहीं, बल्कि देश में बने सिस्टम का ही इस्तेमाल कर रही है. डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन यानी DRDO और कई निजी रक्षा कंपनियों ने मिलकर अत्याधुनिक काउंटर-ड्रोन तकनीक विकसित की है.इस तकनीक की खासियत है कि यह न केवल दुश्मन के ड्रोन को ट्रैक कर सकती है, बल्कि उसे या तो नष्ट कर देती है या निष्क्रिय कर हवा में रोक देती है. जैसलमेर का इलाका हमेशा से भारतीय सेना की तैयारियों का अहम केंद्र रहा है.यहां का भूगोल और सीमा से नजदीकी, दोनों ही इसे रणनीतिक तौर पर खास बनाते हैं.यही वजह है कि जब सेना ड्रोन युद्ध जैसे भविष्य के खतरों की तैयारी करती है, तो उसके लिए जैसलमेर की रेतीली धरती से बेहतर कोई जगह नहीं हो सकती.

अगर हम दुनिया के युद्धों पर नजर डालें तो तस्वीर साफ हो जाती है. ड्रोन ने कई जगह युद्ध का चेहरा ही बदल दिया है. नागोर्नो-काराबाख युद्ध में ड्रोन की वजह से कई टैंक और आर्टिलरी क्षणभर में ध्वस्त हो गए.रूस-यूक्रेन युद्ध तो आज ड्रोन युद्ध के रूप में ही जाना जा रहा है.भारतीय सेना ने इन उदाहरणों से सबक लिया और अब समय रहते ड्रोन युद्ध और काउंटर-ड्रोन तकनीक में महारत हासिल कर रही है.

जैसलमेर में हुए इस अभ्यास ने यह साफ कर दिया कि भारत किसी भी स्थिति में पीछे नहीं रहेगा. ड्रोन अस्त्र-II का सबसे बड़ा संदेश यह था कि भारतीय सेना अब हर चुनौती का सामना करने के लिए तैयार है.आने वाले युद्धों में तकनीक ही निर्णायक होगी, और भारत तकनीकी मोर्चे पर भी दुश्मन से कदम दर कदम आगे है.
अभ्यास का एक और अहम हिस्सा रहा- रियल टाइम बैटल स्पेस मैनेजमेंट. इसमें दिखाया गया कि कैसे एक साथ कई ड्रोन और काउंटर-ड्रोन ऑपरेशन को मैनेज किया जा सकता है. ड्रोन ऑपरेटर स्क्रीन पर दुश्मन के मूवमेंट को ट्रैक कर रहे थे, जबकि दूसरी तरफ सैनिक तुरंत कार्रवाई कर रहे थे. युद्धक्षेत्र में जहां हर सेकंड कीमती होता है, वहां इस तरह की त्वरित प्रतिक्रिया ही जीत और हार का फैसला करती है. जैसलमेर की रेत पर हुआ यह अभ्यास भारतीय सेना की युद्ध क्षमता में लगातार हो रही वृद्धि का प्रमाण है. एक्सरसाइज ड्रोन अस्त्र-II ने न केवल दुश्मन को साफ संदेश दिया है, बल्कि देश के नागरिकों को भी भरोसा दिलाया है कि हमारी सीमाएं सुरक्षित हैं. आज का भारत न केवल परंपरागत युद्ध में सक्षम है, बल्कि आधुनिक तकनीक के युद्ध में भी पूरी तरह तैयार है.

भारतीय सेना हर चुनौती का सामना करने के लिए तत्पर है. और जैसलमेर की धरती से यही संदेश गूंज रहा है. भारत की सरहदें पूरी तरह सुरक्षित हैं.