मुंबई: बंबई उच्च न्यायालय ने कहा है कि व्यक्तियों को अतिक्रमणकारियों के रूप में चिह्नित कर उन्हें विस्थापित करना कोई समाधान नहीं है और अतिक्रमण के मुद्दे को महज बुलडोजरों की तैनाती कर सुलझाने के बजाए कहीं “अधिक सुविचारित तरीके” से सुलझाया जाना चाहिए. उच्च न्यायालय ने पश्चिम रेलवे, मुंबई नगर निकाय और एमएमआरडीए से पूछा कि क्या उनके पास कोई पुनर्वास नीति है.
न्यायमूर्ति गौतम पटेल और नीला गोखले की खंडपीठ ने आठ फरवरी को मुंबई स्थित एकता वेलफेयर सोसाइटी द्वारा दायर एक याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की. याचिका में रेलवे अधिकारियों द्वारा सोसाइटी के निवासियों को जारी किए गए बेदखली और विध्वंस नोटिस को चुनौती दी गई थी. रेलवे का आरोप है कि निवासी उसकी संपत्ति का अतिक्रमण कर रहे थे. पीठ ने पश्चिम रेलवे, मुंबई महानगर क्षेत्र विकास प्राधिकरण (एमएमआरडीए) और बृहन्मुंबई महानगर पालिका (बीएमसी) से जानकारी मांगी कि क्या उनके पास कोई पुनर्वास नीति या प्रणाली है और इसके लिये पात्रता मानदंड क्या हैं.
अदालत ने कहा, “कुल मिलाकर, हम इस बात को ध्यान में रखते हैं कि इन व्यक्तियों को महज ‘अतिक्रमणकर्ता’ कह देने से समस्या का समाधान नहीं होने वाला है. यह शहर की एक गंभीर समस्या है और यह मानव विस्थापन की समस्या है. कभी-कभी विस्थापन का पैमाना कल्पना से परे होता है. अतिक्रमण की जगह पर केवल बुलडोजर तैनात करने की तुलना में इसे अधिक सुविचारित तरीके से सुलझाया जाना चाहिए. पश्चिम रेलवे के मुताबिक, सात फरवरी तक 101 अवैध ढांचों को ढहाया जा चुका है. सोर्स- भाषा