Jaisalmer News: राज्यपक्षी गोडावण के कुनबे से फिर आई बड़ी खुशखबरी, ब्रीडिंग सेंटर में आए तीन नन्हे मेहमान

जैसलमेर: राज्य पक्षी गोडावण को लेकर सरकार चिंतित है. वह गोडावण के संरक्षण को लेकर बेहद गंभीरता से काम कर रही है. राजस्थान के वन विभाग दवरा गोडावण संरक्षण की योजना रंग ला रही है. लगातार गोडावण का कुनबा अब बढ़ता ही जा रहा है जिससे अब रेगिस्तान में अब फिर से बड़ी संख्या में गोडावण देखने को मिलेंगे. राज्य पक्षी को लेकर अच्छी खबर ब्रीडिंग सेंटर से आई है. सम में स्थित ब्रीडिंग सेंटर में तीन अंडो से सफलतापूर्वक चूजा अंडे से बाहर निकल आए है. जिससे वन विभाग में खुशी का माहौल बना हुआ है.

डीएनपी डीएफ़ओ आशीष व्यास ने बताया कि गोडावण के सम स्थित ब्रीडिंग सेंटर में इस सीजन में तीन चूजे अंडे से बाहर आए है. वह विशेषज्ञों के ऑब्जर्वेशन में है और पूरी तरह स्वस्थ है. उन्होंने बताया कि इस नन्हें मेहमान को मिलाकर अब कुल 27 गोडावण हो चुके हैं. सुदासरी के जंगल से अलग अलग समय में तीन अंडे लिए गए थे. अब इन तीनो अंडो से चूजे बाहर निकले है. विशेषज्ञों की देखरेख में रखा और पालकर बड़ा किया जा रहा है. 

गोडावण के लिए वेटेनरी डॉक्टर भी मौजूद रहते हैं और उनकी ही मेहनत का नतीजा है जो देखने को मिला है. ये अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है. डेजर्ट नेशनल पार्क में बनाए गए हैचरी सेंटर में अंडों को वैज्ञानिक तरीके से सेज कर उनसे चूजे निकलवाए जा रहे हैं. ये कृत्रिम प्रजनन केन्द्र से कई मायनों में सफल साबित हो रहा है. ब्रीडिंग सेंटर के लिए लगातार फील्ड से गोडावण के अंडे उठाए जा रहे हैं. फिर सेंटर में इन अंडों को मशीनों में रखा जाता है और समय पर हेचिंग करवाकर निकलने वाले चूजों को यहीं पर तैयार किया जाता है.

प्रजनन करने वाली मादा गोडावण की संख्या बढ़ रही:
उन्होने बताया कि कुछ दिन पूर्व दो फीमेल गोडावण ने एक सफलता पूर्वक अंड्डा दिए थे जिसे वैज्ञानिको ने सफलता पूर्वक कृतिम रुप से हेचिंग की उससे भी नन्हे गोडावण का चिक बाहर निकल कर आये थे. जिससे इस सीजन में कुल पांच चिक बाहर निकले है. जैसलमेर के सम स्थित सेंटर में जी.आई.बी केपेटिव पिजनन प्रोग्राम ने एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर पार किया हैं. गोडावण के लिए जैसलमेर का डीएनपी क्षेत्र सबसे संरक्षित माना जाता है. यहां 70 के करीब क्लोजर भी बने हुए हैं. गोडावण प्रजनन के लिए तरह तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. संरक्षण में लगे विशेषज्ञों का दो दशक से यही प्रयास है कि मादा गोडावण अधिक से अधिक प्रजनन करे लेकिन अपने स्वभाव के चलते मादा गोडावण कम ही प्रजनन करती आई है. लेकिन अब धीरे धीरे परिस्थितियां अनुकूल हो रही है और प्रजनन करने वाली मादा गोडावण की संख्या बढ़ रही है.