VIDEO: थार के रेगिस्तान में जालों पर छाने लगी पीलू की बहार, मारवाड़ी मेवों के नाम से मशहूर

जैसलमेर: भीषण गर्मी के बावजूद इस बार थार में कैर, सांगरी के बाद अब जाळों पर पीलू की बहार आई हुई है. पीलू को मारवाड़ी अंगूर के रूप में भी जाना जाता है. गर्मी की तीव्रता बढ़ने के साथ ही यहां कुछ ऐसे फल उगते हैं, जो न केवल स्वादिष्ट होते हैं बल्कि अत्यधिक गर्मी से शरीर की रक्षा भी करते हैं. इन्हीं में एक फल है 'पीलू'. रंग-बिरंगे पीलू से लदे वृक्ष बरबस ही लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं.

जाळ वृक्ष बाहुल्य गांवों में रोजाना सुबह बच्चे, युवा व महिलाएं पीलू लेने के लिए जाते है. दिन में तीन से चार घंटे तक पीलू को छाबड़ी में एकत्रित किया जाता है. पीलू इकट्ठे करने के लिए जाळ के पेड़ पर चढकर काफी मशक्कत करनी पड़ती है. कमर या गले में पतली रस्सी से लोटा बांधकर एक-एक कर पीलू बिनकर लोटा भरते है. घंटों की मेहनत के बाद छाबड़ी और चरुड़ी में पीलू को भरा जाता है.

पीलू का बीज खारा होता है, लेकिन इसके उपर रस का आवरण होता है जो बहुत ही मीठा व स्वादिष्ट होता है. इन्हें एक साथ मुठी भरके खाया जाता है, क्योंकि एक एक पीलू खाने से मुंह में छाले हो जाते है. पर्यावरण कार्यकर्त्ता भेराराम भाखर बताते है कि पीलू खाने से कई रोग ठीक हो जाते है. ग्रामीण लोग पीलू सुखाकर कोकड़ बनाते है और 12 माह औषधि के रूप में रखते है. कोकड़ गर्मी, लू, हैजे व कब्ज से बचाव के लिए रामबाण औषधि है.

इस बार पीलू आवक के चलते रेडाणा, जायडू रण क्षेत्र, भाचभर, इन्द्रोई ओरण, किराडू पहाड़, भूणिया, कितनोरिया धोरों में अलसवेरे ही ग्रामीण जाळों पर पीलू एकत्रित करते नजर आते है. यह बाजार में 20 रुपए प्रति लोटा के हिसाब से बिक रहे है. बहरहाल मारवाड़ क्षेत्र में ऐसी मान्यता है कि जिस वर्ष पीलू की जोरदार उपज होती है उस वर्ष मानसून अच्छा होता है. इस वर्ष मारवाड़ में इसकी ज़बरदस्त पैदावार से स्थानीय लोगों को उम्मीद है कि इस क्षेत्र में अच्छी वर्षा होगी. इधर मानसून की चाल भी इस मान्यता को और मज़बूत कर रहा है.