मुंबई : पूर्व उपराष्ट्रपति एम. वेंकैया नायडू ने शनिवार को कानून निर्माण में विधायिका को सर्वोच्च बताते हुए कहा कि इस प्रक्रिया (कानून निर्माण) में न्यायपालिका की कोई भूमिका नहीं है. नायडू ने यहां राष्ट्रीय विधायक सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि संविधान ने कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका की भूमिकाओं को स्पष्ट रूप से परिभाषित किया है और किसी को भी 'यह नहीं सोचना चाहिए कि वे सर्वोच्च हैं और अपनी सीमाओं को नहीं लांघना चाहिए.'
अदालतें कानून नहीं बना सकती:
उन्होंने कहा कि विधायी अधिकार केवल विधायी निकायों को दिये जाते हैं. कानून संवैधानिक प्रावधान के अनुसार है या नहीं, इसका फैसला अदालतें करें. लेकिन, अदालतें कानून नहीं बना सकती हैं. न्यायपालिका कानून नहीं बना सकती, इसे ध्यान में रखना होगा. नायडू ने कहा कि विधायिका फैसला करती है, कार्यपालिका लागू करती है और अंत में यदि कोई प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो वह अदालत जा सकता है.
तीन सदस्यीय समिति का गठिन करने का दिया निर्देश:
पूर्व उपराष्ट्रपति की यह टिप्पणी शक्तियों के संवैधानिक बंटवारे को लेकर उठे विवाद के मद्देनजर आई है क्योंकि उच्चतम न्यायालय ने संसद द्वारा इस आशय का कानून बनने तक मुख्य निर्वाचन आयुक्त और निर्वाचन आयुक्तों का चयन करने के लिए तीन सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया था.
नायडू ने विधानसभाओं और संसद में बार-बार होने वाले व्यवधानों पर भी जताई नाराजगी:
उन्होंने सुझाव दिया कि राजनीतिक दल अपनी पार्टी के विधायकों के लिए एक आचार संहिता बनायें और यह सुनिश्चित करें कि विधानसभाओं और संसद में हंगामा करने, कागज फाड़ने और माइक्रोफोन को तोड़ने से बचा जाये. नायडू ने कहा कि मैं यह कहने की कोशिश नहीं कर रहा हूं कि सदन में विरोध, मतभेद और असहमति नहीं होनी चाहिए. वास्तव में विरोध, मतभेद, सहमति-असहमति, तर्क-वितर्क, वाद-विवाद और मतभेद हमारे लोकतंत्र की विशेषताएं हैं.
विरोध होना चाहिए गरिमापूर्ण और संसदीय मानदंडों के अनुसार:
उन्होंने कहा कि लेकिन विरोध गरिमापूर्ण और संसदीय मानदंडों के अनुसार होना चाहिए. हमारा व्यवहार एक-दूसरे के प्रति सम्मान पर आधारित होना चाहिए और विधानसभा में बहस और विरोध के दौरान इसे लगातार बनाए रखना चाहिए. नायडू ने कहा कि जनप्रतिनिधियों को सदन के अंदर या बाहर ऐसा कोई काम नहीं करना चाहिए जिससे संसदीय लोकतंत्र की गरिमा कम हो. सोर्स भाषा