नई दिल्ली: राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने बृहस्पतिवार को सभापति जगदीप धनखड़ को पत्र लिखकर कहा कि सदस्यों को सदन के भीतर अपनी बात रखने का संवैधानिक अधिकार है तथा कोई भी निर्देश एवं नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी को पलट नहीं सकता.
उन्होंने यह आग्रह भी किया कि वह सदन में सदन के नियमों के प्रावधानों और परंपराओं को देखें और सदन के भीतर सदस्यों के अधिकारों एवं विशेषाधिकारों की रक्षा करें.
खरगे ने पत्र में कहा कि भारत की संसद एक ऐसा मंच है जहां कार्यपालिका की जवाबदेही तय की जाती है. यह जरूरी होता है कि सरकार की नीतियों और फैसलों पर सदन के भीतर चर्चा की जाए. सरकार की नीतियों और निर्णयों तथा उनके नतीजों की आलोचना को सदन के किसी सदस्य के खिलाफ आरोप नहीं कहा जा सकता.
उसी दस्तावेज को सत्यापित करना होता है:
उन्होंने यह भी कहा कि सरकार, उसकी नीतियों और उसके प्रभावों की आलोचना को ‘परिषद की गरिमा’ से नहीं जोड़ा जा सकता. यह तय करना मुश्किल है कि संसदीय लोकतंत्र में नीतियों और उनके नतीजों की आलोचना करके जनहित की कोई सेवा नहीं होती.कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा कि भारत के संविधान का अनुबंध 105 संसद सदस्यों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है. सदन के नियम के तहत किसी सदस्य को उसी दस्तावेज को सत्यापित करना होता है जो वह सदन के पटल पर रखता है.
स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी पलट नहीं सकता:
उन्होंने कहा कि ऐसी कोई परंपरा और प्रावधान नहीं है कि सदन के भीतर दिए गए वक्तव्य में की गई बातों को सत्यापित किया जाए. सदन का कोई निर्देश या नियम अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी पलट नहीं सकता. खरगे ने यह भी कहा कि उनकी ओर से की गई किसी भी बात में कोई व्यक्तिगत आक्षेप नहीं किया गया. उन्होंने कहा कि मैं आपसे आग्रह करता हूं कि सदन के नियमों के प्रावधानों और परंपराओं को देखें और सदन के भीतर सदस्यों के अधिकारों एवं विशेषाधिकारों की रक्षा करें.
किसी भी तरह के आरोप लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती:
उल्लेखनीय है कि राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा में भाग ले रहे नेता प्रतिपक्ष खरगे ने अडाणी समूह से जुड़े मामले को लेकर कुछ आरोप लगाए थे. इसके बाद सभापति जगदीप धनखड़ ने खरगे से कहा था कि वह ऐसा आरोप नहीं लगाएं जिसे वह सत्यापित नहीं कर सकते. धनखड़ ने कहा था कि सदन में किसी को भी, किसी भी तरह के आरोप लगाने की अनुमति नहीं दी जा सकती. सोर्स-भाषा