जयपुर: मार्गशीर्ष माह 16 नवंबर से शुरू होकर 15 दिसंबर 2024 को समाप्त होगा. भागवत के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि सभी माह में मार्गशीर्ष या अगहन श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है. मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से विशेष फल की प्राप्ति होती है. हिंदू पंचांग के अनुसार चंद्रमास में नए माह का आरंभ पूर्णिमा तिथि के अनुसार होता है. हर माह पूर्णिमा तिथि के बाद अगले दिन प्रतिपदा से नए मास का आरंभ हो जाता है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर - जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि 16 नबंवर से मार्गशीर्ष मास का आरंभ होगा, जिसका समापन 15 दिसंबर 2024 को होगा. यह हिंदू वर्ष का नौंवा माह होता है. प्रत्येक चंद्रमास का नाम उसके नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है. मार्गशीर्ष माह में मृगशिरा नक्षत्र होता है इसलिए इसे मार्गशीर्ष कहा जाता है. आम बोलचाल की भाषा में इसे अगहन मास के नाम से भी जाना जाता है. इस माह में भगवान कृष्ण की उपासना करने का विशेष महत्व माना गया है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि सनातन धर्म में साल के सभी बारह महीनों को विशेष महत्व दिया गया है. प्रत्येक माह किसी न किसी देवता को समर्पित है. हिंदू धर्म में अगहन यानी मार्गशीर्ष महीना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार इसे हिंदी का 9वां महीना माना जाता है. इस माह शंख पूजा का भी विशेष महत्व बताया गया है. यह महीना शुभ कार्य करने का भी महीना है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मार्गशीर्ष माह भगवान श्री कृष्ण के लिए बहुत महत्वपूर्ण है. इस महीने भगवान कृष्ण की पूजा करने से मनुष्य जन्म और मृत्यु के बंधन से मुक्त हो जाता है.
मार्गशीर्ष तिथि
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि मार्गशीर्ष माह 16 नवंबर 2024 से शुरू होकर 15 दिसंबर 2024 तक रहेगा. इसके बाद पौष माह की शुरुआत होती है. इस वर्ष मार्गशीर्ष माह के पहले दिन वृश्चिक संक्रांति भी मनाई जाती है. इस दिन सूर्य वृश्चिक राशि में प्रवेश करेंगे.
मार्गशीर्ष माह में करें ये काम
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि यदि आपके कार्यों में कोई बाधा आ रही है तो आपको ओम दामोदराय नमः मंत्र का जाप करना चाहिए और अपने गुरु को प्रणाम करना चाहिए. इससे आपका काम बनेगा. इस माह में आपको शंख की पूजा करनी चाहिए. ऐसा करने से घर से कलह दूर होता है और शांति आती है. अपने मनोकामनाओं की पूर्ति के इस माह में प्रत्येक दिन विष्णु सहस्रनाम, भगवत गीता और गजेन्द्रमोक्ष का पाठ करें. सभी पाप भी मिट जाएंगे. मार्गशीर्ष माह में भगवान विष्णु को तुलसी का पत्र चढ़ाएं. फिर उसे प्रसाद स्वरूप ग्रहण करें. इस माह में भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और ओम नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करना चाहिए. शास्त्रों में इस महीने को भगवान श्रीकृष्ण का स्वरूप कहा गया है. इस महीने में शंख पूजन का विशेष महत्व है. साधारण शंख को श्रीकृष्ण के पंचजन्य शंख के समान समझकर उसकी पूजा करने से सभी मनोवांछित फल प्राप्त हो जाते हैं. अगहन मास में शंख की पूजा इस मंत्र से करनी चाहिए. पुराणों के अनुसार, विधि-विधान से अगहन मास में शंख की पूजा की जानी चाहिए. जिस प्रकार सभी देवी-देवताओं की पूजा की जाती है, वैसे ही शंख का भी पूजा करें. इस मास में साधारण शंख की पूजा भी पंचजन्य शंख की पूजा के समान फल देती है जो भगवान कृष्ण का अतिप्रिय है.
भागवत में बताया गया है इस महीने का महत्व
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि भागवत के अनुसार, भगवान श्रीकृष्ण ने भी कहा था कि सभी माह में मार्गशीर्ष या अगहन श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है. मार्गशीर्ष मास में श्रद्धा और भक्ति से विशेष फल की प्राप्ति होती है. इस माह में नदी स्नान और दान-पुण्य का विशेष महत्व है.
इसी माह में श्रीकृष्ण ने अर्जुन को दिया था उपदेश
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि मार्गशीर्ष मास भगवान श्रीकृष्ण को अत्यंत प्रिय है. भक्तवत्सल भगवान ने स्वयं अपनी वाणी से कहा है कि मार्गशीर्ष मास स्वयं मेरा ही स्वरूप है. इस पवित्र माह में तीर्थाटन और नदी स्नान से पापों का नाश होने के साथ मनोकामनाओं की पूर्ति होती है. मार्गशीर्ष की शुक्ल पक्ष की एकादशी को भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र के मैदान में धनुर्धारी अर्जुन को गीता का उपदेश सुनाया था. इस माह में गीता का दान भी शुभ माना जाता है. गीता के एक श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण मार्गशीर्ष मास की महिमा बताते हुए कहते हैं.
बृहत्साम तथा साम्नां गायत्री छन्दसामहम्.
मासानां मार्गशीर्षोऽहमृतूनां कुसुमाकरः
इसका अर्थ है गायन करने योग्य श्रुतियों में मैं बृहत्साम, छंदों में गायत्री तथा मास में मार्गशीर्ष और ऋतुओं में बसंत हूं. शास्त्रों में मार्गशीर्ष का महत्व बताते हुए कहा गया है कि हिन्दू पंचांग के इस पवित्र मास में गंगा, युमना जैसी पवित्र नदियों में स्नान करने से रोग, दोष और पीड़ाओं से मुक्ति मिलती है.