नई दिल्ली : भारतीय मजदूर संघ के 70 वर्ष पूर्ण होने पर दिल्ली में कार्यक्रम हुआ. इस अवसर पर इस अवसर पर संघ प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि भौतिकतावाद के कारण दुनिया कई समस्याओं का सामना कर रही है. और अब जवाब के लिए भारत की ओर देख रही है. क्योंकि पिछले 2 हजार वर्षों में पश्चिमी विचारों पर आधारित लोगों के जीवन में खुशी और संतोष लाने के सभी प्रयास विफल रहे हैं.
दुनिया में विज्ञान और आर्थिक क्षेत्र में प्रगति हुई है. लेकिन इस प्रगति ने विलासिता की चीजें ला दी हैं. और लोगों के जीवन को आसान बना दिया. लेकिन दुखों को खत्म नहीं कर सकी. शोषण बढ़ा, गरीबी बढ़ी. गरीब और अमीर के बीच की खाई दिन-ब-दिन बढ़ती ही गई. प्रथम विश्व युद्ध के बाद शांति की वकालत करने वाली कई किताबें लिखी गई.
भविष्य में फिर से युद्ध न हो, इसके लिए राष्ट्र संघ का गठन किया गया. लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध छिड़ गया. द्वितीय विश्व युद्ध के बाद संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन हुआ. लेकिन आज हम सोच रहे हैं कि क्या तीसरा विश्व युद्ध होगा. भारतीयता ही आज दुनिया के सामने मौजूद सभी समस्याओं का एकमात्र समाधान है. भारत का होने का क्या अर्थ है'?
भारतीयता नागरिकता नहीं है. बेशक, नागरिकता आवश्यक है. लेकिन, भारत का हिस्सा बनने के लिए भारत का स्वभाव होना जरूरी है. भारत का स्वभाव पूरे जीवन के बारे में सोचता है. हिंदू दर्शन में चार पुरुषार्थ हैं. मोक्ष जीवन का अंतिम लक्ष्य है. भारत का स्वभाव धर्म दृष्टि पर आधारित है. धर्म के इसी अनुशासन के कारण भारत कभी सबसे समृद्ध राष्ट्र था. और दुनिया इसे जानती है.
दुनिया भारत की ओर देखती है. इस उम्मीद में कि यह उन्हें एक नया रास्ता दिखाएंगे. हमें दुनिया को रास्ता दिखाना होगा. इसके लिए, हमें अपना राष्ट्र तैयार करना होगा. जिसकी शुरुआत खुद से और अपने परिवार से करनी होगी. यह देखें कि क्या हम अपने दैनिक जीवन में अपनी दृष्टि का पालन कर रहे हैं या नहीं. और फिर इसमें सुधार करें.
हम जो इतिहास जानते हैं वह पश्चिम की ओर से पढ़ाया जाता रहा है. मैं सुन रहा हूं कि हमारे देश के पाठ्यक्रम में कुछ बदलाव किए जा रहे हैं. उनके (पश्चिम) के लिए, भारत का कोई अस्तित्व नहीं है. यह विश्व मानचित्र पर तो दिखाई देता है. लेकिन उनके विचारों में नहीं. अगर आप किताबों में देखेंगे तो आपको चीन, जापान मिलेगा, भारत नहीं.