संसद-विधानसभाओं में आरोप-प्रत्यारोप की ‘नई परंपरा’ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं- ओम बिरला

संसद-विधानसभाओं में आरोप-प्रत्यारोप की ‘नई परंपरा’ लोकतंत्र के लिए उचित नहीं- ओम बिरला

गांधीनगर: लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने बुधवार को कहा कि संसद और विधानसभाओं में आरोप-प्रत्यारोप की ‘नई परंपरा’ देश के संवैधानिक लोकतंत्र के लिए उचित नहीं है. बिरला ने सदन में सकारात्मक चर्चा और विचार-विमर्श की जरूरत पर जोर दिया ताकि लोकतंत्र ‘जीवंत और सक्रिय’ रहे.

बिरला गुजरात विधानसभा के चुने गये विधायकों के लिए यहां आयोजित दो दिवसीय ‘ओरिएंटेशन कार्यक्रम’ की उद्घाटन बैठक को संबोधित कर रहे थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में आलोचना ‘शुद्धि यज्ञ’ की तरह है, लेकिन ‘योजनाबद्ध तरीके’ से संसद को बाधित करना और राज्यपाल के अभिभाषण में व्यवधान डालना एक ‘अच्छी परंपरा नहीं’ है. बिरला ने कहा कि मार्च तक मॉडल उपनियम तैयार करने का काम किया जा रहा है. उन्होंने कहा कि गुजरात विधानसभा में बनाए गए कानूनों से राज्य का बहुत अधिक औद्योगिक और सामाजिक विकास हुआ. बिरला ने कहा कि नव-निर्वाचित विधायकों को पिछली बहसों और चर्चाओं का अध्ययन करना चाहिए और उनसे जानकारी प्राप्त करना चाहिए.

उन्होंने सभी विधानसभाओं के विधानसभा अध्यक्षों से अपील की कि चर्चा और विचार-विमर्श का आयोजन कराएं ताकि लोकतंत्र जीवंत बना रहे. बिरला ने ‘एक देश-एक वैधानिक मंच’ की चर्चा की जिसका उद्देश्य सभी विधायिकाओं (संसद और विधानसभाएं) की सभी कार्यवाहियों को एक मंच पर लाना है. इस अवसर पर मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल ने निर्वाचित सदस्यों से विधानसभा के माहौल को बेहतर बनाने की दिशा में काम करने का आग्रह किया. उन्होंने कहा कि ‘लोकतंत्र के मंदिर’ के प्रति भी विधायकों का कर्तव्य है. सोर्स- भाषा