Nirjala Ekadashi 2023: 31 मई को होगा निर्जला एकादशी व्रत, अवश्य करें ये कार्य; जान लें मुहूर्त और महत्व

जयपुर: 31 मई को निर्जला एकादशी व्रत है. इस व्रत का बड़ा महत्व है. इस दिन व्रत करने से सालभर की एकादशी का पुण्य मिल जाता है. महाभारत काल में पांडव पुत्र भीम ने भी इस एकादशी पर व्रत किया था. इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी भी कहते हैं. इस एकादशी पर पूरे दिन पानी नहीं पिया जाता. ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह की एकादशी तिथि 30 मई को दोपहर 1:32 मिनट पर शुरू होगी और इसका समापन 31 मई को दोपहर 1:36 मिनट पर होगा. ऐसे में उदयातिथि के अनुसार निर्जला एकादशी का व्रत बुधवार 31 मई 2023 को रखा जाएगा. 

स्कंद पुराण के विष्णु खंड में एकादशी महात्म्य नाम के अध्याय में सालभर की सभी एकादशियों का महत्व बताया गया है. हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का विशेष महत्व है. एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है. यही कारण है कि एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा-अर्चना की जाती है. मान्यता है कि एकादशी व्रत रखने से शुभ फलों की प्राप्ति होती है. व्रती सभी सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष को जाता है. हर माह दो एकादशी तिथि आती हैं. एक कृष्ण पक्ष और दूसरी शुक्ल पक्ष में. मान्यता है कि इस दिन जो खुद निर्जल रहकर ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद व्यक्ति को शुद्ध पानी से भरा घड़ा दान करने से उसे जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है. निर्जला एकादशी व्रत में जल का त्याग करना होता है. इस व्रत में व्रती पानी का सेवन नहीं कर सकता है. व्रत का पारण करने के बाद ही व्रती जल का सेवन कर सकता है. 

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि निर्जला एकादशी व्रत ज्येष्ठ शुक्ल की एकादशी तिथि के दिन रखा जाता है. इस साल निर्जला एकादशी बुधवार 31 मई को पड़ रही है. पौराणिक शास्त्रों में इसे भीमसेन एकादशी, पांडव एकादशी और भीम एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. नाम से ही आभास हो रहा है कि निर्जला एकादशी व्रत निर्जल रखा जाता है. इस व्रत में जल की एक बूंद भी ग्रहण नहीं की जाती है. व्रत के पूर्ण हो जाने के बाद ही जल ग्रहण करने का विधान है. ज्येष्ठ माह में बिना जल के रहना बहुत बड़ी बात होती है. मान्यता है कि जो व्यक्ति निर्जला एकादशी व्रत को रखता है उसे सालभर में पड़ने वाली समस्त एकादशी व्रत के समान पुण्यफल प्राप्त होता है. इस व्रत करने वालों को जगत के पालनहार भगवान विष्णु जी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यह व्रत एकादशी तिथि के रखा जाता है और अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के दिन व्रत पारण विधि-विधान से किया जाता है.

अन्य व्रतों की तुलना में कठिन व्रत:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को निर्जला एकादशी का व्रत रखा जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान विष्णु को प्रसन्न करने और उनका विशेष आशीर्वाद पाने के लिए इस एकादशी का व्रत जाता है. हालांकि अन्य व्रतों के मुकाबले यह व्रत बहुत ही कठिन माना जाता है. मान्यता है कि जो भी व्यक्ति निर्जला एकादशी का व्रत रखता है उसे अन्य सभी व्रतों का पुण्य फल प्राप्त हो जाता है. इस दिन बिना कुछ खाए और बिना जल ग्रहण किए व्रत रखा जाता है. ऐसा करने से भगवान विष्णु विशेष रूप से प्रसन्न होते हैं.

निर्जला एकादशी पर तुलसी पूजन:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि तुलसी की पूजा हिंदू धर्म में काफी समय पहले से चली आ रही है. हिंदू घरों में तुलसी के पौधे की खास पूजा की जाती है. सभी एकादशी के दिन तुलसी की खास पूजा की जाती है. वहीं यदि बात निर्जला एकादशी की करें तो इस दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है इसलिए इस दिन तुलसी पूजन का काफी महत्व होता है. तुलसी को माता लक्ष्मी का प्रतीक माना जाता है. माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है वहां देवी-देवताओं का वास होता है.

ये कार्य करे अवश्य:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि निर्जला एकादशी के दिन दूध में केसर मिलाकर अभिषेक करने से भगवान विष्णु की कृपा बनी रहती है. निर्जला एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्र का पाठ करने से कुंडली के सभी दोष समाप्त होते हैं. निर्जला एकादशी के दिन भोग में भगवान विष्णु को पीली वस्तुओं का प्रयोग करने से धन की बरसात होती है. निर्जला एकादशी के दिन गीता का पाठ भगवान विष्णु की मूर्ति के समाने बठकर करने से पित्रों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. भगवान विष्णु की पूजा तुलसी के बिना पूरी नहीं होती है. इसलिए निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु को भोग में तुलसी का प्रयोग अवश्य करें.

निर्जला एकादशी मुहूर्त:- 
एकादशी तिथि प्रारम्भ- 30 मई को दोपहर 1:32 मिनट पर शुरू
एकादशी तिथि समाप्त- 31 मई को दोपहर 1:36 मिनट पर

पूजा विधि:-
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं. घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें. गवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें. भगवान विष्णु को पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें. अगर संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें. भगवान की आरती करें. भगवान को भोग लगाएं. इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाता है. भगवान विष्णु के भोग में तुलसी को जरूर शामिल करें. ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं. इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें. इस दिन भगवान का अधिक से अधिक ध्यान करें. 

व्रत विधि:- 
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि सुबह जल्दी उठकर नित्यकर्म के बाद स्नान करें और व्रत का संकल्प लें. इसके बाद भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पूरे दिन भगवान स्मरण-ध्यान व जाप करना चाहिए. पूरे दिन और एक रात व्रत रखने के बाद अगली सुबह सूर्योदय के बाद पूजा करके गरीबों, ब्रह्मणों को दान या भोजन कराना चाहिए. इसके बाद खुद भी भगवान का भोग लगाकर प्रसाद लेना चाहिए.