चार दिवसीय आपदा प्रबंधन विश्व सम्मेलन के दूसरे दिन वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने डिजास्टर मैनेजमेंट के विभिन्न पहलू पर मंथन किया

देहरादून: आपदा प्रबंधन पर विश्व स्तर  के सबसे बड़े सम्मेलनों में से एक ६वाँ विश्व आपदा प्रबंधन सम्मेलन के दूसरे दिन के पहले सत्र में  इको- डिजास्टर एवं रिस्क रिडक्शन के ऊपर बात की गई, वही दूसरे सेशन में. " राष्ट्रीय एवं वैश्विक जन स्वास्थ्य एमरजैंसी एंड डिजास्टर रिस्पांस  के ऊपर रखा गया था, जिसमें लोगों ने आपदा के समय में स्वास्थ्य सेवा के इमरजेंसी सुविधाओं को किस तरह से बहाल किया जाए पर चर्चा की. आज के  इस अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में  टेक्निकल सेशन भी रखे गए थे, जिसके अंतर्गत स्पेस बेस्ड इनफॉरमेशन फॉर डिजास्टर मैनेजमेंट,  बिल्डिंग रेसिलियंस  ऑफ  कम्युनिटीज थ्रू इकोसिस्टम बेस्ड अप्रोच,  मरीन डिजास्टर मैनेजमेंट इनलैंड वॉटर रिसोर्सेस इंपैक्ट ओन एनवायरमेंट - बिल्डिंग  इकोनामी फॉक्स जैसे मुद्दों पर मंथन किया गया.

प्रथम सत्र के अध्यक्षता डॉक्टर माधव बी कार्की (पूर्व एडवाइजर, प्रधानमंत्री नेपाल , एवं सदस्य ईपीपीसीसीएमएन नेपाल) ने की.  उन्होंने अपने संबोधन में  बढ़ते हुए तापमान पर चिंता जताई और इको- डिजास्टर एंड रिस्क रिडक्शन के माध्यम से भविष्य में होने वाले आपदाओं  को और करीब से  समझ कर उसका समाधान किया जा सकता है . वहीं पैनल डिस्कशन के  सह अध्यक्ष, डॉक्टर, एन रविशंकर (फॉर्मर चीफ सेक्रेट्री उत्तराखंड और कुलपति डीआईटी यूनिवर्सिटी देहरादून  ने अपने संबोधन में मनुष्य और मशीन का समन्वय बनाने और एक दूसरे के आवश्यकताओं और नव निर्माण के बारे में प्रकाश डाला. उन्होंने कहा आपदा के समय पर मनुष्य का मुख्य सहयोगी मशीन ही होता है.

वहीं पहले सेशन के मुख्यस्पीकर रवि सिंह सेक्रेटरी जनरल एंड सीईओ डब्ल्यूडब्ल्यूएफ इंडिया ने अपने संबोधन में कहा कि डिजास्टर मैनेजमेंट प्लान में माउंटेन रीजन और कोस्टल रीजन  के डिजास्टर के जो स्थिति होती है वह अलग-अलग होती है.  उन्होंने बताया कि किस तरह से आपदा के समय संपूर्ण इकोसिस्टम में बदलाव आता है और हम देख सकते हैं कि मानव जीवन के साथ-साथ जीव जंतु, कीट पतंगे, जलीय जीव सब इकोसिस्टम में बदलाव की वजह से डिस्टर्ब होते हैं. उन्होंने कहा हम चाहते हैं कि दुनिया में जितने भी संस्था एनवायरनमेंट के ऊपर काम कर रही है वह सब एक साथ मिलकर सामूहिक प्रयास करें और सस्टेनेबल डेवलपमेंट के बारे में बात करें और उसके लिए कोई निश्चित निष्कर्ष निकाले. उन्होंने नॉलेज और कैपेसिटी बिल्डिंग पर बात करते हुए कहा की डिजास्टर और एनवायरमेंटल इश्यू के बारे में लोगों के पास पर्याप्त जानकारी होनी चाहिए ताकि आपदा के समय किस तरह का एक्शन लेना है उसे सोच सके और उसे पर एक्शन ले ले सके.

कार्यक्रम के अन्य पैनलिस्ट डॉ मैथ्यू वेस्टोबी (  एसोसिएट प्रोफेसर फिजिकल ज्योग्राफी,  स्कूल ऑफ़ जियोग्राफी, अर्थ एंड एनवायरमेंटल साइंस , फैकल्टी ऑफ़ साइंस एंड इंजीनियरिंग,  यूनिवर्सिटी का प्लाइमाउथ, यूके  ने अपने संबोधन में  कहां  की हाई एल्टीट्यूड और माउंटेन रीजन में हमारा जीवन और प्रकृति  दोनों एक साथ रहता है,  हमें इनके बीच बैलेंस बनाकर पूरे इकोसिस्टम को सस्टेनेबल रखना चाहिए.  उन्होंने केदारनाथ त्रासदी, अलकनंदा नदी में आई बाढ़ की वजह से बदलाव  की बात कही, उन्होंने कहा हिमालयन रीजन  से निकलने वाली नदियों में अब काफी बदलाव आ चुका है और जब-जब आपदा या फ्लैश फ्लड आती है तो इन नदियों  में कुछ न कुछ बदलाव आ जाता है जो भविष्य के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है.  उन्होंने हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट के बारे में भी बात करी और कहां की हाइड्रो पावर  प्रोजेक्ट से कई बार इकोसिस्टम बनता भी है और बिगड़ता भी है. 

अन्य पैनलिस्टों में शामिल डॉक्टर प्रिया नारायण ( सीनियर मैनेजर, अर्बन डेवलपमेंट, डब्ल्यू आर आई, इंडिया)  ने अपने संबोधन में इंपैक्ट आफ क्लाइमेट चेंज इन इंडिया के ऊपर बात कही और कहा कि  पर्यावरण में बदलाव किसी खास राज्य की बात नहीं है यह सब अब पूरे भारत के जलवायु परिवर्तन में दिख रहा है.  उन्होंने "कावाकी पहल"  के ऊपर बात कही जो केरल में चलाया जा रहा है जहां पर पर्यावरण को संतुलन रखने के लिए कई ऐसे अभियान चलाए गए हैं जिसमें पहाड़, मैदान और तटीय क्षेत्रों  के बीच सामंजस्य बनाए रखने की  कोशिश की जा रही है.

पैनलिस्ट डॉ. हामान उनुसा (यूनिट हेड फॉर स्टडीज एंड प्रोस्पेक्शन, जी ई एफ ऑपरेशनल फोकल प्वाइंट, कैमरन)  ने अपने संबोधन में कहा कि क्लाइमेट चेंज और डिजास्टर  का असर कृषि भूमि पर सबसे अधिक हो रहा है और अब यह कृषि भूमि का मुद्दा  दुनिया के लिए चिंता का विषय बन चुका है.  उन्होंने अपने सुझाव में नदियों के किनारे बांस लगाकर मिट्टी  के कटाव को रोकने की बात कही और उन्होंने कहा कि बांस के माध्यम से हम नदियों के किनारे उसके  फ्लो  को नियंत्रित कर सकते हैं और वहीं पर मिट्टी  को  भी हम नदियों में बहने से रोक सकते हैं.  उन्होंने आगे कहा कि बांस एक समूह में उगता है और छोटे-छोटे बांध के रूप में नदियों के किनारो पर  उग जाता है. बांस  को लगाने से लोगों के आर्थिक में भी मदद मिलेगी क्योंकि बांस के बहुत सारे ऐसे उत्पाद बनाए जाते हैं जिससे लोग अपने लिए इस्तेमाल करते हैं. 

वहीं पैनलिस्ट श्री कृतिमान अवस्थी ( सीनियर एडवाइजर और टीम लीडर वेटलैंड मैनेजमेंट बायोडायवर्सिटी एंड क्लाइमेट प्रोटेक्शन,  इंडो-जर्मन बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम, GIZ इंडिया ने अपने संबोधन में इंडो जर्मन बायोडायवर्सिटी प्रोग्राम के बारे में बात की और कहा कीपंचायत स्तर पर भी लोगों को कैपेसिटी बिल्डिंग और ट्रेनिंग की जरूरत है, जो आपदा के खतरे को कम कर सकता है जब भी आपदा आएगी तो.  लोगों की कैपेसिटी बिल्डिंग और ट्रेनिंग आपके इकोसिस्टम को बनाए रखने में सहयोग करेगा और जब भी आपदा आएगी तब लोग  खुद को संभाल पाएंगे की बात कही.  ,