वाशिंगटनः अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल के दौरान शीर्ष अधिकारी रहीं लिसा कर्टिस ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका की आधिकारिक राजकीय यात्रा भारत-अमेरिका साझेदारी की मजबूती और लचीलेपन को दर्शाती है. सेंटर फॉर ए न्यू अमेरिकन सिक्योरिटी (सीएनएएस) थिंक टैंक में हिंद-प्रशांत सुरक्षा कार्यक्रम की सीनियर फेलो और निदेशक कर्टिस ने मंगलवार को कहा कि यह यात्रा इस बात को भी रेखांकित करती है कि बाइडन प्रशासन क्षेत्र में चीन के उदय को चुनौती देने में नई दिल्ली की भूमिका को कितना महत्व देता है.
उन्होंने कहा, भारतीय प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की इस सप्ताह व्हाइट हाउस की यात्रा अमेरिका-भारत साझेदारी की ताकत और लचीलेपन को प्रदर्शित करेगी. साथ ही यह यात्रा बताएगी कि क्षेत्र में चीन के उदय को चुनौती देने में बाइडन प्रशासन भारत की भूमिका को कितना महत्व देता है. कर्टिस ने 2017 से 2020 तक दक्षिण एशिया के लिए ट्रम्प प्रशासन के प्रमुख रणनीतिकार के रूप में कार्य किया.
मोदी 21 से 24 जून तक अमेरिका दौरे परः
प्रधानमंत्री मोदी, अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रथम महिला जिल बाइडन के निमंत्रण पर 21 से 24 जून तक अमेरिका की यात्रा पर हैं. इस यात्रा में 22 जून को अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र में प्रधानमंत्री का संबोधन भी शामिल है. कर्टिस ने कहा कि रक्षा मोर्चे पर वाशिंगटन, भारत के साथ जेट इंजनों के सह-उत्पादन के लिए एक सौदे की संभवत: घोषणा करेगा जो कि एक महत्वपूर्ण पहल है. यह सुरक्षा साझेदारी में विश्वास का निर्माण करेगी और भारत की रक्षा उत्पादन क्षमताओं में बदलाव का प्रतीक होगी.
उन्होंने कहा कि भारत आखिरकार अमेरिकी निर्माता जनरल एटॉमिक्स से उन्नत एमक्यू-9बी सशस्त्र ड्रोन खरीदने के लिए एक समझौते पर हस्ताक्षर कर सकता है. कर्टिस ने कहा कि एमक्यू-9बी चीन के खिलाफ भारत की रक्षा प्रणाली को मजबूती प्रदान करेगा और उसे अपनी विवादित सीमा पर चीनी सैनिकों की गतिविधियों की निगरानी करने तथा हिंद महासागर में चीनी समुद्री गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अपनी नौसैनिक निगरानी क्षमताओं में सुधार करने में मदद करेगा.
अधिकारियों को हिंद-प्रशांत पर ध्यान देना चाहिए- कर्टिस
मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन के महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों (आईसीईटी) पर पहल को आगे बढ़ाने की भी उम्मीद है, जिसे कृत्रिम मेधा (एआई), क्वांटम कंप्यूटिंग और उन्नत वायरलेस संचार में सहयोग बढ़ाने और रक्षा नवाचार तथा सह-उत्पादन को उत्प्रेरित करने के लिए एक साल पहले शुरू किया गया था. कर्टिस ने कहा कि यह उच्च तकनीक सहयोग चीन के साथ प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा करने और क्षेत्र में प्रतिरोध में योगदान देने की दोनों देशों की क्षमता को बढ़ाएगा.
उन्होंने कहा, चीन के साथ बढ़ती प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में बाइडन प्रशासन का रूस को लेकर भारत के साथ मतभेदों को दरकिनार करने का रवैया समझ में आता है. उन्होंने कहा, अमेरिका को भारत के समक्ष यह शर्त नहीं रखनी चाहिए कि वह रूस के साथ साझेदारी को कम करे, बल्कि अमेरिकी अधिकारियों को यूक्रेन पर रूस के आक्रमण और हिंद-प्रशांत में क्या होता है, इसके बीच संबंध पर ध्यान देना चाहिए.
कर्टिस ने कहा, यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की भारत द्वारा निंदा नहीं किए जाने से वैश्विक स्तर पर क्षेत्रीय संप्रभुता की अवधारणा कमजोर होती है, जिसका चीन के साथ भारत की विवादित सीमाओं पर सीधा असर पड़ता है. ज्ञात हो कि भारत ने यूक्रेन पर हमले के लिए रूस की आलोचना नहीं की है. रूसी आक्रामकता की निंदा करने के लिए संयुक्त राष्ट्र के मंचों पर लाए गए अलग-अलग प्रस्तावों पर वह मतदान से भी दूर रहा है. कर्टिस ने कहा कि राष्ट्रपति बाइडन निजी तौर पर धार्मिक अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के मुद्दे उठा सकते हैं लेकिन इस मुद्दे को वह तूल नहीं देंगे. सोर्स भाषा