जयपुर: केन्द्र सरकार की ओर से हाल ही जारी रिपोर्ट में राजस्थान दुग्ध और ऊन उत्पादन में पूरे देश में अव्वल रहा है. राजस्थान ने दुग्ध उत्पादन के मामले में उत्तर प्रदेश को पीछे छोड़ दिया है. दुग्ध उत्पादन में बढ़ोतरी में राजस्थान कोऑपरेटिव डेयरी फैडरेशन का भी खास योगदान रहा है.
केंद्रीय पशुपालन मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने हाल ही विभागीय वार्षिक प्रकाशन "बुनियादी पशुपालन सांख्यिकी 2022" जारी की है. इस रिपोर्ट में सामने आया है कि राजस्थान 15. 5 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन और 45.91 प्रतिशत ऊन उत्पादन के साथ पूरे देश में पहले स्थान पर रहा है. पशुपालन विभाग के सचिव कृष्ण कुणाल ने बताया कि प्रदेश में मुख्यमंत्री दुग्ध उत्पादक सम्बल योजना के तहत दुग्ध उत्पादकों को अनुदान दिया जा रहा है. यह अनुदान 5 रुपए प्रति लीटर की दर से दिया जाता है. इन प्रयासों से राजस्थान दुग्ध उत्पादन में पहले स्थान पर पहुंचने में सफल रहा है. योजना के तहत मिलने वाले अनुदान की वजह से राज्य में दुग्ध उत्पादन में वृद्धि के साथ पशुपालकों की आय में भी वृद्धि के साधन विकसित हुए हैं.
दुग्ध उत्पादन में किसकी कितनी हिस्सेदारी:-
- वर्ष 2021-22 में देश में कुल दुग्ध उत्पादन 221.06 मिलियन टन हुआ
- पिछले वर्ष की तुलना में 5.29 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज हुई
- दुग्ध उत्पादन में राजस्थान की 15.05 फीसदी हिस्सेदारी
- उत्तर प्रदेश (14.93 %), मध्य प्रदेश (8.06% ), गुजरात (7.56 %)
- आंध्र प्रदेश (6.97 %) प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ हैं टॉप 5 राज्य
- वर्ष 2021-22 में कुल ऊन उत्पादन 33.13 हजार टन रहा
- ऊन उत्पादन में राजस्थान(45.91 %), जम्मू एवं कश्मीर (23.19%)
- गुजरात (6.12 %), महाराष्ट्र (4.78 %), व हिमाचल प्रदेश (4.33 %) शामिल
प्रदेश में बढ़ते दुग्ध उत्पादन में राजस्थान कोऑपरेटिव डेयरी फैडरेशन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका रही है. फेडरेशन की प्रशासक और प्रबंध संचालक सुषमा अरोड़ा ने बताया कि आरसीडीएफ ने 10 जनवरी 2023 को एक दिन में 52 लाख लीटर से अधिक दूध संकलित कर रिकॉर्ड बनाया था. वर्ष 1977 में आरसीडीएफ की स्थापना के बाद पहली बार एक दिन में सर्वाधिक दूध संकलित किया गया. गुजरात एवं कर्नाटक डेयरियों के बाद दुग्ध संकलन में RCDF तीसरे स्थान पर आता है. राज्य में उच्च गुणवत्ता युक्त दुग्ध संकलन के लिए लगातार प्रयास किए जा रहे हैं. दुग्ध उत्पादन व संकलन के साथ ही ऊन उत्पादन में राज्य आगे बढ़ रहा है. देशी ऊन न केवल पश्मीना ऊन का एक बेहतर विकल्प साबित हो सकती है, बल्कि भेड़ पालकों के लिए आय का मुख्य स्रोत भी हो सकती है. देशी ऊन गर्म कपडे,कार्पेट एवं पैकेजिंग सामग्री एवं बिल्डिंग सामग्री के साथ बायो फ़र्टिलाइज़र के रूप में भी काम में ली जाती है.