जयपुर: रियल एस्टेट रेग्युलेटरी ऑथोरिटी राजस्थान के फरमान से जयपुर विकास प्राधिकरण सहित प्रदेश भर के निकाय दुविधा में है. इस दुविधा से निकलने के लिए जेडीए ने तो राज्य सरकार को पत्र लिखकर मामले में दखल देने की मांग भी कर दी है. रियल एस्टेट रेग्युलेटरी ऑथॉरिटी (रेरा) राजस्थान के फरमान से जेडीए सहित प्रदेश भर के निकाय भारी दुविधा में हैं. इन निकायों को आशंका है कि इस फरमान से प्रशासन शहरों के संग अभियान की गति मंद पड़ सकती है. साथ ही यह डर भी सता रहा है कि इस फरमान की अनदेखी से कहीं ऑथोरिटी की तरफ से कोई उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हो जाए. दरअसल ऑथोरिटी ने 27 सितंबर 2021 को निर्देश जारी किए थे . इनकी पालना नहीं होने पर रियल एस्टेट रेग्युलेटरी ऑथोरिटी ने एक बार निर्देश जारी कर प्रदेश भर के निकायों को ताकीद किया है. आपको बताते हैं कि रेरा राजस्थान के इस फरमान के मायने क्या हैं-
रेरा राजस्थान के निर्देशों के मायने:
-प्रदेश में रेरा कानून 1 मई 2017 को लागू किया गया थ
-रेरा राजस्थान के निर्देशों के मुताबिक
-1 मई 2017 जब रेरा कानून प्रदेश में लागू हुआ था
-उससे पहले किसी योजना में एक भी भूखंड का पट्टा जारी हो गया था
-अथवा 60% या से अधिक भूखंडों का आवंटियों कब्जा मिल चुका था
-अथवा 50% से अधिक विकास शुल्क निकाय में जमा किया जा चुका था
-अथवा जिन योजनाओं में विकास कार्य पूरे किए जा चुके थे
-और उनका पूर्णता प्रमाण पत्र जारी किया जा चुका था अथवा प्रक्रियाधीन था
-ऐसी सभी योजनाओं के लिए रेरा में रजिस्ट्रेशन जरूरी नहीं है
-रेरा राजस्थान की ओर से 14 मार्च 2023 को जारी निर्देशों के मुताबिक
-सभी निकायों को योजना के ले आउट प्लान की मंजूरी के समय शर्त लगानी होगी
-पट्टे जारी करन से पहले योजना को रेरा में रजिस्टर्ड कराने की शर्त लगानी होगी
-सभी निकाय प्लॉटेट योजना में पट्टा जारी करने से पहले यह रजिस्ट्रेशन सुनिश्चित करेंगे
-ऐसा नहीं करने पर रेरा संबंधित निकाय को ही प्रमोटर मानकर कार्रवाई करेगा
-निकाय के खिलाफ जुर्माना लगाने की या अन्य दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी
रेरा राजस्थान की ओर से जारी इन निर्देशों का स्पष्ट संकेत है कि चाहे कोई योजना किसी गृह निर्माण सहकारी समिति ने काटी हो या विकास समिति की ओर से पेश रिकॉर्ड पर किसी निकाय ने उसका नियमन किया हो. उस योजना के रेरा में रजिस्ट्रेशन कराने या करवाने की जिम्मेदारी तो संबंधित निकाय की ही होगी. ऐसा नहीं किया गया तो रेरा कानून के तहत निकाय के खिलाफ जुर्माना या अन्य दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी. इन निर्देशों से जेडीए सहित प्रदेश भर के अन्य निकाय भी सकते में हैं. जेडीए ने नगरीय विकास विभाग को पत्र लिखकर मामले में दखल देने की मांग की है. आपको बताते हैं कि जेडीए ने किस आधार पर राज्य सरकार के सामने अपना पक्ष रखा है.
जेडीए ने सरकार के सामने यूं रखा अपना पक्ष:
-प्रशासन शहरों के संग अभियान में कॉलोनियों के नियमन के लिए राज्य सरकार ने नई कट ऑफ डेट निर्धारित की थी
-अवैध कॉलोनियों के नियमन के लिए कट ऑफ डेट 17.6.99 से बढ़ाकर 31.12.21 कर दी गई है
-इन कॉलोनियों के नियमन के लिए विकास समिति की ओर से ही प्रस्तुत रिकॉर्ड मान्य किया गया है
-जबकि इन मामलों में गृह निर्माण सहकारी समितियों के रिकॉर्ड को विधि मान्य नहीं माना गया है
-राज्य सरकार के इन निर्देशों के मुताबिक विकास समिति के आवेदन पर जेडीए कार्यवाही करता है
-जिनमें भले ही सहकारी समितियों ने भूखंड आवंटित किया हो
-अथवा निजी खातेदार ने अवैध रूप से कॉलोनी काट दी हो
-इन सभी मामलों में विकास समिति के आवेदन पर जेडीए नियमन की कार्यवाही करता है
-ऐसे मामलो में जेडीए सुओ मोटा कृषि भूमि के अकृषि उपयोग पर भू रूपांतरण की कार्यवाही करता है
-इनमें ना तो कोई गृह निर्माण सहकारी समिति और नहीं कोई विकास समिति रेरा में रजिस्ट्रेशन कराने के लिए इच्छुक होती है
-ऐसे में अगर रेरा के निदेशों की पालना में जेडीए इन योजनाओं का रजिस्ट्रेशन कराता है तो
-जेडीए पर रेरा कानून के तहत समय पर योजना पूरे करने के साथ विकास कार्य पूरा करने की जिम्मेदारी आ जाएगी
-साथ ही रेरा कानून के विभिन्न प्रावधानों की पालना करनी होगी
-जबकि जिन मामलों में विकास शुल्क जमा कराने का प्रावधान है
-उन मामलों में जमा विकास शुल्क के अनुसार कॉलोनी में विकास कार्य करवाया जाता है
-जबकि 31.12.21 तक बसी कॉलोनियों के मामले में बाहरी व आंतरिक विकास शुल्क की छूट दी गई
-तो ऐसे में रेरा के निर्देशों की पालना करना संभव नहीं होगा
-पालना नहीं की तो रेरा जेडीए के खिलाफ जुर्माने या अन्य दंडात्मक कार्रवाई कर सकता है