नई दिल्ली: सरकार ने बृहस्पतिवार को संसद में कहा कि मौजूदा नीति के तहत न्यायपालिका में आरक्षण का प्रावधान नहीं है, लेकिन न्यायाधीशों, खास कर कॉलेजियम सदस्यों से कहा गया है कि न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिए अपनी सिफारिशें करते समय वे उन वर्गों को ध्यान में रखें जिनका पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है.
विधि एवं न्याय मंत्री किरेन रीजीजू ने प्रश्नकाल के दौरान पूरक सवालों के जवाब में यह जानकारी दी. द्रविड़ मुनेत्र कषगम सदस्य तिरुचि शिवा ने सवाल किया था कि क्या सरकार न्यायाधीशों की नियुक्ति में आरक्षण नीति लाने की संभावना पर विचार करेगी.
श्रेणियों के सदस्यों को शामिल करने का ध्यान रखें:
रीजीजू ने कहा कि मौजूदा नीति और प्रावधान के अनुसार, भारतीय न्यायपालिका में कोई आरक्षण नहीं है. हालांकि, मैंने पहले ही सभी माननीय न्यायाधीशों, विशेष रूप से कॉलेजियम सदस्यों को याद दिलाया है कि नामों की सिफारिश करते समय वे न्यायपालिका में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं करने वाले पिछड़े समुदायों, महिलाओं और अन्य श्रेणियों के सदस्यों को शामिल करने का ध्यान रखें. गुजरात की अदालतों में लंबित मामलों से जुड़े एक अलग प्रश्न का उत्तर देते हुए कानून राज्य मंत्री एस पी सिंह बघेल ने कहा कि राज्य में लगभग 14,47,459 मामले लंबित हैं. सोर्स-भाषा