जयपुर: पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा. हिंदू धर्म में दीपावली का त्योहार बहुत उत्साह और जोश के साथ मनाया जाता है. कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि पर दीपावली का त्योहार मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कार्तिक अमावस्या तिथि पर भगवान श्री राम 14 वर्षों का वनवास काटकर और लंका पर विजय करने के बाद अयोध्या लौटे थे. जिसकी खुशी में सारे अयोध्यावासी इस दिन पूरे नगर को अपने राजा प्रभु राम के स्वागत में दीप जलाकर उत्सव मनाया था. इसी कारण से तब से ये परंपरा चली आ रही है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर - जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा. इस बार दीपावली महापर्व की शुरुआत 29 अक्टूबर को धनतेरस से होगी.
30 अक्टूबर को हनुमान जयंती और छोटी दीपावली या रूप चौदस 31 अक्टूबर और दीपावली 1 नवंबर 2024, अन्नकूट व गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 और भैयादूज 3 नवंबर 2024 के साथ ही इस महापर्व का सामापन हो जाएगा. पहला पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी को धनाध्यक्ष कुबेर के पूजन से शुरू होकर मृत्यु के देवता यमराज के लिए दीपदान तक चलेगा. दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजा का विशेष महत्व भी होता है. इस दिन शाम और रात के समय शुभ मुहूर्त में मां लक्ष्मी, भगवान गणेश और माता सरस्वती की पूजा की जाती है. धनतेरस दीपावली का पहला दिन माना जाता है. इसके बाद नरक चतुर्दशी फिर दीपावली, गोवर्धन पूजा और आखिरी में भैयादूज का त्योहार मनाया जाता है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि दीपावली पर्व का कर्मकाल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या पर प्रदोष काल ( शाम के समय ) में बताया गया है. धर्म सिंधु ग्रंथ के अनुसार यदि अमावस्या प्रदोष काल में दो दिन रहती है तो दूसरे दिन सूर्योदय से शाम तक अमावस्या के दौरान प्रदोष काल में दीपोत्सव मनाने के साथ ही लक्ष्मी पूजन भी किया जा सकता है. इस बार अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर 3:53 बजे से शुरू होकर 1 नवंबर की शाम 6:17 तक रहेगी. ऐसे में अमावस्या की तिथि के दौरान दो दिन प्रदोष काल रहेगा. सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बाद एक घड़ी से अधिक अमावस्या होने पर यह पर्व मनाया जा सकता है. 1 नवंबर को सूर्यास्त शाम 5:40 बजे होगा. इसके बाद 37 मिनट तक अमावस्या रहेगी. दीपावली के बाद कार्तिक शुक्ल प्रतिपदा से नया साल शुरू होता है. व्यापारियों में पुष्य नक्षत्र और धनतेरस से नए बही-खाते लेकर कारोबारी नया साल शुरू करने की परंपरा भी रही है. दीपावली से ही जैन समाज का महावीर निर्वाण संवत भी शुरू होता है.
धर्म सिंधु
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि धार्मिक ग्रंथ धर्म सिंधु में पुरुषार्थ चिंतामणि में गाइड लाइन बनाई गई है. इसके अनुसार अमावस्या के निर्धारण के लिए पहले दिन प्रदोष की व्याप्ति हो और दूसरे दिन तीन प्रहर से अधिक समय तक अमावस्या हो (चाहे दूसरे दिन प्रदोष व्याप्त न हो) तो पूर्व दिन की अमावस्या (प्रदोष व्यापिनी और निशिथ व्यापिनी अमावस्या) की अपेक्षा से प्रतिपदा की वृद्धि हो तो लक्ष्मी पूजन आदि भी दूसरे दिन करना चाहिए. इस निर्णय के अनुसार चूंकि अधिकतर पंचांग में 1 नवंबर को अमावस्या 03 प्रहर से अधिक समय तक है और अन्य दृश्य पंचांगों में भी इस तिथि की प्रदोष में व्याप्ति है. इसलिए इसी दिन लक्ष्मी पूजन और दीपावली शास्त्र सम्मत है. इसे और स्पष्ट करते हुए धर्म सिन्धु में कहा गया है कि दूसरे दिन अमावस्या भले ही प्रदोष में न हो लेकिन अमावस्या साढ़े तीन प्रहर से अधिक हो तो दूसरे दिन ही लक्ष्मी पूजन सही है अर्थात् गौण प्रदोष काल में भी दूसरे दिन अमावस्या हो तो दीपावली दूसरे दिन ही शास्त्र सम्मत है
निर्णय सिंधु
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि निर्णय सिंधु प्रथम परिच्छेद के पृष्ठ संख्या 26 पर निर्देश है कि जब तिथि दो दिन कर्मकाल में विद्यमान हो तो निर्णय युग्मानुसार करें. इस हेतु अमावस्या प्रतिपदा का योग शुभ माना गया है अर्थात अमावस्या को प्रतिपदा युता ग्रहण करना महाफलदायी होता है. निर्णय सिंधु के तृतीय परिच्छेद के पृष्ठ संख्या 300 पर लेख है कि यदि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श न करे तो दूसरे दिन लक्ष्मी पूजन करना चाहिए. इसमें यह अर्थ भी अंतर निहित है कि अमावस्या दोनों दिन प्रदोष को स्पर्श करें तो लक्ष्मी पूजन दूसरे दिन करना चाहिए.
अमावस्या दो दिन तक, लेकिन 1 नवंबर को दीपावली
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस बार अमावस्या 31 अक्टूबर को दोपहर 3:53 बजे से शुरू होकर 1 नवंबर की शाम 6:17 तक रहेगी. ऐसे में अमावस्या की तिथि के दौरान दो दिन प्रदोष काल रहेगा. सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त के बाद एक घड़ी से अधिक अमावस्या होने पर यह पर्व मनाया जा सकता है. 1 नवंबर को सूर्यास्त शाम 5:40 बजे होगा. इसके बाद 37 मिनट तक अमावस्या रहेगी. ग्रंथों में इस बात का जिक्र है कि जिस दिन प्रदोष काल यानी सूर्यास्त के वक्त अमावस्या हो तब लक्ष्मी पूजन किया जाना चाहिए. इस बात का ध्यान रखते हुए दीपावली 1 नवंबर को ही मनाएं.
सूर्य और चंद्रमा एक साथ एक ही राशि एवं अंश में रहेंगे
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि दीपावली के दिन सूर्य और चंद्रमा एक साथ एक ही राशि एवं अंश में रहते हैं. जो पिछले कई सालों से चला रहा है. इस बार 1 नवंबर की अगर कुंडली देखी जाए तो सूर्य व चंद्रमा इसी दिन एक ही राशि और एक ही अंश में रहेंगे. शुक्रवार 1 नवंबर को प्रदोष काल में सूर्य और चंद्रमा का तुला राशि में समान अंश पर संयोग शाम 6:17 पर बन रहा है. इस दिन सूर्य 15 डिग्री और चंद्रमा 15 डिग्री पर रहेंगे. इसके चलते इसी दिन दीपावली पर्व इस दिन शास्त्र सम्मत है.
छह दिनों का दीपोत्सव
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पांच दिनों का दीपावली महापर्व इस वर्ष छह दिनों का होगा. इस बार दीपावली महापर्व की शुरुआत 29 अक्टूबर को धनतेरस से होगी. 30 अक्टूबर को हनुमान जयंती होगी. छोटी दीपावली या रूप चौदस 31 अक्टूबर को होगी. और दीपावली 1 नवंबर 2024, अन्नकूट व गोवर्धन पूजा 2 नवंबर 2024 और भैयादूज 3 नवंबर 2024 के साथ ही इस महापर्व का सामापन हो जाएगा.
मंगलवार 29 अक्टूबर 2024, :- धनतेरस (धन-त्रयोदशी) धनतेरस के निमित्त सायंकाल यम-दीपदान,
बुधवार 30 अक्टूबर 2024 :- नरक व रूप चतुर्दशी के निमित्त सायं दीपदान , श्री हनुमान जयंती
गुरुवार 31 अक्टूबर 2024 :- नरक व रूप चतुर्दशी, प्रभात स्नान, अभ्यंग स्नान
शुक्रवार 01 नवम्बर 2024 :- दीपावली, श्रीमहालक्ष्मी पूजन, देव-पितृ अमावस्या
शनिवार 02 नवम्बर 2024 :- अन्नकूट, गोवर्धन पूजा
रविवार 03 नवम्बर 2024 :- भैया दोज (भाई-दूज)
29 अक्टूबर को धनतेरस
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि धनतेरस जिसे धन त्रयोदशी और धन्वंतरि जयंती भी कहते हैं पांच दिवसीय दीपावली का पहला दिन होता है. धनतेरस के दिन से दीपावली का त्योहार प्रारंभ हो जाता है. मान्यता है इस तिथि पर आयुर्वेद के जनक भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन से अमृत कलश लेकर प्रगट हो हुए थे. इसी कारण से हर वर्ष धनतेरस पर बर्तन खरीदने की परंपरा निभाई जाती है.
त्रयोदशी तिथि प्रारम्भ -29 अक्टूबर सुबह 10:32 बजे से
त्रयोदशी तिथि समाप्त – 30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे तक
31 अक्टूबर को रूप चतुर्दशी
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि नरक चतुर्दशी कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को मनाया जाता है. नरक चतुर्दशी को कई और नामों से भी मनाया जाता है जैसे- नरक चौदस, रूप चौदस और रूप चतुर्दशी आदि. दीपावली से पहले मनाए जाने के कारण इसे छोटी दीपावली भी कहा जाता है. इस दिन मृत्यु के देवता यमराज की पूजा होती है. घर के कोनों में दीपक जलाकर अकाल मृत्यु से मुक्ति की कामना की जाती है.
चतुर्दशी तिथि प्रारम्भ -30 अक्टूबर दोपहर 01:16 बजे से
चतुर्दशी तिथि समाप्त – 31 अक्टूबर दोपहर 03:53 बजे तक
1 नवंबर को दीपावली
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि दीपावली पर घरों को रोशनी से सजाया जाता है. दीपावली की शाम को शुभ मुहूर्त में माता लक्ष्मी, भगवान गणेश, मां सरस्वती और धन के देवता कुबेर की पूजा-आराधना होती है. मान्यता है दीपावली की रात माता लक्ष्मी पृथ्वी पर आती हैं और घर-घर जाकर ये देखती हैं किसका घर साफ है और किसके यहां पर विधिविधान से पूजा हो रही है. माता लक्ष्मी वहीं पर अपनी कृपा बरसाती हैं.
कार्तिक अमावस्या तिथि प्रारम्भ - 31 अक्टूबर को दोपहर 3:53 बजे से
कार्तिक अमावस्या तिथि समाप्ति - 1 नवंबर की शाम 6:17 तक
1 नवंबर को लक्ष्मी पूजा मुहूर्त
प्रदोष काल ( लग्न ) - शाम 05:40 - रात 08:16 तक
वृषभ काल ( लग्न ) - शाम 06:31 - रात 08:28 तक
सिंह काल ( लग्न ) - रात 01:01 - रात 03:17 तक
2 नवंबर को गोवर्धन पूजा
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि गोवर्धन पूजा को अन्नकूट भी किया जाता है. इस त्योहार में भगवान कृष्ण के साथ गोवर्धन पर्वत और गायों की पूजा का विधान है. इसी दिन भगवान कृष्ण को 56 भोग बनाकर लगाया जाता है.
3 नवंबर को भाईदूज
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि भाई दूज पांच दिवसीय दीपावली पर्व का आखिरी दिन का त्योहार होता है. भाई दूज कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को मनाया जाता है. इस दिन बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगाकर उनकी लंबी आयु और सुख-समृद्धि की मनोकामनाएं मांगती हैं. इस त्योहार को भाई दूज या भैया दूज, भाई टीका, यम द्वितीया, भ्रातृ द्वितीया कई नामों से जाना जाता है.