जयपुरः 1st इंडिया न्यूज़ के सीईओ और मैनेजिंग एडिटर पवन अरोड़ा ने ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा का KeyNote by Pawan Arora के तहत SUPER EXCLUSIVE INTERVIEW लिया. जिसमें सटीक सवालों का पंडित राजकुमार शर्मा ने जवाब दिया.
2008 से अध्यापन, लेकिन बचपन से ब्रह्म ऋषि का आशीर्वाद!
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि 'मूलत: टोंक जिले की पीपलू तहसील में बगड़ी गांव के मूल निवासी हैं. हमारे कुल में पंडित रामकुमार शर्मा जी जो कि हमारे दादाजी के पिताजी के भाई थे. वो एक बहुत विलक्षण ब्रह्म ऋषि थे, उनका देवी के साथ तारतम्य था. बाल्यावस्था से ही उनकी कृपा का आभास मुझे होता था, हमारे पिताजी बीसलपुर परियोजना में सेवारत थे. देवली में हम रहे, आदर्श विद्या मंदिर देवली में हमने अध्ययन किया. उसके बाद पिताजी का स्थानांतरण हो गया, उसके बाद हम 3 वर्ष गांव में पढ़े. उसके बाद टोंक में हमारी पूरी शिक्षा दीक्षा हुई. जम्मू से बीएड किया और RPSC की परीक्षा पास कर सरकारी नौकरी में आए. मैं सरकारी सेवा में अध्यापक हूं, 2008 में मेरा चयन हो गया था. तब से अब तक में अध्यापन कार्य कर रहा हूं.
कचिदा बाबा: जिनके पास सिंह, सर्प और सिद्धियां थीं!
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि मैं ये मानता हूं कि दिख रहा है जो सामने ये केलव दृश्य मात्र है. पटकथा लिखी हुई है, मनुष्य तो केवल पात्र है, इस रंगमंच पर हम सिर्फ अभिनय कर रहे हैं. हमारे पात्र पहले से निर्धारित है कर दिए गए हैं, कब कौन कहां किससे मिलेगा ? किसका किसके जीवन से क्या योगदान होगा ?, ये सब जन्म जन्मांतर की व्यवस्थाओं के कारण पूर्व निर्धारित हैं. गुरु-शिष्य परंपरा के कारण हमारे जो ब्रह्म ऋषि की कृपा से मुझे बाल्य अवस्था से ही आध्यात्म के प्रति रूचि रहती थी. उनकी कृपा का आभास मुझे होता था, स्थापित ज्योतिषाचार्य जो हमारे आसपास हुआ करते थे. उनसे प्रश्न करने तर्क-वितर्क करना, संतुष्ट ना होने पर अन्यत्र की तलाश के दौरान हमे बताया कि एक संत हैं. जो जंगल में बैठते हैं, उनके चारों ओर सिंह बैठे रहते हैं, हम उनकी खोज में गए. जब प्रथम बार उनके पास गए तो उन्होंने हमें हमारा नाम लेकर पुकारा कि आओ राजकुमार. लेकिन तर्क बुद्धि हमारी थी, जब तक आपके अंदर तर्क बुद्धि रहती है तब तक समर्पण बुद्धि का अभाव रहता है. उन्होंने कहा कि राजकुमार आज रात्रि विश्राम आपको यहीं करना है. उनके आसपास रहने वाले लोगों ने कहा कि आप बड़े सौभाग्यशाली हैं कि गुरुदेव आपको अपने साथ रात्रि विश्राम करवा रहे. उस समय हमारी तर्क बुद्धि के कारण हमें लगा कि अक्सर संत महात्माओं के इर्द-गिर्द कुछ ऐसे लोग होते हैं. जो उनकी महिमामंडन करने के लिए छोटी से छोटी जो बात होती है, उसको बड़ा प्रस्तुत करते हैं.
गुरुदेव की भविष्यवाणी पर नहीं था भरोसा, लेकिन फिर...
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि मैं जब सुबह उठा तो उन्होंने कहा कि पंडित जी आप ऐसा करो ज्योतिष कार्यालय खोल लो. मुझे पहली बार लगा कि इन्होंने मेरे मन की बात पढ़ ली है, जबकि ज्योतिष की कोई गणना मुझे आती नहीं थी. मैंने कहा गुरुजी मुझे ज्योतिष गणना आती नहीं है. उससे पहले मैं जिन ज्योतिषाचार्यों से मिला था, जिनके पास कमरा भर के पुस्तकें थीं. वो कंठस्थ याद थीं, वो बताते थे कि अमुख पुस्तक के अमुख पृष्ठ संख्या पर ये लिखा है. मुझे लगा इतना अध्ययन तो मैं कर नहीं पाऊंगा. तो उन्होंने कहा कि ऐसा करिए पंडित जी आप फोन पर ज्योतिष करिए. कोई आपसे प्रश्न करे तो आप उससे मिलिए मत केवल फोन पर बताइए. और जैसे ही कोई प्रश्न करता है तो आप मुझे फोन करिए मैं आपको बता दूंगा और आप आगे बता दिजिएगा. मेरा मन बड़ा प्रफुल्लित हो गया कि ये तो बड़े आश्चर्य की बात है कि अपने को बिल्कुल पकी-पकाई खिचड़ी मिल रही. यजमान अपने को फोन करेगा गुरुजी से पूछना है और उधर बता देना है, उस समय हम छात्र राजनीति करते थे. हम बड़ी प्रसन्नता के साथ गए, लेकिन 15 दिवस में कोई पूछने आया ही नहीं.
संस्कृत पढ़ा... सफलता खुद चली आई!
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि ये अध्ययन किया है हमारा विषय ही संस्कृत था. हमने 10th, 12th टॉप किया, 1st, 2nd, 3rd ईयर टॉप किया. बीएड में सर्वाधिक अंक लाए, RPSC में अच्छे अंक लाकर सीधा नौकरी लगे बिना पढ़े. ईश्वर की कृपा से जो हम पढ़ते थे क्वालिटी टाइम पढ़ते थे, 3 घंटे पढ़ते थे 13 घंटे नहीं पढ़ते थे. लेकिन हमें ईश्वरीय कृपा अनुभव होती थी, हमें इस कृपा का आभास प्रारंभ से होता था.
बगलामुखी को डाकन क्यों बना दिया?
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि एक साधारण सा चद्दर लगाकर सदगुरु आश्रम की स्थापना अक्टूबर 2020 में टोंक में की थी. एक साधारण सी जगह पर, हमारे ननिहाल पक्ष की भूमि है, वहां एक सिद्दनाथ जी महाराज की समाधि है. तो वहां सदगुरु आश्रम की स्थापना की, इस बीच उत्तम स्वामी जी महाराज का सानिध्य मुझे मिला. तो उनके निर्देशानुसार आश्रम की स्थापना हमने की, अब वहां जब हम गए आश्रम का अर्थ रखा हमने. जहां सभी को समान रूप से आश्रम में आश्रय मिले, ना किसी जाति का भेद, ना किसी लिंग का भेद', ना किसी पद का भेद, ना किसी प्रतिष्ठा का भेद. फिर रही बात बगलामुखी की, हमने देखा हमारे गुरुदेव कहा करते थे कि जितने लोग आप देख रहे हैं. या मुझे देख या सुन रहे हैं, इनमें से 90 फीसदी लोग धर्म से डरे हुए लोग हैं. पति की गुप्त मनोकामना, पत्नी को पता नहीं है, पत्नी की गुप्त कामना पति को पता नहीं है. हमने सकंल्प लिया कि हमें नवाचार करना है, पिछले 4 सालों में जितने अनुष्ठान हमने कराए. आज इन 4 सालों में बाबा ने हमें निमित्त बनाकर अनुष्ठान करवाए. कोई एक भी व्यक्ति आपको ऐसा नहीं मिल सकता जो मेरी अमुख कामना की सिद्धि के लिए निष्काम अनुष्ठान किए. हम अनुष्ठान किसी के लिए नहीं करते, हम अनुष्ठान करते हैं भगवती के लिए और गुरुजी के लिए. बगलामुखी के लिए लोगों ने इतनी भ्रांति फैलाई हुई है, मारण, मोहन, उच्चाटन, वसीकरण. किसी के यहां हम पूजा करने गए, तो उसने गंगाजल का टैंकर मंगवा लिया गया, वहां लिख दिया गया प्रवेश निषेध. हमारा प्रथम ध्यान उस पर गया, हमने यजमान से कहा कि सबसे पहले इसे हटाइए ये बगलामुखी की पूजा है. लोगों ने इस तरह का माहौल बना दिया कि लोगों ने बगलामुखी माता को ही डाकन बना दिया. पुत्र कुपुत्र हो सकता है, मां कभी कुमाता नहीं हो सकती, पूरे विश्व में इसका कोई तोड़ नहीं है.
धर्म का असली उद्देश्य क्या है?
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि धर्म के माध्यम से हम आत्म जागरण कर सकें, आत्म मूल्यांकन की प्रकिया हर व्यक्ति को परमात्मा ने कुछ ना कुछ यूनिक देकर के भेजा है. हमारा उदेश्य है कि सनातन संस्कृति के उन वास्तविक मूल्यों को पहुंचाएं. जिससे हर व्यक्ति धर्म के माध्यम से आत्म मूल्याकंन करे, कोई व्यक्ति अच्छा गायक हो सकता है. कोई अच्छा लेखक हो सकता है, कोई अच्छा वादन कर सकता है. लेकिन लता मंगेशकर ने अपना आत्म मूल्यांकन किया, उसने पाया कि मेरा कंठ है, परमात्मा ने मुझे देकर के भेजा है. वो चाहती तो प्रोफेसर बनकर भी जीवन व्यतीत कर सकती थीं. लेकिन उसने सबसे पहले आत्म मूल्यांकन किया. उसके बाद एक पाठ्यक्रम है, उसे फॉलो करना, अगर आप चिकित्सक बनना चाहते हैं तो फिजिक्स, केमिस्ट्री और बॉयो पढ़नी पड़ेगी, आप हिंदी-संस्कृत से डॉक्टर नहीं बन सकते. अच्छे से अच्छे क्रिकेटर्स से रियाज करवा लों कुछ भी करवा लो. खरबों रुपए खर्च कर लो चाह कर भी सचिन तेंदुलकर नहीं बना सकते. इसीलिए अध्यात्म के माध्यम से आत्म जागरण करें. जो संशय से भय से दूर करे. जो डराए वो धर्म नहीं हो सकता, हम चाहते हैं कि ये रूपरेखा लोगों तक जानी चाहिए. धर्म का उद्देश्य आत्म जागरण के लिए करना, खुद से प्रेम करने के लिए करना है. हमारे जो कर्म हैं, उन कर्मों को कुशलता से दक्षता से करके शिखर तक पहुंचें.
समस्याओं से घबराएं नहीं! शास्त्रों में हैं सारे उत्तर
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि सुर मन मुनि जन की यह है रीति, स्वार्थ बिन करे ना कोई प्रीती बिना स्वार्थ के कोई ईस्वर से प्रेम नहीं करता, शास्त्र बड़ा विज्ञान है. मानव जीवन में आने वाली परेशानियों का उल्लेख हमारे शास्त्रों के ज्योतिष के वेदों में लिखा हुआ है. उस मार्ग का हमें अनुसरण करना चाहिए, निश्चित रूप से हमें सफलता मिलती है. उनसे हमें छुटकारा भी प्राप्त होता है और हमारी जो समस्याएं है उनका समाधान होकर के एक मुख्यधारा से जुडकर के अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करते हैं.
50 रुपए का पंचांग NASA से आगे है! ज्योतिषाचार्य का दावा
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि हमारा ज्योतिष विज्ञान परा विज्ञान है, ज्योतिष के बड़े-बड़े विश्वविद्यालय खुले हुए हैं. आज हमारा 50 रुपए का पंचाग है, अभी जो वायुयान दुर्घटना हुई है, उस पंचाग में लिखा हुआ था. अमुख समय पर ये होने वाला है, आज से 50 साल बाद सूर्यग्रहण कब होगा ? हमारे 50 रुपए के पंचाग में लिखा हुआ है, जिसके लिए नासा को करोड़ों अरबों रुपए खर्च करने पड़ रहे हैं. ये जितनी विधाएं, टैरो कार्ड, निमर्लोजी जो भी हैं, ये सारी विधाएं ईश्वर की कृपा पर आधारित हैं.
ऋषियों की तपस्या से निकले मुहूर्त!
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि हमारे शास्त्रों में जो मुर्हत है, हमने यहां आने से पहले भी मुर्हत देखा था. ये बहुत शास्त्रीय परंपरा है, राजकुमार शर्मा अगर कोई बात कह रहा है. तो वो ऑथेंटिक नहीं है, हमारे शास्त्र प्रमाण है, जिस तरह से देश हमारे शास्त्रों के हिसाब से चलता है. ये जो संस्कृति शास्त्रों से चलती है, वेदों से चलती हैं. हमारे ऋषियों, मुनियों ने तपवस्वियों ने कई लगातार असंख्य वर्षों के अनुभव के बाद शास्त्र निर्माण किए हैं. शास्त्रों में जो लिखा गया है वो सत्य है, इसलिए कोई भी ज्योतिचार्य हो, चाहे मैं हूं या अन्य कोई भी व्यक्ति हो. अगर हम शास्त्र विरुद्ध बात करते हैं तो आपको हमारा खंडन करना है. आपको महिमामंडन किसका करना है, शास्त्र का ही करना है क्योकिं हम शास्त्र से हैं, शास्त्र हमसे नहीं हैं.
प्रेत-योगिनी या परमात्मा? ज्योतिष में पराशक्तियों का सच
क्योंकि जिस तरह से गुरु कृपा से हम बताते हैं, उसके लिए लोग कहते हैं. लोग कहते हैं कि बगलामुखी को सिद्ध कर लिया, अपने प्रशाचिन को सिद्ध कर लिया. मैं ये मानता हूं, आज जितने ज्योतिषाचार्य या जितने लोग या जन सामान्य लोग हैं. कोई व्यक्ति अपनी धर्म पत्नी को सिद्ध नहीं कर सकता, तो फिर उस परमात्मा को कैसे सिद्ध कर सकते हैं ? उस परमात्मा की कृपा प्राप्त की जा सकती है, उस परमात्मा को कोई सिद्ध नहीं कर सकता. उसको पाने का केवल एक सूत्र है, प्रबल प्रेम के पाले पड़कर, प्रभु को नियम बदलते देखा है. अपना मान भले घट जाए पर, भक्त का मान ना घटते देखा, जब लोगों को बड़ा वैज्ञानिक देखने को मिलता है. तो उसको मानते नहीं हैं, कहीं ना कहीं आरोप लगाते हैं, ऐसी कोई शक्ति नहीं है. परमात्मा को केवल निश्चल प्रेम से प्राप्त किया जा सकता है.
नाम, जन्मतिथि सब बता देते हैं! कैसे?
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि ये आपको चमत्कार लगता है, क्योंकि आपने अभी तक इस क्षेत्र में प्रवेश नहीं किया. जैसे किसी बहुमंजिला इमारत के बाहर प्रवेश करते हैं. जब तक कोई व्यक्ति लिफ्ट के अंदर प्रवेश नहीं करता, तब तक उसे लिफ्ट के बारे में पता नहीं होता. जब तक किसी चीज का अनुभव नहीं होगा तब तक आपको यही लगेगा. ये केवल शुद्ध कृपा का उदाहरण है, हमारी सांस्कृतिक जागृति का पुनर्जागरण है. जो शास्वत मूल्य है, उन्हे जनमानस तक पहुंचा रहे हैं. धर्म वो है जो व्यक्ति को भय मुक्त करे, आडंबरों से, पाखंडों से अंधविश्वासों से मुक्त करके कर्तव्य कर्मों को ईमानदारी से करने की प्रेरणा प्रदान करे, वो धर्म है.
मैं तो यंत्र हूं, जो गुरुदेव चलाएं वहीं जाता हूं!
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि जब हमारे गुरुदेव ने हमसे कहा कि बेटा मैं तो ना तंत्र जानता हूं, ना मंत्र जानता हूं. मैं केवल इतना सा जानता हूं, अपने गुरु और अपने इष्ट पर खुदको समर्पित कर दो और कुछ मत मानो. आप अगर नष्ट हो जाओगे तो भी तेरा साथ नहीं छोडूंगा, सब कुछ परमात्मा पर छोड़ दो. जैसा-जैसा वो हमें संकेत करते रहते हैं, वैसा-वैसा हम करते रहते हैं. मुझे कई लोगों ने बोला, हम लाइव कर देते हैं, हम ये कर देते हैं. लेकिन मुझे अभी तक इस चीज का आदेश नहीं मिला, जब गुरुजी का संकेत मिलता है. तभी हम आगे की प्रक्रिया करते हैं, हम बिना संकेत के चाहे प्रधानमंत्री बैठे हों हम नहीं करते. हम तो उनके यंत्र हैं जब उनको चलाना है तो चलाते हैं, नहीं चलाना तो नहीं चलाइए.
राजनीति में धर्म चाहिए, धर्म में राजनीति नहीं!
जबाव- नहीं राजनीति में धर्म होना चाहिए, धर्म में राजनीति नहीं होनी चाहिए. हमारे पास जो भी व्यक्ति आता है, आश्रम का मतलब समान रूप से आश्रय मिले. ना कोई जाति का भेद, ना कोई लिंग का भेद, ना कोई पद का भेद, ना कोई प्रतिष्ठा का भेद. जो भी व्यक्ति आता है, उनको हम जो हैं ये प्रयास करते हैं. जो अपने उत्तरदायित्व का निर्वहन करके राष्ट निर्माण में योगदान दें. हां आपने राजनेताओं की बात की, जो सक्षम लोग हैं जैसे ब्यूरोक्रेट्स हैं, उद्योग जगत के लोग हैं. जिनको परमात्मा ने सामर्थ दिया है, तो हम चाहते हैं कि इस विधा के माध्यम से हम उनको प्रोत्साहित कर सकें. उनके सामर्थ्य का उपयोग आप जनकल्याण में करिए, परमार्थिक कार्यों में करिए, हमारा कोई लक्ष्य नहीं है. आप ऐसे कार्य करिए, जिससे आपके कुल पर पूरा विश्व गौरवान्वित हो सके, हमारे राष्ट्र को गौरव महसूस हो. तो इस सत्ता लक्ष्मी संसाधन एश्वर्य का उपयोग हम सबको मिलकर के इदम् राष्ट्राय स्वाहा.
मां का आदेश मिल गया है! बड़ा आयोजन जल्द
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि आज हम आपस में परिचर्चा कर रहे हैं क्योंकि आज उस परा शक्ति का हमें संकेत मिला है. हम तो उनके सेवक हैं, उनका जैसा आदेश मिलता है वैसा हम करते हैं. हमारी सारी योजनाएं, संकल्पनाएं मां के चरणों में समर्पित हैं.
तंत्र-मंत्र में क्यों उलझते हैं लोग?
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि एक बात ये समझिए कि उलझता नहीं सुलझता है, एक उदाहरण आपको बताता हूं. पहले क्या होता था कि जब कोई परेशान व्यक्ति किसी संत के पास जाता था अपनी समस्या को वहां रखकर निवेदन करता था. निवेदन करने के बाद संत क्या कहते थे कि बेटा ऐसा करना, सुंदरकांड के पाठ कर लेना. और हनुमानजी को चोला चढ़ा देना, चोला चढ़ाया और उसकी समस्या का समाधान हो जाता था. पहली बार उसकी समस्या का समाधान हुआ तो वहां चोला चढ़ाने से नहीं हुआ. वो संत के आभा मंडल से उसके शक्तिपार से हो गया, लेकिन उस संत ने क्या किया उसको परमात्मा से जोड़ा. निर्मल बाबा की तरह कचौरी से नहीं जोड़ा कि वो कृपा वहीं पतासी पर रुकी हुई है. ये निर्मल बाबा जैसे जो लोग कह रहे हैं कि पतासी पर कृपा रुकी हुई है, आपने पतासी नहीं खाई. वो लोग निंदनीय हैं, उन लोगों का हमें बहिष्कार करना चाहिए. अगर कोई विद्वान, कोई पंडित हमें शास्त्रों में, वेदों में, ग्रंथों में बताया गया कोई मार्ग बता रहा है. कि आप सुंदरकांड का पाठ करिए, हनुमान बाहुक का पाठ करिए तो शास्त्रों में पहले से ही प्रमाणित है. वो बता वही रहा है जो शास्त्र प्रमाण हैं, शास्त्रों के अनुसार जो लोग कार्य कर रहे हैं वो वंदनीय हैं. और शास्त्र विरुद्ध जो कार्य कर रहे हैं वो निंदनीय है, उनका हमें निश्चित रूप से विरोध करना चाहिए.
अनुष्ठानों से ही मिलती है सफलता!
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि निश्चित रूप से करना चाहिए, शास्त्रों में, ग्रंथों में हमारे जो अनुष्ठान किए जा रहे हैं. इन अनुष्ठानों का प्रतिफल मिलता है, आज मोबाइल के माध्यम से अमेरिका में बैठे हुए व्यक्ति से बात कर रहे हैं. विज्ञान ने केवल ब्रह्मांडीय तरंगों को पकड़कर नेटवर्किंग करके ही इसका आविष्कार किया है. तो हमारा तो पराविज्ञान है, जिस पराविज्ञान ने बता दिया कि कंचन कोई है, सुरेश कोई है. अगर वेद मंत्रों का विधि पूर्वक विद्वान ब्राह्मणों के माध्यम से शास्त्र सम्मत मर्यादा का पालन करते हुए सात्विक विधि से हम करें तो उसके निश्चित रूप से परिणाम सुखद होते हैं, सफल होते हैं और सार्थक होते हैं.
वेदों से बदल सकती है किस्मत? सच या भ्रम?
ज्योतिषाचार्य पंडित राजकुमार शर्मा ने बताया कि जो भी शुभ-अशुभ हमारे द्वारा इस जन्म में, जन्म जन्मांतर में किया है वो हमें भोगना ही पड़ेगा. वेदों, शास्त्रों, ग्रंथों में बताए गए उपायों से हम होने वाली नकारात्मकता की तीव्रता को कम कर सकते हैं. एक हजार रुपए की क्षति होनी है तो इन वेदोक्त, शास्त्रोक्त मार्ग का अनुसरण करने पर 100 रुपए पर रह जाएगी. 100 रुपए का लाभ होना है और वेदोक्त, शास्त्रोक्त मार्ग का अनुसरण करने से विद्वान ब्राह्मणों'
'विद्वान व्यक्तियों के माध्यम से अनुष्ठानिक पद्धित करने से 100 रुपए का लाभ एक लाख रुपए के लाभ में बदल जाएगा. लेकिन सबसे बड़ी समस्या क्या है कि हमारे पास दूरी का आंकलन करने का पैरामीटर है किलोमीटर. वस्त्र का मापन करने के लिए हमारे पास मीटर है, जल का मापन करने के लिए हमारे पास पैरामीटर है लीटर. लेकिन आध्यात्मिक व्यवस्थाओं से होने वाले लाभ-हानि का आंकलन करने का सामर्थ्य हमारी भौतिक बुद्धि में नहीं है. इनसे निश्चित रूप से लाभ होता है, लेकिन जैसे गीता में लिखा है कि भगवान श्री कृष्ण ने जब विराट स्वरूप के दर्शन दिए. तो अर्जुन को कहा कि 'दिव्यं ददामि ते चक्षुः' तुम इन सामान्य नेत्रों से मेरे उस विराट स्वरूप के दर्शन नहीं कर सकते. उसके लिए तुम्हे दिव्य दृष्टि प्रदान करनी पड़ेगी, वेदों में, शास्त्रों में मैं कितना ही मंत्र का जप कर लूं. मेरे चश्मे का नंबर बढ़ेगा, कम नहीं होगा, जैसे यहां वातानुकूलित वातावरण है. AC लगाकर आपने यहां के वातावरण को अपने अनुसार ढाल लिया. लेकिन बाहर के वातावरण में परिवर्तन नहीं कर सकते. उसी तरह से वेदों में, शास्त्रों में, ग्रंथों में ऋषियों की कृपा से हम बहुत बड़ी हानि से सूली की जो सजा है वो सूल पर टल जाती है.
कर्तव्य कर्म करें, ईमानदारी से कर्तव्य कर्म करें, भयभीत ना हों. आडंबरों और पाखंडों से दूर होकर एक तो कर्तव्य और एक अधिकार. अधिकार अगर हमारे कर्तव्य कर्मों का शास्त्रोक्त रीति-नीति से कर्तव्य कैसे करें ? पिता का कर्तव्य क्या है हमारे शास्त्रों में लिखा है, पत्नी का क्या दायित्व है शास्त्रों में लिखा हुआ है. देखिए हमारी कितनी परम पवित्र संस्कृति है कि आज भी जब हमारी माताएं बहने पूजा-अर्चना करती हैं. तो बदले में मांगती हैं कि मां हे-ईश्वर मैं सुहागिन जानी चाहती हूं, मतलब, मेरे पति से पहले मेरी मृत्यु होनी चाहिए. यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' हमारी संस्कृति में प्रारंभ से ही महिलाओं को मुखिया माना है. आडंबरों से मुक्त होकर कर्तव्य कर्म करें 'कर्म ही पूजा है भाग्य की परिभाषा है. हमारे द्वारा पूर्व जन्म में किए गए कर्मों का परिणाम ही भाग्य है अर्थात कर्म ही भाग्य है.