राजस्थान विधानसभा में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन का आज दूसरा दिन, दिग्गजों का संसदीय व्यवस्था को लेकर महामंथन रहेगा जारी

जयपुर: राजस्थान विधानसभा में पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन का आज दूसरा दिन है. दिग्गजों का संसदीय व्यवस्था को लेकर महामंथन जारी रहेगा. देशभर के विधानसभा अध्यक्ष सम्मेलन में भाग ले रहे हैं. 

वहीं इससे पहले भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में बुधवार को राजस्थान विधानसभा में विधायिका के कार्यों में न्यायपालिका के हस्तक्षेप का मुद्दा छाया रहा. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, स्पीकर डॉ सीपी जोशी, राज्यसभा उप सभापति हरिवंश सहित सभी नेताओं ने न्यायपालिका के हस्तक्षेप की बात कही.

विधानसभा में बुधवार को पीठासीन अधिकारियों के 83 वें सम्मेलन की उद्घाटन सत्र के साथ शुरुआत हुई. उद्घाटन सत्र में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ लोकसभा स्पीकर, ओम बिरला, सीएम अशोक गहलोत, स्पीकर सीपी जोशी, राज्य सभा के उपसभापति हरिवंश नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया सहित 21 राज्यों के विधानसभा स्पीकर, 6 विधान परिषदों के चेयरमैन और 12 डिप्टी स्पीकर सहित प्रदेश सरकार के मंत्री और विधायक भी मौजूद रहे. धनकड ने कहा कि विधायिका के बनाए कानून को कोई संस्था अमान्य करती है तो यह प्रजातंत्र के लिए ठीक नहीं है. उन्होनें कहा कि संविधान के मूल्यों को दृष्टिगत रखते हुए हमें इसका रास्ता ढूंढना होगा. वहीं लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि न्यायालय को भी मर्यादा का पालन करना चाहिए. संविधान में उनको भी अधिकार दिए गए हैं. उनका उपयोग करना चाहिए. इस दौरान धनकड़ ने केशवानंद भारती केस का भी जिक्र करते हुए कहा कि इसमें न्यायपालिका ने तय किया कि विधायिका संविधान में संशोधन तो कर सकती है. लेकिन उसकी मूल भावना में बदलाव नहीं होना चाहिए.

ससंद से पारित कानून को सुप्रीम कोर्ट से निरस्त करने पर सवाल उठाए:
धनकड़ ने कहा कि विधायिका से बेहतर कोई संस्था नहीं है, जो कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका में सामान्जस्य बैठा सके. लेकिन अपनी शक्तियों का संतुलन बनाने में भी करें हमारे सदनों के अध्यक्ष यह चाहते हैं. उपराष्ट्रपति धनखड़ ने ससंद से पारित कानून को सुप्रीम कोर्ट से निरस्त करने पर सवाल उठाए. धनखड़ ने कहा कि क्या भारत के संविधान में नया थियेटर है जो कहेगा कि ससंद ने जो कानून बनाया उस पर हमारी मोहर लगेगी तभी कानून होगा. 1973 में एक बहुत गलत परंपरा चालू हुई. केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने बेसिक स्ट्रक्चर का आइडिया दिया कि ससंद संविधान संशोधन कर सकती है लेकिन इसके बेसिक स्ट्रक्चर को नहीं, कोर्ट को सम्मान के साथ कहना चाहता हूं इसे मैं सहमत नहीं. 

न्यायपालिका को भी संविधान की मर्यादा का पालन करना चाहिए:
धनखड़ ने कहा जब मैंने राज्यसभा के सभाापति का चार्ज लिया तब मैंने कहा था न तो कार्यपालिका काननू को देख सकती है न कोर्ट हस्तक्षेप कर सकती है. धनखड़ ने कहा 2015 में ज्यूडिशिलयल अकाउंटेबिलिटी कानून सर्वसममति से पारित हुआ. 16 अक्टूबर 2015 को सुप्रीम कोर्ट ने इसे निरस्त कर दिया. दुनिया में ऐसा कहीं नहीं हुआ है. वहीं लोकसभा स्पीकर ओम बिरला ने कहा की इस सम्मेलन के जरिए विधान मंडलों के प्रभावी होने पर चर्चा की जाएगी. बिरला ने भी न्यायपालिका के हस्तक्षेप का मामला उठाते हुए कहा कि न्यायपालिका को भी संविधान की मर्यादा का पालन करना चाहिए. संविधान में न्यायपालिका को भी अधिकार दिए गए हैं उनका उपयोग करना चाहिए. उन्होंने कहा कि 75 वर्ष बाद भी हमें शालीनता और गरिमा की चर्चा करनी पड़ रही है. आज विधानसभा और लोकसभा में कानून जल्दी पारित हो जाता है यह चिंताजनक है. सदन का समय बढे और कानून बनने से पहले विस्तार से चर्चा हो. उन्होंने कहा कि राजस्थान में हो रहे इस सम्मेलन में कई ऐतिहासिक निर्णय होंगे. 

कई बार लगता है अदालतें हमारे काम में दखल दे रही:
उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कहा कि कई बार लगता है अदालतें हमारे काम में दखल दे रही हैं. इंदिरा गांधी ने प्रीवीपर्स खत्म किए तो उसे कोर्ट ने रद्द कर दिया था. बाद में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से लेकर उनके सब फैसलों के पक्ष में जजमेंट आए. उन्होने कहा कि कई बार न्यायपालिका से मतभेद होते हैं. लगता है कि ज्यूडिशिरी हमारे कामों में हस्तक्षेप कर रही है.

स्पीकर्स की भूमिका को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बहुत चुनौतीपूर्ण बताया:
स्पीकर्स की भूमिका को मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने बहुत चुनौतीपूर्ण बताया. उन्होंने कहा कि पक्ष विपक्ष अपनी अपनी बात करते हैं. ऐसे समय दोनों पक्षों की सुनकर सामंजस्य बिठाना और निष्पक्ष कार्य कर सदन चलाना बहुत चुनौतीपूर्ण है. गहलोत ने कहा कि देश में लोकतंत्र की नींव ही ऐसी पड़ी की विपक्ष को महत्व दिया जाता है. नेहरू जब पहले पीएम बने तो उनकी कैबिनेट में विपक्ष के नेताओं को भी शामिल किया था. नेहरू ने श्यामा प्रसाद मुखर्जी,बीआर अंबेडकर, एम सन्मुगम को अपनी कैबिनेट में लिया जो कांग्रेस में नहीं थे. देश में शुरुआत ऐसी हुई कि विपक्ष को महत्व दिया गया. आज भी पक्ष और विपक्ष अपना अपना महत्व रखता है.

सीपी जोशी ने विधानसभा अध्यक्ष के अधिकारों का मुद्दा उठाया:
विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी ने विधानसभा अध्यक्ष के अधिकारों का मुद्दा उठाया और कहा कि अध्यक्ष ना तो विधानसभा का सदन बुला सकता है और ना ही कोई वित्तीय अधिकार है. स्पीकर तो केवल रेफरी हैं. यह काम सरकार करती है. दुर्भाग्य यह है कि हम केवल हाउस चलाते हैं, बाकी कोई पावर नहीं हैं, स्पीकर हेल्पलेस है. उन्होंने मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से मांग करते हुए कहा कि राजस्थान विधानसभा देश में पहली विधानसभा हो...जिसे वित्तीय स्वायत्तता अधिकार मिले. राज्य सभा के सभापति हरिवंश ने कहा कि लोकतंत्र में तीन मुख्य स्तंभ विधायिका, न्याय पालिका और कार्यपालिका तीनों की भूमिका अहम है. 

हम कार्यपालिका की तानाशाही से शासित हो रहे:
स्पीकर डॉ सीपी जोशी ने कहा कि हम कार्यपालिका की तानाशाही से शासित हो रहे है. आज ससंदीय लोकतंत्र के सामने कई चुनौतियां हैं. विधानसभा सदनों की बैठकें ही कम हो रही हैं तो सरकारों को जवाबदेह कौन बनाएगा. आज देश भर से आए विधानसभा अध्यक्ष और विधान परिषद सभप्तियों ने विभिन्न सत्रों में अपने विचार रखें.