15 नवंबर को मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी, भगवान विष्णु को चढ़ाएं ये चीजें, चमक जाएगा आपका भाग्य

15 नवंबर को मनाई जाएगी उत्पन्ना एकादशी, भगवान विष्णु को चढ़ाएं ये चीजें, चमक जाएगा आपका भाग्य

जयपुर: हिंदू धर्म में उत्पन्ना एकादशी का अत्यधिक महत्व होता है. हर साल मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि के ठीक अगले दिन उत्पन्ना एकादशी मनाई जाती है. 15 नवंबर को मार्गशीर्ष (अगहन) महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी है. इसे उत्पन्ना एकादशी कहते हैं. एकादशी पर भगवान विष्णु के लिए व्रत-उपवास और पूजा करने की परंपरा है. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर - जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार 14 नवंबर को देर रात 12:49 मिनट पर अगहन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि शुरू होगी.

वहीं, 15 नवंबर को देर रात 02:37 मिनट पर मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त होगी. सनातन धर्म में उदया तिथि से गणना होती है. इसके लिए 15 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाएगी. इस तिथि पर साधक व्रत रख विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा कर सकते हैं. अगहन यानी मार्गशीर्ष मास को श्रीकृष्ण का स्वरूप माना जाता है. इस वजह से एकादशी पर श्रीकृष्ण के बाल स्वरूप लड्डू गोपाल की पूजा करने का शुभ योग बन रहा है. एकादशी पर भगवान श्रीकृष्ण की विशेष पूजा के साथ ही व्रत भी जरूर करें. व्रत करना चाहते हैं तो सुबह पूजा करते समय व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इसके बाद दिनभर निराहार रहें यानी अन्न ग्रहण न करें. भूखे रहना मुश्किल हो तो फलाहार कर सकते हैं, दूध और फलों का रस पी सकते हैं. 

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि धर्म-कर्म की शुरुआत गणेश पूजा के साथ करनी चाहिए. इस एकादशी के संबंध में मान्यता है कि भगवान विष्णु के लिए की गई पूजा से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी हो सकती हैं. अगर किसी खास इच्छा के लिए एकादशी व्रत और विष्णु पूजा की जाती है तो उसमें भी सफलता मिल सकती है. एकादशी पर किसी पवित्र नदी में स्नान करना चाहिए, स्नान के बाद नदी किनारे ही दान-पुण्य जरूर करें. उत्पन्ना एकादशी के एक दिन पहले यानी दशमी तिथि को शाम के भोजन के बाद अच्छी तरह दातुन करें ताकि अन्न का अंश मुंह में न रह जाएं. इसके बाद कुछ भी नहीं खाएं, न अधिक बोलें. एकादशी की सुबह जल्दी उठकर नहाने के बाद व्रत का संकल्प लें. धूप, दीप, नैवेद्य आदि सोलह चीजों से भगवान विष्णु या श्री कृष्ण की पूजा करें और रात को दीपदान करें. रात में सोएं नहीं. इस व्रत में रातभर भजन-कीर्तन करने का विधान है. इस व्रत के दौरान जो कुछ पहले जाने-अनजाने में पाप हो गए हों, उनके लिए माफी मांगनी चाहिए. अगले दिन सुबह फिर से भगवान की पूजा करें. ब्राह्मणों को भोजन कराकर दान देने के बाद ही खुद खाना खाएं

उत्पन्ना एकादशी 
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक पंचांग के अनुसार, 14 नवंबर को देर रात 12:49 मिनट पर अगहन माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि शुरू होगी. वहीं, 15 नवंबर को देर रात 02:37 मिनट पर मार्गशीर्ष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी तिथि समाप्त होगी. सनातन धर्म में उदया तिथि से गणना होती है. इसके लिए 15 नवंबर को उत्पन्ना एकादशी मनाई जाएगी. इस तिथि पर साधक व्रत रख विधि विधान से भगवान विष्णु की पूजा कर सकते हैं.

स्कंद पुराण में है एकादशी व्रत का जिक्र
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि हिन्दी पंचांग में एक वर्ष में कुल 24 एकादशियां आती हैं और जिस साल अधिक मास रहता है, उस साल में कुल 26 एकादशियां हो जाती हैं. स्कंद पुराण के वैष्णव खंड में सालभर की सभी एकादशियों का महत्व बताया गया है. भगवान श्रीकृष्ण ने पांडव पुत्र युधिष्ठिर को एकादशियों के बारे में जानकारी दी थी. जो भक्त एकादशी व्रत करते हैं, उन्हें भगवान श्रीहरि की कृपा मिलती है. नकारात्मक विचार दूर होते हैं. अक्षय पुण्य मिलता है. घर-परिवार में सुख-समृद्धि और शांति बनी रहती है. एकादशी पर भगवान विष्णु के मंत्र ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय का जप करना चाहिए. भगवान विष्णु के साथ ही देवी लक्ष्मी का भी अभिषेक करें. दोनों देवी-देवता को पीले चमकीले वस्त्र अर्पित करें. फूलों से श्रृंगार करें. तुलसी के पत्तों के साथ मिठाई और मौसमी फलों का भोग लगाएं.

बाल गोपाल का अभिषेक
कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि एकादशी पर व्रत-उपवास करना चाहते हैं तो इस दिन सुबह स्नान के बाद भगवान गणेश की पूजा करें. गणेश जी को जल चढ़ाएं. वस्त्र और फूलों से श्रृंगार करें. चंदन, दूर्वा, हार-फूल अर्पित करें. लड्डू का भोग लगाएं. धूप-दीप जलाकर आरती करें. गणेश पूजा के बाद श्रीकृष्ण का अभिषेक करें. बाल गोपाल का अभिषेक सुगंधित फूलों वाले जल से करें. इसके लिए पानी में गुलाब, मोगरा जैसे सुंगधित फूलों की पंखुड़ियां डालें और इस जल से भगवान का अभिषेक करें. अभिषेक दक्षिणावर्ती शंख में जल भरकर करें. बाल गोपाल को पीले चमकीले वस्त्र पहनाएं. फूलों से श्रृंगार करें. मोर पंख के साथ मुकूट पहनाएं. पूजा में गौमाता की मूर्ति भी जरूर रखें. दूध, दही, घी, शहद और मिश्री मिलाकर पंचामृत बनाएं और चांदी के बर्तन में भरें और तुलसी के साथ भोग लगाएं. माखन-मिश्री भी अर्पित करें. भगवान को कुमकुम, चंदन, चावल, अबीर भी अर्पित करें. ताजे फल, मिठाइयां चढ़ाएं. धूप-दीप जलाकर आरती करें. पूजा के बाद भगवान से क्षमा याचना करें. प्रसाद बांटें और खुद भी लें. पूजा में श्रीकृष्ण के मंत्र कृं कृष्णाय नम: का जप करते रहना चाहिए. इस तरह भगवान बाल गोपाल का अभिषेक किया जा सकता है.

कैसे हुई एकादशी की उत्पत्ति
भविष्यवक्ता डॉ अनीष व्यास ने बताया कि मार्गशीर्ष महीने के कृष्ण पक्ष की ग्यारहवीं तिथि को भगवान विष्णु से एकादशी तिथि प्रकट हुईं यानी उत्पन्न हुई थीं. इसलिए इस दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है. इसे उत्पत्तिका, उत्पन्ना और प्राकट्य एकादशी भी कहा जाता है. पद्म पुराण के मुताबिक श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी की उत्पत्ति और इसके महत्व के बारे में बताया था. व्रतों में एकादशी को प्रधान और सब सिद्धियों को देने वाला माना गया है.

कर सकते हैं ये शुभ काम 
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डॉ अनीष व्यास ने बताया कि एकादशी पर शिव पूजा भी करनी चाहिए. शिवलिंग पर जल और दूध चढ़ाएं. बिल्व पत्र, हार-फूल, चंदन से श्रृंगार करें. किसी मंदिर में शिवलिंग के पास दीपक जलाएं और ऊँ नम: शिवाय मंत्र का जप करें. बाल गोपाल का अभिषेक करें. तुलसी के साथ माखन-मिश्री का भोग लगाएं. धूप-दीप जलाएं और आरती करें. हनुमान जी के सामने दीपक जलाकर हनुमान चालीसा का पाठ करें.

भगवान विष्णु को चढ़ाएं ये चीजें 
मेष राशि:  लड्डू का भोग लगाना चाहिए.
वृषभ राशि:  पंचामृत चढ़ाना चाहिए.
मिथुन राशि:  हरे रंग का वस्त्र अर्पित करना चाहिए.
कर्क राशि:  खीर का भोग लगाना चाहिए.
सिंह राशि:  लाल रंग के वस्त्र को चढ़ाना चाहिए.
कन्या राशि:  मोर का पंख चढ़ाना चाहिए.
तुला राशि:  कामधेनु गाय की प्रतिमा अर्पित करनी चाहिए.
वृश्चिक राशि:  गुड़ का भोग लगाना चाहिए.
धनु राशि:  हल्दी का तिलक लगाना चाहिए.
मकर राशि:  कमल के फूल चढ़ाने चाहिए.
कुंभ राशि:  शमी के पत्ते चढ़ाने चाहिए.
मीन राशि:  चंदन का तिलक लगाना चाहिए.