जयपुर: इस बार वट सावित्री व्रत और अमावस्या का खास संयोग बन रहा है. वट सावित्री व्रत 19 मई को है. ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले सारे व्रतों में वट सावित्री व्रत को बहुत प्रभावी माना जाता है. जिसमें सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सभी प्रकार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं. ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस बार वट सावित्री व्रत 19 मई को पड़ रहा है. वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि से अमावस्या तक उत्तर भारत में और ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में इन्हीं तिथियों में वट सावित्री व्रत दक्षिण भारत में मनाया जाता है.
वट सावित्री व्रत को उत्तर भारत के उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, दिल्ली और हरियाणा समेत कई जगहों पर मनाया जाता है. ऐसी मान्यता है कि जितनी उम्र बरगद के पेड़ की होती है, सुहागिनें भी बरगद के पेड़ की उम्र के बराबर अपने पति की उम्र मांगती हैं. हिंदू धर्म में बरगद का वृक्ष पूजनीय माना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, इस वृक्ष में सभी देवी-देवताओं का वास होता है. इस वृक्ष की पूजा करने से अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होती है. इसके अलावा इस दिन जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन महिलाएं व्रत रखकर वट वृक्ष के पास जाकर धूप, दीप नैवेद्य आदि से पूजा करती हैं. साथ ही रोली और अक्षत चढ़ाकर वट वृक्ष पर कलावा बांधती हैं और हाथ जोड़कर वट वृक्ष की परिक्रमा करती हैं. जिससे उनके पति के जीवन में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और लंबी उम्र की प्राप्ति होती है. वहीं सोमवती अमावस्या पर स्नान, दान, पितरों की पूजा और धन प्राप्ति के खास उपाय भी किए जाते हैं. अमावस्या तिथि के दिन महिलाएं बांस की टोकरी में सप्त धान्य के ऊपर ब्रह्मा और वट सावित्री और दूसरी टोकरी में सत्यवान एवं सावित्री की प्रतिमा स्थापित करके वट के समीप जाकर पूजन करती हैं. साथ ही इस दिन यम का भी पूजन करती हैं और वट की परिक्रमा करते समय 108 बार वट वृक्ष में कलावा लपेटा जाता है. मंत्र का जाप करते हुए सावित्री को अर्घ्य दिया जाता है. वहीं सौभाग्य पिटारी और पूजा सामग्री किसी योग्य साधक को दी जाती है. इस व्रत में सत्यवान और सावित्री की कथा का श्रवण किया जाता है.
शुभ संयोग:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि वट सावित्री के दिन शनि अपनी स्वराशि कुंभ में होंगे. जिससे शश नामक राजयोग बनेगा. इसके अलावा इस दिन सिद्धि योग भी रहेगा. इस दिन चंद्रमा गुरु के साथ मेष राशि में होंगे जिससे गजकेसरी योग बनेगा. इन सब स्थितियों में वट सावित्री का व्रत रखना बेहद शुभ फलदायी होगा साथ ही शनि देव की कृपा रहेगी.
तिथि:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि 18 मई 2023 को रात्रि 09:42 मिनट से प्रारंभ होगी और इसका समापन 19 मई 2023 रात को 09:22 मिनट पर हो जाएगा. हालांकि, उदया तिथि के अनुसार वट सावित्री व्रत 19 मई को रखा जाएगा. इस दिन शोभन योग का निर्माण हो रहा है, जो संध्या 06:17 मिनट तक रहेगा. इस अवधि में पूजा-पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है.
व्रत का शुभ मुहूर्त:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि वट सावित्री अमावस्या की बात करें तो इस दिन सुबह 7:19 से 10:42 मिनट तक का पूजा के लिए शुभ मुहूर्त है. वहीं, वट सावित्री पूर्णिमा के लिए सुहागिन महिलाएं सुबह 7:16 से 8:59 मिनट तक पूजा कर सकती हैं.
पूजन सामग्री:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि वट सावित्री व्रत की पूजन सामग्री में सावित्री-सत्यवान की मूर्तियां, धूप, दीप, घी, बांस का पंखा, लाल कलावा, सुहाग का समान, कच्चा सूत, चना (भिगोया हुआ), बरगद का फल, जल से भरा कलश आदि शामिल करना चाहिए.
पूजा विधि:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि इस दिन प्रातःकाल घर की सफाई कर नित्य कर्म से निवृत्त होकर स्नान करें. इसके बाद पवित्र जल का पूरे घर में छिड़काव करें. बांस की टोकरी में सप्त धान्य भरकर ब्रह्मा की मूर्ति की स्थापना करें. ब्रह्मा के वाम पार्श्व में सावित्री की मूर्ति स्थापित करें. इसी प्रकार दूसरी टोकरी में सत्यवान तथा सावित्री की मूर्तियों की स्थापना करें. इन टोकरियों को वट वृक्ष के नीचे ले जाकर रखें. इसके बाद ब्रह्मा तथा सावित्री का पूजन करें. अब सावित्री और सत्यवान की पूजा करते हुए बड़ की जड़ में पानी दें. पूजा में जल, मौली, रोली, कच्चा सूत, भिगोया हुआ चना, फूल तथा धूप का प्रयोग करें. जल से वटवृक्ष को सींचकर उसके तने के चारों ओर कच्चा धागा लपेटकर तीन बार परिक्रमा करें. बड़ के पत्तों के गहने पहनकर वट सावित्री की कथा सुनें. भीगे हुए चनों का बायना निकालकर, नकद रुपए रखकर अपनी सास के पैर छूकर उनका आशीष प्राप्त करें. यदि सास वहां न हो तो बायना बनाकर उन तक पहुंचाएं. पूजा समाप्ति पर ब्राह्मणों को वस्त्र तथा फल आदि वस्तुएं बांस के पात्र में रखकर दान करें. इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की पुण्य कथा का श्रवण करना न भूलें. यह कथा पूजा करते समय दूसरों को भी सुनाएं.
महत्व:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि शास्त्रों के अनुसार, वट वृक्ष के नीचे बैठकर ही सावित्री ने अपने पति सत्यवान को दोबारा जीवित कर लिया था. दूसरी कथा के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि को भगवान शिव के वरदान से वट वृक्ष के पत्ते में पैर का अंगूठा चूसते हुए बाल मुकुंद के दर्शन हुए थे, तभी से वट वृक्ष की पूजा की जाती है. वट वृक्ष की पूजा से घर में सुख-शांति, धनलक्ष्मी का भी वास होता है.
सावित्री की कथा:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि राजर्षि अश्वपति की एकमात्र संतान थीं सावित्री. सावित्री ने वनवासी राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान को पति रूप में चुना. लेकिन जब नारद जी ने उन्हें बताया कि सत्यवान अल्पायु हैं, तो भी सावित्री अपने निर्णय से डिगी नहीं. वह समस्त राजवैभव त्याग कर सत्यवान के साथ उनके परिवार की सेवा करते हुए वन में रहने लगीं. जिस दिन सत्यवान के महाप्रयाण का दिन था, उस दिन वह लकड़ियां काटने जंगल गए. वहां मू्च्छिछत होकर गिर पड़े. उसी समय यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए. तीन दिन से उपवास में रह रही सावित्री उस घड़ी को जानती थीं, अत: बिना विकल हुए उन्होंने यमराज से सत्यवान के प्राण न लेने की प्रार्थना की. लेकिन यमराज नहीं माने. तब सावित्री उनके पीछे-पीछे ही जाने लगीं. कई बार मना करने पर भी वह नहीं मानीं, तो सावित्री के साहस और त्याग से यमराज प्रसन्न हुए और कोई तीन वरदान मांगने को कहा. सावित्री ने सत्यवान के दृष्टिहीन माता-पिता के नेत्रों की ज्योति मांगी, उनका छिना हुआ राज्य मांगा और अपने लिए 100 पुत्रों का वरदान मांगा. तथास्तु कहने के बाद यमराज समझ गए कि सावित्री के पति को साथ ले जाना अब संभव नहीं. इसलिए उन्होंने सावित्री को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद दिया और सत्यवान को छोड़कर वहां से अंतर्धान हो गए.