वाशिंगटन: व्हाइट हाउस के एक अधिकारी का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अमेरिका यात्रा का मकसद भारत को चीन के मुकाबले पेश करना नहीं, बल्कि दुनिया के दो बड़े लोकतांत्रिक देशों के बीच रक्षा सहयोग सहित अन्य संबंधों को प्रगाढ़ करना था.प्रधानमंत्री मोदी अमेरिका की राजकीय यात्रा संपन्न कर शनिवार को मिस्र के लिए रवाना हो गए. अमेरिका की अपनी यात्रा के दौरान उन्होंने राष्ट्रपति जो बाइडन के साथ कई मुद्दों पर बातचीत की और अमेरिकी कांग्रेस के संयुक्त सत्र को संबोधित किया.
वह राष्ट्रपति बाइडन और प्रथम महिला जिल बाइडन के निमंत्रण पर अमेरिका की यात्रा पर थे. व्हाइट हाउस में राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में रणनीतिक संचार के समन्वयक जॉन किर्बी ने कहा कि यह राजकीय यात्रा चीन के बारे में नहीं थी. देखिए, चीन भारत के समक्ष भी चुनौतियां पेश कर रहा है. ये चुनौतियां सिर्फ उसकी सीमाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर मौजूद हैं. इसमें कोई दो राय नहीं है कि पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना दोनों देशों (भारत और अमेरिका) के समक्ष स्पष्ट रूप से जो चुनौतियां पेश कर रहा है, वे कल हमारी बातचीत के एजेंडे में थीं.
किर्बी ने शुक्रवार को यहां एक संवाददाता सम्मेलन में कहा कि लेकिन यह यात्रा भारत को चीन के मुकाबले पेश करने के लिए नहीं थी. भारत एक स्वतंत्र संप्रभु राष्ट्र है. उसकी अपनी विदेश नीति है और उसके आसपास के हालात कठिन हैं. उन्होंने कहा कि भारत रक्षा क्षेत्र में बड़े निर्यातक के तौर पर उभर रहा है, जिसका अमेरिका स्वागत करता है. किर्बी ने सवालों के जवाब में कहा कि आप इसमें बहुत कुछ देख सकते हैं.
रक्षा सहयोग में सुधार करने की हमारी इच्छा है, चाहे वह जेट इंजन का सह-उत्पादन हो या एमक्यू-9 ड्रोन की उनकी खरीद. हमारे पास सुरक्षा के मोर्चे पर करने के लिए बहुत कुछ है, जिसके तहत हम साथ मिलकर काम कर सकते हैं और वास्तव में हमारा ध्यान इसी पर है.उन्होंने कहा कि मोदी की यात्रा अमेरिकी और भारतीय लोगों को एक संदेश देने के लिए थी कि दोनों देशों के संबंध दुनियाभर के लोगों के लिए कितने महत्वपूर्ण हैं. किर्बी ने कहा कि चीन भारत के समक्ष कई चुनौतियां पेश कर रहा है और भारत इन चुनौतियों से अपने दम पर निपटता है. सोर्स भाषा