World Biodiversity Day: राजस्थान में जैव विविधता बोर्ड साल 2010 में गठित, एक दशक गुजर जाने के बावजूद प्रावधान नहीं उतरे धरातल पर, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: आज विश्व जैव विविधता दिवस है. क्षेत्रफल की दृष्टि से देश के सबसे बड़े प्रदेश राजस्थान की समृद्ध जैव-विविधता के संरक्षण, विवेकपूर्ण उपभोग तथा स्थानीय निवासियों को इससे उचित लाभ दिलाने वाला महत्वपूर्ण अधिनियम महज एक दिखावा साबित होकर रह गया हैं. देश में जैव-विविधता अधिनियम 2002 लागू होने के 8 साल बाद राजस्थान सरकार ने 2010 में राज्य जैव-विविधता बोर्ड का गठन तो कर दिया लेकिन फिर करीब एक दशक गुजर जाने के बाद भी अधिनियम के प्रावधान धरातल पर नहीं उतर पाए हैं. बायोडायवर्सिटी बोर्ड में अभी तक न तो सदस्यों की नियुक्तियां की गई और न ही जिला व स्थानीय निकाय या पंचायत स्तर पर किसी प्रकार की समितियों का गठन हो पाया जिससे राज्य में यह एक नाम का बोर्ड बनकर रह गया है. प्राकृतिक संसाधनों पर लगातार बढ़ते मानवीय दबाव व विभिन्न कारणों के कारण पूरेे विश्व में तेजी से लुप्त होती प्रजातियों तथा जलवायु परिवर्तन के खतरों को देखते हुए 1992-93 के विश्व पृथ्वी सम्मेलन में हुई अन्तर्राष्ट्रीय सन्धि के तहत देश में अस्तित्व में आए जैव विविधता अधिनियम पर राजस्थान में अब तक बोर्ड बनाने के अलावा कोई उल्लेखनीय काम नहीं हुआ. जानकारों के अनुसार इसके पिछे राज्य सरकारों की पर्यावरण विरोधी नितियां व जिम्मेदार अधिकारियों की पर्यावरण संरक्षण के प्रति उदासीनता की कार्य शेली प्रमुख कारण रही हैं.

जैव विविधता अधिनियम के प्रावधान लागू नहीं होने से राज्य में दिनों-दिन वनस्पति तथा जीवों की कई प्रजातियों का अस्तित्व खत्म होता जा रहा है तथा कई लुप्त होने के कगार पर पहुंच गई हैं. राज्य के पश्चिमी क्षेत्र का दो तिहाई भू-भाग थार के मरूस्थल का हिस्सा है तथा मध्य में विश्व की प्राचीनतम पर्वत श्रंखला अरावली व विंध्याचल के पठार की विविधता के साथ दक्षिण-पूर्व में चंबल घांटी व उत्तर-पश्चिम में इंदिरा गांधी नहर की समृद्ध विरासत मौजूद है. अपनी विशेष भौगोलिक एवं प्राकृतिक विशिष्टताओं के चलते राजस्थान की जैव-विविधता अनुठी एवं समृद्ध हैं. शुष्क, पहाड़ी व आर्द्र जलवायु के कारण यह मरू प्रदेश सदियों से विभिन्न प्रजाति के पशु-पक्षियों के साथ समृद्ध वनस्पतियों का भी अनुपम खजाना रहा हैं. इस अनुपम प्राकृतिक विरासत के संरक्षण के लिए जैव-विविधता जैसा महत्वाकांक्षी अधिनियम मील का पत्थर साबित हो सकता है और इसके लिए लोगों को आगे आना होगा.

14 सितम्बर 2010 को राजस्थान राज्य जैव विविधता बोर्ड के गठन के साथ ही इसमें अधिकारियों व स्टाफ की नियुक्ति भी हो गई लेकिन 13 साल बाद भी राज्य की जैव-विविधता के संरक्षण की इस अधिनियम के तहत अभी शुरूआत भी नहीं हो पाई है. बोर्ड गठन के साथ शुरूआती दौर में कुछ प्रयास जरूर किए गए लेकिन संभाग स्तरीय प्रशिक्षणों व जागरूकता के लिए कुछ स्टेश्नरी तक सिमित होकर रह गए. ऐसे में अज्ञानतावश लोग धड़ल्ले से प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे हैं जिससे पर्यावरण को नुकसान होने के साथ-साथ बहुमूल्य औषधियां, जीव-जंतु व पक्षी लुप्त होते जा रहे रहे हैं. राज्य भर में वनस्पतियों व जीव जंतुओं की संख्या में लगातार गिरावट आने से प्रदेश का मानसून व मोसम तंत्र व सम्पूर्ण पर्यावरण भी गड़बड़ाने लगा है.

जैवविविधता अधिनियम के तहत राज्य के ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में प्रबंधन समितियों का गठन स्थानीय निकाय, ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद, नगर पालिका व नगर परिषद की साधारण सभा की बैठक में करना था. इसमें निकाय या ग्राम पंचायत के अधिकार क्षेत्र में निवास करने वाले मतदाताओं द्वारा ग्राम सभाओं में 7 व्यक्तियों को बहुमत के आधार पर नामित करना था. समिति में एक वनस्पति या जड़ी बूटी विशेषज्ञ या जानकार, एक कृषि विशेषज्ञ या अनुभवी कृषक, एक वन एवं वन्यजीव विशेषज्ञ, बीज, गौंद व जड़ी बूटी का व्यापारी, एक सामाजिक कार्यकर्ता, एक शिक्षाविद, एक पशु पालक का मनोनयन किया जाने का प्रावधान किया गया है. इन सात सदस्यों में एक को बहुमत के आधार पर समिति का अध्यक्ष चुना जाना था. 

समिति के कार्यों में आमजन को विभिन्न गतिविधियों के माध्यम से जैव विविधता को लेकर जागरूक करना,  जैव विविधता संरक्षण के महत्व के बारे में बताना, जैव विविधता प्रबंध संरक्षण के तहत जैव संसाधनों से प्राप्त होने वाले लाभों का स्थानीय समुदाय में समुचित बंटवारा सुनिश्चित करना, जैव विविधता को संरक्षित करने के उद्देश्य से जिला या नगर निगम क्षेत्र में ‘जैव विविधता विरासत स्थल’ स्थापित करने के लिए जैव विविधता वाले क्षेत्रों की पहचान करना, कृषि, पशु व घरेलू जैव विविधता को संरक्षण व बढ़ावा देना शामिल हैं. लेकिन सरकारी व प्रशासनिक अमले की उदासीनता के चलते जैव विविधता संरक्षण को लेकर राज्य भर में ग्राम पंचायत, पंचायत समिति, जिला परिषद व शहरी निकायों में बनाई जाने वाली कमेटियों का काम ठंडे बस्ते में चला गया हैं. ऐसे में प्रदेश में जैव विविधता को लेकर होने वाले काम ठप पड़े हैं.