जयपुर: वर्ल्ड वाइल्डलाइफ डे: लायन और चीता के इंट्रोडक्शन से बदलेगी राजस्थान की किस्मत, देखिए ये खास रिपोर्ट

वर्ल्ड वाइल्डलाइफ डे: लायन और चीता के इंट्रोडक्शन से बदलेगी राजस्थान की किस्मत, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: राजस्थान यूं तो कई वाइल्डलाइफ सैंक्चुअरी हैं और 3 नेशनल पार्क और 4 ही टाइगर रिज़र्व हैं. दो रामसर साइट हैं. एक नदी को संरक्षित करने वाली नेशनल चम्बल घड़ियाल सैंक्चुअरी भी है. लेकिन इन सब के बावजूद 2 प्रजातियों का इंट्रोडक्शन राजस्थान की किस्मत बदल सकता है. इन दो प्रजातियों में एशियाटिक लायन और अफ्रीकी चीता है. पड़ोसी राज्य गुजरात की तर्ज पर प्रदेश में एशियाटिक लायन बसाने और अफ्रीकी चीते को राजस्थान लाना. इस समय प्रदेश की वाइल्ड लाइफ की सबसे बड़ी दरकार है. इसमें एम.के. रंजीत सिंह के प्रयासों से चीते को मध्यप्रदेश के कूनो में में बसाया जा चुका है. 

राजस्थान के शेरगढ़ सैंक्चुअरी और मुकुन्दरा टाइगर रिज़र्व को भी चीते के लिए उपयुक्त माना गया है, लेकिन चीते के मामले में मध्यप्रदेश बाजी मार ले गया. अब राजस्थान वन विभाग के स्तर पर चीते को लेकर नए सिरे से प्रस्ताव तैयार किए जा रहे हैं. प्रदेश में वन्यजीव पर्यटन को बढ़ाने के लिए नाहरगढ़ को लायन सफारी पार्क के रूप में विकसित किया गया है, जल्द ही यहां टाइगर और बर्ड सफारी भी शुरू की जाएगी. वन्यजीव विशेषज्ञों की माने तो मुकुन्दरा का एनक्लोजर अफ्रीकी चीते के लिए एक बेहतर ऑप्शन हो सकता है यहां बना बनाया एनक्लोजर है जो इन अफ्रीकी चीतों के ब्रीडिंग सेंटर के रूप में काम में लिया जा सकता है. वहीं टाइगर के लिए धौलपुर-करौली और कुंभलगढ़ नए टाइगर रिज़र्व के रूप में विकसित किये जा सकते हैं. 

दरअसल प्रदेश में कई वन्यजीव हैं, जिन पर संकट के बादल हैं. जिसमें, बाघ के अलावा पैंथर, गोंडावन, भारतीय भेड़िया, घड़ियाल, रिवर डॉल्फिन, कछुओं की कुछ प्रजातियां, पैंगोलिन, गिद्ध इनमें शामिल है. हालांकि हाल ही में गिद्धों की संख्या में कुछ इजाफा हुआ है लेकिन ये नाकाफी है. इन प्रजातियों को बचाने के लिए इनके हैबिटैट और फ़ूड चेन इम्प्रूवमेंट के प्रयास करने होंगे. सुरक्षा की दृष्टि से इनका प्रॉपर असेसमेंट और मोनिटरिंग की जानी चाहिए जिसमें कहीं न कहीं कमी नजर आ रही है. मुकुन्दरा, सरिस्का और रणथंभौर से बाघों का मरना और लापता होना किसी दुःस्वप्न से कम नहीं है.

वहीं कुछ वनस्पतियों की प्रजातियों पर भी संकट है, लगातार हो रही वनों की कटाई, अवैध खनन, अतिक्रमण नें कई प्रजातियों पर संकट के बादल ला खड़े किए हैं. कुछ राजनेताओं का ध्यान केवल वोटबैंक पॉलिटिक्स पर रहता है, वहीं वन्यजीव और पेड़ पौधे जो वोट नहीं दे सकते इनके लिए कोई अहमियत नहीं रखते. लेकिन धीरे-धीरे वन्यजीव प्रेमियों की संख्या बढ़ती जा रही है और नेताओं के यह सोचने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि अब वन एवं वन्यजीव संरक्षण की बात करनी पड़ेगी. 

हाल ही में प्रदेश में शिकार की घटनाएं भी बहुत बढ़ी हैं. हालांकि कुछ मामलों को छोड़कर वन विभाग को अन्य मामलों में सफलता नहीं मिली है. सांभर में पक्षी त्रासदी के बाद बाघों का मरना और लापता होना, एक के बाद एक पैंथर के मरने की घटनाएं कई संरक्षित प्रजाति के गिद्धों के मरने की घटनाएं, पावर लाइन से टकराकर गोंडावन का मरना और शिकारियों के जाल में फंस कर घड़ियालों का मरना इन सब घटनाओं के बाद भी हमारी आंखे नहीं खुले तो क्या कहा जा सकता है. हालांकि अब एसीएस शिखर अग्रवाल, पीसीसीएफ हॉफ डॉ डीएन पाण्डेय और मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक अरिंदम तोमर की तिकडी शानदार काम कर रही है. नए कंजर्वेशन रिजर्व घाेषित होने से भी वन्यजीव संरक्षण को बल मिलेगा. कहा जा सकता है कि प्रदेश में अब वन्यजीवों के संरक्षसण को लेकर जो माहौल बना है उससे बरकरार रखते हुए कुछ बेहतर कदम उठाए जा सकते हैं.

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