जैसलमेर: पोकरण फिल्ड फायरिंग रेंज में 11 व 13 मई 1998 को हुए परमाणु धमाकों की याद आज भी लोगों के जहन में ताजा है. बीस वर्ष पूर्व खेतोलाई के पास स्थित फील्ड फायरिंग रेंज में हुए परमाणु परीक्षणों ने भारत को परमाणु शक्ति के क्षेत्र में सभी देशों के बराबर लाकर खड़ा कर दिया. खेतोलाई स्थित फील्ड फायरिंग रेंज में हुए इन सिलसिलेवार परमाणु परीक्षण की गूंज ने पूरे भारतवासियों का सिर गर्व से ऊंचा कर दिया. क्षेत्र के लोग आज भी उन लम्हों को याद कर अपने आप को गौरवान्वित महसूस करते हैं. साथ ही इन परमाणु विस्फोटों के बाद खेतोलाई गांव विश्व स्तर पर अपनी पहचान बना चुका है. परमाणु परीक्षणों का असर गांव के साथ-साथ पूरे क्षेत्रवासियों को महसूस हुआ. वहीं क्षेत्र के लोगों में आज भी उन परमाणु परीक्षणों के कारण हिली धरती तथा गूंजे आसमान का मंजर जीवित है.
साल 1998 का था. भारत में राजनीतिक उठापटक चरम पर थी. अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार ने कामकाज संभाला ही था. ऐसे में 11 और 13 मई को भारत ने एक ऐसा कारनामा कर दिखाया कि पूरी दुनिया दंग रह गई थी. जैसलमेर के पोखरण फील्ड फायरिंग रेंज में खेतोलाई गांव के पास कुल पांच परमाणु परीक्षण किए गए. यह सब इतना गुपचुप हुआ कि पूरी दुनिया के परमाणु संयंत्रों और सैन्य गतिविधियों पर सैटेलाइट से निगरानी करने वाला अमेरिका को भी कुछ पता नहीं चला. यह वही पोकरण की परमाणु धरती है जिसने तीन बार परमाणु धमाकों को अपने आंचल में दबा लिया था.
पोकरण उपखण्ड के खेतोलाई गांव के पास भारत ने 11 मई 1998 को दूसरी बार परमाणु परीक्षण किया. परमाणु परिक्षण की बरसी पोकरणवासी ही नही पूरा विश्व मना रहा है . तत्कालीन प्रधानमंत्री अटलबिहारी वाजपेयी ने अमेरिका की खुफियां एजेसियों को धता बताते हुए आज ही के दिन को सांय 4 बजे यह कहकर अमेरिका को खुश करने की कोशिश की कि आज भारत में बुद्ध मुस्कराये है इस परीक्षण के कारण नाराज अमेरिका सहित कई देशो ने भारत पर कई प्रतिबंध भी लगाये जिसकी भारत ने कोई परवाह नही की . खेतोलाई की धरती पर हुए परीक्षण के बाद भारत सामरिक व दृष्टि से सुदृढ देश बन गया है.
इन टेस्ट के बाद वाजपेयी ने कहा, 'आज 15:45 बजे भारत ने पोखरण रेंज में अंडरग्राउड न्यूक्लियर टेस्ट किया. वह खुद धमाके वाली जगह पर गए थे. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने टेस्ट के सफल होने की घोषणा की थी. कलाम ने एक इंटरव्यू में बताया था कि उस समय भारत पर अंतरराष्ट्रीय दबाव काफी ज्यादा था, लेकिन तत्कालीन PM वाजपेयी ने तय किया था कि वह आगे बढ़कर परीक्षण करेंगे. इसके साथ ही भारत एक परमाणु ताकत बना. वाजपेयी ने नारा दिया था- जय जवान, जय किसान और जय विज्ञान. इसी वजह से इस दिन को हर साल नेशनल टेक्नोलॉजी डे के तौर पर मनाया जाता है.
टेस्ट के लिए पोखरण चुना गया, क्योंकि जैसलमेर से 110 किमी दूर जैसलमेर-जोधपुर मार्ग पर यह एक प्रमुख कस्बा है. 1974 के बाद 11 मई 1998 को पोखरण में भारत ने परमाणु परीक्षण किया तो इजरायल को छोड़कर दुनिया के सारे देश भारत के खिलाफ उठ खड़े हुए. अमेरिका सहित कई देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए थे. इससे पहले 18 मई 1974 को पोखरण में ही उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के निर्देश पर पहला परमाणु परीक्षण हुआ था. इसे नाम दिया था- बुद्ध स्माइलिंग (बुद्ध मुस्करा रहे हैं). पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम की अगुआई में यह मिशन कुछ इस तरह से अंजाम दिया गया कि अमेरिका समेत पूरी दुनिया को इसकी भनक तक नहीं लगी. दरअसल, अमेरिकी खुफिया एजेंसी CIA भारत पर नजर रखे हुए थी और उसने पोखरण पर निगरानी रखने के लिए 4 सैटेलाइट लगाए थे. भारत ने CIA और उसके सैटेलाइटों को चकमा देते हुए परमाणु परीक्षण कर दिया.
विस्फोटों से शहर में फैली थी दहशत
बताया की देश के सामरिक इतिहास में गौरव व स्वाभिमान का दिन 11 मई याद कर देशवासियों का सीना गौरव से फूल जाता है. 11 व 13 मई 1998 को क्षेत्र के खेतोलाई गांव के निकट पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में सिलसिलेवार किए गए परमाणु धमाकों के बाद विश्वस्तर पर पहचान बना चुके पोकरण उपखंड के खेतोलाई गांव के लोग आज भी उस दिन को याद कर स्वाभिमान से सिर ऊंचा करते हैं. 11 मई1998 को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम आजाद द्वारा पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में परमाणु परीक्षण करवाया था. पूरा पोकरण शहर पत्ते की तरह हिल गया. लोग बाग इसे प्राकृतिक आपदा मानते हुए अपने घरों से बाहर की ओर भाग खड़े हुए. वहीं चर्चाओं का बाजार गर्म रहा. इस बात को बीते एक दिन भी गुजरा था तभी दूसरा परमाणु विस्फोट होने के कारण लोगों में दहशत का माहौल बना रहा.
11 व 13 मई को पांच परीक्षण किए, सफलता का कारण मिशन की गोपनीयता
11 मई को पहले परीक्षण के बाद 12 मई की रात नौतला गांव के दो कुओं में बम स्थापित करने के बाद रेत भर दी गई. जबकि छठे कुएं को तैयार तो किया गया था, लेकिन पहले के तीन बड़े परीक्षण सफल रहने के कारण तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी ने छठा परीक्षण करने से मना कर दिया था. 13 मई को दो और कुओं में ही परीक्षण किया गया. यानी कुल पांच सफल परमाणु परीक्षण कर लिए गए. इन तैयारियों के दौरान परीक्षण के जनक डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम व डॉ. राज गोपाल चिदम्बरम तथा अनिल काकोडकर मौके पर आते जाते थे. 11 और 13 मई 1998 इन दो तारीखों को राजस्थान के पोकरण परमाणु स्थल पर पांच परमाणु परीक्षण किए थे. इसी के साथ हम परमाणु संपन्न देश बन गए थे. सफलता का बड़ा कारण मिशन की गोपनीयता थी. उस दौरान बड़ी जिम्मेदारी सेना की 58 इंजीनियर्स रेजीमेंट की थी.
अमेरिकी सेटेलाइट ‘आई इन द स्काई’ से बचकर परमाणु ऑपरेशन पूरा करना था सबसे बड़ी चुनौती
यही वजह थी कि वाजपेयी के समय परमाणु परीक्षण का प्लान बेहद खुफिया ढंग से बना. ऐसा लग रहा था, भारत अपनी नहीं, बल्कि किसी और मुल्क की ज़मीन पर एटमी टेस्ट की तैयारी कर रहा है. भारत को पता था कि अमेरिका के पास केवल तीन जासूसी सैटेलाइट हैं, जो घूमते हैं. ऐसे में टेस्ट की तैयारी ऐसे समय की गई, जब पोखरण के ऊपर उपग्रह मौजूद ना हों. सारी तैयारी होती रात में और सुबह की पहली किरण के साथ साजो-सामान को पहले वाली स्थिति में पहुंचा दिया जाता, ताकि कोई चीज़ अपनी जगह से हिली ना दिखे और अमेरिकियों को यही लगे कि साइट पर कोई काम नहीं हो रहा. एक अच्छी बात यह थी कि पोखरण में काफी फील्ड वर्क पहले से हो रखे थे, जब नरसिम्हा सरकार एटमी टेस्ट के करीब आई थी.
जब 1998 में परीक्षण का दिन करीब आया, तो वैज्ञानिकों को अमेरिकी सैटेलाइट्स की निगरानी की वजह से अतिरिक्त सावधानी बरतने की ज़रूरत थी. दरअसल, सैटेलाइट की पहली और 10वें दिन की तस्वीरों का हर रोज मिलान किया जाता, डिजिटल इमेज प्रोसेसिंग फीचर के ज़रिए. अगर उस दरम्यान कोई बदलाव होता, तो वह नज़र आ जाता. 1995 में अमेरिका ने इसी चालाकी से नोटिस कर लिया था कि पोखरण में हाल के दिनों में गतिविधियां बढ़ाई गई हैं. जब तैयारी आखिरी चरण में थी, तो गड्ढे भरने का काम एक ही रात में ख़त्म करना था, नहीं तो सैटेलाइट बदलाव को नोटिस कर लेता. रेत हटाई और उसे इस तरह दिखाया, जैसे कि रेगिस्तान में रेत के टीले बने हों. हवा की वजह से कुदरती टीले एक ओर झुके होते हैं. वहीं, वैज्ञानिकों के बनाए टीले उलटी दिशा में थे. लेकिन, जब तक अमेरिकी इस ग़लती को पकड़ते, प्रोग्राम ख़त्म हो चुका था.
पोकरण से 25 किलोमीटर दूर स्थित वह गांव जहां पर आज से ठीक 22 वर्ष पूर्व 11 मई 1998 को हुए परमाणु परीक्षण ने न केवल पोकरण बल्कि भारत देश को विश्व में परमाणु शक्ति के रूप में नई पहचान दिलाई. खेतोलाई गांव में कुछ बुजुर्ग जो उस समय की घटना को बताते हैं तो उनकी तीव्र आवाज से पता चलता है कि उनको कितना गर्व हुआ है. आज भी खेतोलाई गांव के लोगों को परमाणु परीक्षण पर नाज व फक्र हैं. परमाणु परीक्षण की घटना को बताते हुए ग्रामीण कहते हैं कि पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज पास में ही स्थित होने के कारण यहां भारत सहित अन्य देशों की सेनाओं के युद्धाभ्यास होने के कारण धमाके होते रहते हैं. लेकिन 11 मई 1998 को वो लम्हा आज भी लोगों के जहन में वीरगाथा के रूप में संजोया हुआ है. ग्रामीण बताते हैं कि उस दिन फील्ड फायरिंग रेंज के अधिकारियों व जवान गांव में पहुंचे. सेना के अधिकारियों ने गांव के लोगों से कहा की आज दोपहर से लेकर शाम तक मकानों के अंदर नहीं बैठे. घरों से बाहर खुले में बैठे. आसपास जान माल का कोई नुकसान नहीं हो उन स्थानों पर पहुंच जाए. उस दिन गांव को सेना के जवानों ने चौतरफा घेर लिया.
विस्फोट की त्रासदी से आज भी जूझ रहे हैं लोग
परमाणु परीक्षण के बाद विश्व के मानचित्र में अपनी अलग छवि बना चुका पोकरण का खेतोलाई गांव आज भी परमाणु परीक्षण से फैली त्रासदी से जूझ रहा है. ग्रामीणों का मानना है कि परमाणु विस्फोट से फैलने वाली रेडियेशन का दंश ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है. रेडियेशन के कारण गांव में अधिकांश कैंसर के मरीज है. वहीं दूसरी ओर गांव में पशुओं में भी बछड़े समय से पहले ही हो जाते हैं और मर जाते हैं. साथ ही कई पशु विकृत पैदा हो रहे हैं. गाय कम दूध दे रही है,पशुओं में गर्भपात और विकृत पशु पैदा हो रहे हैं. खेतों में पैदावार नहीं बढ़ रही और कैंसर डराने लगा है. यह शिकायत है करीब 21 साल पहले परमाणु धमाकों से विश्व स्तर पर पहचान बनाने वाले पोकरण के गौरवाशाली गांव खेतोलाई के ग्रामीणों की. शिकायत आज की नहीं, बरसों से कर रहे हैं, लेकिन अब तक यहां विकिरणों के दुष्प्रभाव संबंधी कोई गहन जांच नहीं हुई. चिकित्सकों की टीमें कई बार आई, लेकिन वे भी किसी नतीजे पर नहीं पहुंचे.ग्रामीण आज भी उस दिन को याद कर गौरवान्वित होते हैं, लेकिन उनका कहना है कि सरकार और प्रशासन इस गौरवाशाली गांव की ओर ध्यान नहीं दे रही. ग्रामीणों को शिकायत है कि गांव मूलभूत सुविधाओं को तो तरस ही रहा है, विकिरणों का भी दंश झेल रहा है. गौरतलब है कि 11 व 13 मई 1998 को क्षेत्र के खेतोलाई गांव के निकट पोकरण फील्ड फायरिंग रेंज में परमाणु परीक्षण किया गया था. इससे पूर्व 18 मई 1974 को बुद्ध पूर्णिमा के दिन भी यहां भारत का प्रथम परमाणु परीक्षण किया गया था.
शक्ति स्थल में मात्र डमी ही दिलाते हैं परमाणु परीक्षण की याद
परमाणु परीक्षण के बाद पोकरण शहर ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना ली,, लेकिन परमाणु स्थल पोकरण फिल्ड फायरिंग के अंदर व रक्षा विभाग की सुरक्षा में होने के कारण आम व्यक्ति का उस स्थल तक जाना वर्जित था. इस घटना को लम्बे समय तक यथावत रखने के लिए तात्कालीन कलेक्टर द्वारा जैसलमेर सड़क मार्ग पर खादी ग्रामोद्योग में शक्ति स्थल के नाम से कुछ मॉडल विकसित करने व यहां पर परमाणु संयत्र के मॉडल तैयार किए गए. लेकिन कलेक्टर के स्थानांनतरण के बाद से ही इस पर्यटन स्थल का विकास नहीं हो पाया. जिसके चलते यह शक्ति स्थल निर्माण की योजना भी सिरे नहीं चढ़ पाई. ऐसे में इन दिनों यहां पर परमाणु परीक्षण की याद में लगाए गए डमी ही परमाणु परीक्षण की गाथा गा रहे हैं. शक्ति स्थल में मात्र डमी के अलावा और कुछ भी नहीं दिखाई दे रहा है.
छद्म नामों से लेकर प्रोजेक्ट के हर स्तर पर सतर्कता
प्रोजेक्ट से जुड़े वैज्ञानिक आपस में कोड लैंग्वेज में बात करते थे. सब वैज्ञानिकों ने एक-दूसरे के लिए कोड नेम रखे थे. यह इतने प्रचलित हो गए थे कि कई वैज्ञानिक तो एक-दूसरे के वास्तविक नाम तक भूल गए थे. सेना की वर्दी में वैज्ञानिकों की ड्यूटी लगाई गई थी, ताकि विदेशी खुफिया एजेंसियों को लगे कि सेना के जवान ही ड्यूटी पर हैं. मिसाइलमैन अब्दुल कलाम भी सेना की वर्दी में थे. बाद में आई तस्वीरों से यह सामने आया. रिपोर्ट्स के मुताबिक डॉ. कलाम को कर्नल पृथ्वीराज कहा गया. वे कभी ग्रुप में टेस्ट साइट पर नहीं जाते थे. अकेले जाते ताकि कोई शक न कर सके. 10 मई की रात को योजना को अंतिम रूप देते हुए ऑपरेशन को 'ऑपरेशन शक्ति' नाम दिया गया.
11 मई को तड़के करीब 3 बजे परमाणु बमों को सेना के 4 ट्रकों के जरिए ट्रांसफर किया गया. इससे पहले इसे मुंबई से भारतीय वायु सेना के प्लेन से जैसलमेर बेस लाया गया था. ऑपरेशन के दौरान दिल्ली के ऑफिस की बातचीत कोड वर्ड्स में होती थी. परमाणु बम के दस्ते को ताजमहल कहा गया, तो व्हाइट हाउस और कुंभकरण भी प्रोजेक्ट में शामिल कुछ कोड वर्ड्स थे.
वैज्ञानिकों ने इस मिशन को पूरा करने के लिए रेगिस्तान में बड़े कुएं खोदे. उनमें परमाणु बम रखे गए. कुओं पर बालू के पहाड़ बनाए गए जिन पर मोटे-मोटे तार निकले हुए थे. धमाके से आसमान में धुएं का गुबार उठा और बड़ा गड्ढा बन गया था. कुछ दूरी पर खड़ा 20 वैज्ञानिकों का समूह पूरे घटनाक्रम पर नजर रखे हुए था. पोखरण रेंज में 5 परमाणु बम के परीक्षणों से भारत पहला ऐसा परमाणु शक्ति संपन्न देश बन गया, जिसने परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए थे. इस वजह से कई देशों ने भारत के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध तक लगा दिए थे.