Navratri Special: जालोर की पहाड़ियों पर स्थित सुंधामाता दरबार में हुई घटस्थापना, जानिए मंदिर का इतिहास

जालोर: जिले के प्रसिद्ध सुंधा माता मंदिर (Sundha Mata Temple) में हर भक्त की मनोकामना पूर्ण होती है. वहीं प्रदेश के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (CM Ashok Gehlot) सहित कई नेताओं की सुंधा माता कुलदेवी भी है. नवरात्रि में दर्शन करने के लिए हजारों की संख्या में हर रोज श्रद्धालु यहां आते हैं. 

जालोर (Jalore) में लाखों लोगों की आस्था का केंद्र पहाड़ों में स्थित सुंधामाता मंदिर में नवरात्रि पर्व पर श्रद्धालुओं की भीड़ अधिक देखने को मिल रही है. राजस्थान ही नहीं पूरे देश के कोने-कोने से लोग दर्शन के लिए सुंधा माता मंदिर आ रहे हैं. नवरात्रि में 9 दिन तक सुंधा माता मंदिर में धार्मिक अनुष्ठान हो रहे हैं. मंदिर परिसर में करीब एक दर्जन से भी अधिक देवी-देवताओं की प्रतिमाएं विद्यमान है. वहीं तीन मुख्य शिलालेख भी है. चामुण्डा माताजी के सामने ही भुर-भुरेश्वर महादेव की प्रतिमा है. नवरात्रि पर यहां विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है. 

वही मंदिर को रंग-बिरंगी रोशनी फूलों से सजाया जाता है. चामुंडा माता ट्रस्ट की ओर से आने वाले भक्तों के लिए माकूल व्यवस्था भी की गई है. सुंधा माता का यह मंदिर काफी प्राचीन है. जालोर (Jalore) के शासक चाचिगदेव ने संवत् 1319 में अक्षय तृतीया को इस मंदिर की स्थापना की थी. मंदिर में पहले देवी को शराब और बलि चढ़ाने की प्रथा थी. लेकिन 1976 में मालवाड़ा के ठाकुर अर्जुनसिंह देवल ने एक ट्रस्ट की स्थापना कर शराब अर्पण और बलि बंद करवा मंदिर में सात्विक पूजन पद्धति शुरू करवाई. इसके बाद ट्रस्ट ने प्रवेश द्वार, धर्मशालाओं, भोजनशालाओं का निर्माण भी करवाया.

देवी भागवत और तंत्र चूड़ामणि में ऐसी कथा आती है कि सत युग में एक समय दक्ष प्रजापति ने शिव से अपमानित होकर ब्राहस्पत्य नामक यज्ञ किया. जिसमें उसने शिव और सती को आमंत्रित नहीं किया. निमंत्रण न पाकर भी सती अपने पिता के यहां आ गई. घर आने पर भी दक्ष ने सती का सत्कार नहीं किया. अपितु क्रोध कर शिव की बुराई की. पति की निन्दा सती से सहन नहीं हुई और वह यज्ञ कुण्ड में कूद गई. इस पर शिव अपने वीर भद्रादि अनुचरों के साथ वहां पहुंचे और यज्ञ विध्वंस किया. उन्मत्त अवस्था में सती की मृत देह लेकर नाचने लगे. तब विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के अंग-अंग को काट डाला. 

भक्तों के लिए माकूल व्यवस्था:

सती के अंग-प्रत्यग जहां-जहां गिरे वे सभी स्थान शक्तिपीठ के नाम से प्रसिद्ध हुए. सुगन्धा नामक स्थान पर सती की नासिका गिरी. यह पौराणिक कथा संभवत: देवी के मात्र सिर पूजने की प्रथा का मूल कारण रही. चामुंडा माता मंदिर ट्रस्ट सुंधा माता अध्यक्ष ईश्वर सिंह देवल का कहना है कि वैसे तो प्रतिदिन श्रद्धालुओं की आवाजाही रहती है लेकिन नवरात्र में खासी भीड़ रहती है. वहीं यहां प्रदेश सहित कई राज्यों से माता के दर्शन के लिए आते हैं. दर्शन कर खुशहाली की कामना की जाती है. श्री चामुंडा माता ट्रस्ट की ओर से आने वाले भक्तों के लिए माकूल व्यवस्था की गई है.