Dussehra 2022: कोटा के इस शहर में पैरों से रौंदा जाता है रावण का अहंकार, 300 साल से चली आ रही परम्परा

Dussehra 2022: कोटा के इस शहर में पैरों से रौंदा जाता है रावण का अहंकार, 300 साल से चली आ रही परम्परा

कोटा: दशानन के दहन के साथ देशभर में मनाए जा रहे दशहरे के त्योंहार के साथ कई तरह की किंवदन्तियां और लोकपरंपराएं भी जुड़ी हुई है. जोधपुर के कुछ परिवारों में रावण की पूजा भी होती है. वहीं कोटा (Kota) के नान्ता में रावण का दहन नहीं होता बल्कि यहां मिट्टी का रावण बनाकर उसे रौंदा जाता है और उसी मिट्टी पर जेटी समाज के युवा पहलवानी और कुश्ती करते हैं. करीब 300 सालों से यहां निभाई जा रही इसी परंपरा को इस साल भी उसी शिद्दत से  निभाया गया.

कोटा में दशहरे (Dussehra) के मौके पर इस साल भी मिट्टी के रावण बने. जेठी समाज के लोग नांता और किशोरपुरा इलाके में दो से तीन जगह इस तरह की परंपरा का निर्वहन करते हैं. इसके लिए श्राद्ध पक्ष शुरू होते ही रावण बनाने का काम शुरू हो जाता है जो कि अमावस्या तक चलता है. इसके बाद रावण के सिर और मुंह पर गेहूं के ज्वारे उगाए जाते हैं. वहीं नवरात्रि के 9 दिनों तक मंदिर के कपाट बंद रहते हैं जिसे नवमी के दिन खोला जाता है.

केवल मंदिर में पुजारी और इक्के-दुक्के लोगों को ही दूसरे दरवाजे से प्रवेश की अनुमति होती है. इस दौरान पारंपरिक गरबे का आयोजन होता है जिसमें केवल जेठी समाज के लोग ही हिस्सा लेते हैं. नांता मंदिर के सेवक सोहन जेठी ने बताया कि रावण को बनाने के लिए अखाड़े की मिट्टी का उपयोग किया जाता है. मिट्टी का रावण बनाने में दूध, दही, शक्कर और शहद का भी इस्तेमाल किया जाता है.

असल में कोटा के जेटी समाज के लोगों की यहां बसावट करीब 300 साल पुरानी है. जब एक विवाह संबंध के बाद कच्छ, गुजरात की राजकुमारी के साथ जेटी समाज के लोग कोटा आए थे. इस बीच पहलवानी करने वाले जेटी पहलवानों ने यहां पर एक कुश्ती में विदेश से आए पहलवानों को पछाड़ा तो कोटा रियासत ने 3 अखाड़े बनाकर जेटी लोगों को कोटा में ही बसा दिया. इसके बाद कच्छ के जेटी समाज की मिट्टी के रावण की परंपरा उनके साथ कोटा में आकर यहां मिट्टी के रावण के रूप में रचबस गई.

दशहरे का सबसे बड़ा आकर्षण आज भी रावण दहन:

जेटी समाज के लोग इस मौके पर अपनी कुलदेवी लिंबजा माता का पूजन करते हैं और मिट्टी के रावण को रौंदकर उस पर मल्लयुद्व की परंपरा निभाते हैं. नान्ता के मिट्टी के रावण जैसी ही परंपरा ब्रजनाथजी जैसे कुछ भीतरी शहर के मंदिरों में भी निभाई जाती है. जहां गोबर का रावण बनाकर उसकी शयन आरती उतारी जाती है.

वहीं कोटा के दशहरा मैदान में भी दशहरे की पूर्वसंध्या पर रावण के खड़ा हो जाने के बाद लोग उस पर कंकड़ मारने पहुंचते हैं. इस विश्वास के साथ कि इससे घर की सारी बुराईयों और बीमारियों का नाश हो जाएगा. बहरहाल दशकों से सैकड़ों सालों पुरानी ये सभी लोकपरंपराएं किसी न किसी रूप में इस दशहरे पर भी निभाई जा रही है लेकिन दशहरे का सबसे बड़ा आकर्षण आज भी रावण दहन ही है.