इज़राइल में नेतन्याहू की आश्चर्यजनक राजनीतिक वापसी, आगे की राह हो सकती है मुश्किल

वाशिंगटन: इज़राइल के राजनीतिक जादूगर ने एक बार फिर कर दिखाया. 2021 में पद से हटाए गए नेतन्याहू इजरायल के पहले प्रधान मंत्री हैं, जिन्हें महाभियोग का सामना करना पड़ा और उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मुकदमे अभी भी चल रहे हैं. ऐसे में बेंजामिन नेतन्याहू ने आश्चर्यजनक रूप से वापसी की है. केवल चार वर्षों में चार अनिर्णायक चुनावों के बाद, एक नवंबर को पांचवें राष्ट्रीय चुनाव में इजरायल ने नेतन्याहू के दक्षिणपंथी दल को निर्णायक जीत दिलाई. कुछ मायनों में यह एक बड़े आश्चर्य के रूप में नहीं आना चाहिए. नेतन्याहू वर्षों से उनके राजनीतिक जीवन को खत्म बताने वालों को धता बता रहे हैं. उन्होंने 1999 में अपनी हार के बाद जीत हासिल की, फिर 2006 के चुनावों में एक अपमानजनक हार के बाद वह फिर जीतकर आए.

अब, राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों नफ्ताली बेनेट और यायर लैपिड के लिए पिछले साल प्रीमियरशिप हारने के बाद नेतन्याहू के करियर को खत्म करने की घोषणा करने वाले पंडित एक बार फिर गलत साबित हुए हैं. नेतन्याहू की जीत का मतलब है कि लगभग चार साल तक इजरायल को पंगु बनाने वाला गतिरोध आखिरकार खत्म हो सकता है, जिसे अब 64 सीटों का बहुमत दिया गया है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि उनकी परेशानी खत्म हो जाएगी - बल्कि बढ़ भी सकती है. इजरायल की राजनीति के एक विद्वान के रूप में, मेरा मानना ​​​​है कि शासन से जुड़ा एक दु:स्वप्न इजरायल के सबसे लंबे समय तक प्रधान मंत्री रहे नेतन्याहू की प्रतीक्षा कर रहा है.

लिबरल, तुलनात्मक रूप से
नेतन्याहू इजरायल के इतिहास में सबसे दक्षिणपंथी और धार्मिक सरकार बनाने के लिए तैयार हैं. उनकी दक्षिणपंथी लिकुद पार्टी अति-राष्ट्रवादी और अति-रूढ़िवादी सहयोगियों के साथ गठबंधन में शासन करेगी. इन पार्टियों में से एक, धुर दक्षिणपंथी रिलीजियस ज़ियोनिस्ट पार्टी के कट्टरपंथी एजेंडे में वेस्ट बैंक, जिसे वह इसराइल में शामिल करना चाहते हैं, में यहूदी बस्तियों का निरंकुश विस्तार करना; सैनिकों को अपने वरिष्ठ अधिकारियों से पूर्व अनुमति, जैसा कि फिलहाल नियम है, के बिना फिलिस्तीनी हमलावरों पर गोली चलाने में सक्षम बनाना; ‘‘वफादार’’ अरब नागरिकों को इज़राइल में उनके घरों से निष्कासित करना; और टेंपल माउंट पर यहूदी प्रार्थना की अनुमति देना शामिल है. दशकों से अल-अक्सा मस्जिद परिसर में प्रार्थना करने की अनुमति नहीं होने के चलते इस कार्य को मुसलमानों द्वारा एक उकसावे के रूप में देखा जाएगा पार्टी सामाजिक मुद्दों पर भी गहरी रूढ़िवादी है, उदाहरण के लिए पार्टी ने येरूशलम प्राइड परेड पर प्रतिबंध लगाकर समलैंगिक अधिकारों को वापस लेने का आह्वान किया है. ऐसी नीतियां न केवल अंतरराष्ट्रीय समुदाय और कई इजरायलियों और फिलिस्तीनियों के लिए खतरनाक हैं, बल्कि वे नेतन्याहू को उनके अगले कार्यकाल में अंतहीन सिरदर्द देने का भी दम रखती हैं. हालांकि लंबे समय से इज़राइल के प्रमुख दक्षिणपंथी नेता होने के बावजूद, नेतन्याहू अपने कुछ नए राजनीतिक सहयोगियों की धुर-दक्षिणपंथी, धार्मिक विचारधारा को साझा नहीं करते हैं. मेरी 2014 की किताब, ‘‘व्हाई हॉक्स बीकम डव्स’’ में, मैं पूर्व प्रधानमंत्रियों और नेतन्याहू के प्रतिद्वंद्वियों एरियल शेरोन और एहुद ओलमर्ट के एक पूर्व-शीर्ष सहयोगी को यह कहते हुए उद्धृत करता हूं कि नेतन्याहू हालांकि ‘‘दक्षिणपंथी लोगों से घिरे हुए हैं, फिर भी इस समूह के सबसे उदार व्यक्ति हैं ”.

एक अलग विचारधारा
निश्चित रूप से, नेतन्याहू के पास एक रूढ़िवादी विश्वदृष्टि है. फिर भी, वह एक धर्मनिरपेक्ष, व्यावहारिक और जोखिम से बचने वाले राजनेता भी हैं. उनका लचीलापन वर्षों से कई मौकों पर प्रदर्शित होता रहा है. अपने पहले कार्यकाल में, उन्होंने ओस्लो शांति प्रक्रिया को जारी रखा, जिसकी उन्होंने विपक्ष के नेता के रूप में तीखी आलोचना की थी, हेब्रोन प्रोटोकॉल और वाई रिवर मेमोरेंडम पर हस्ताक्षर किए, जिसके कारण वेस्ट बैंक के क्षेत्रों से इजरायल की वापसी हुई. गाजा पट्टी से 2005 के एकतरफा विघटन के लिए उन्होंने तीन बार वोट किया - फिर वापसी के विरोध में इस्तीफा दे दिया. और जून 2009 में, उन्होंने द्वि-राज्य समाधान का सार्वजनिक रूप से समर्थन करके एक फ़िलिस्तीनी राज्य के लिए अपने आजीवन विरोध को त्याग दिया. फिर, उन्होंने बाद में अपनी स्थिति उलट दी. नेतन्याहू ने 2009 में राष्ट्रपति बराक ओबामा की मांग को भी स्वीकार कर लिया, ताकि शांति वार्ता को फिर से शुरू करने के लिए यहूदी बस्ती के निर्माण में 10 महीने की रोक लग सके - बातचीत जो अंततः किसी अंजाम तक नहीं पहुंच पाई. इसी तरह, अतीत में, नेतन्याहू ने चरमपंथियों के प्रभाव को कम करने के लिए मध्यमार्गी घटकों के साथ व्यापक-आधार वाले गठबंधन बनाने का प्रयास किया. लेकिन अब नेतन्याहू समर्थक और विरोधी गुट इजरायल की राजनीति में मजबूती से शामिल हो गए हैं और ऐसे में नेतन्याहू के पास वैचारिक रूप से संकीर्ण, धुर दक्षिणपंथी गठबंधन बनाने के अलावा कोई वास्तविक विकल्प नहीं है.

खुद का बनाया राक्षस
वास्तव में, धुर दक्षिणपंथ का उदय, जिसे वह तैयार कर रहे हैं, बड़े पैमाने पर नेतन्याहू का अपना खुद का बनाया एक राक्षस है. जैसे-जैसे इजरायली समाज दक्षिणपंथ की ओर जा रहा है, वह अधिक धार्मिक और रूढ़िवादी बन गया है, नेतन्याहू ने अपने आधार का विस्तार करने के लिए दक्षिण और वाम के बीच विवाद को बढ़ाया. पिछले एक दशक में नेतन्याहू ने खुद अपने देश में लोकलुभावन राष्ट्रवाद की लहर दौड़ाई है. उन्होंने और उनके वफादारों ने आलोचकों को - चाहे वे मीडिया के सदस्य हों, सुरक्षा प्रतिष्ठान के पूर्व वरिष्ठ सदस्य, राजनीतिक मध्यमार्गी या फिर चाहे रूढ़िवादी समर्थक से प्रतिद्वंद्वी बने साथी - वामपंथी, आउट-ऑफ-टच अभिजात्य बताकर उनकी आलोचना की.

एक चुनौती बहुत दूर?
संभावित कलह के अग्रदूत के रूप में, नेतन्याहू पहले ही संकेत दे चुके हैं कि उनकी सरकार रिलीजियस जिओनिस्ट पार्टी के होमोफोबिक एजेंडे को समायोजित करने के लिए एलजीबीटीक्यू अधिकारों के संबंध में यथास्थिति में बदलाव नहीं करेगी. पिछली मिसाल को देखते हुए, मेरा मानना ​​​​है कि यह भी संभव है कि वह टेंपल माउंट पर यहूदियों को प्रार्थना करने से रोककर यथास्थिति बनाए रखेंगे - एक ऐसी स्थिति जिसका उन्होंने अतीत में पालन किया है. हालांकि टेंपल माउंट पर यहूदी उपासकों की चढ़ाई को नियंत्रित करना उनके लिए मुश्किल हो सकता है, जो हाल के वर्षों में काफी बढ़ गया है. नए गठबंधन की प्राथमिकताओं में शीर्ष पर रहना, हालांकि, एक ऐसा मुद्दा है जिससे नेतन्याहू को व्यक्तिगत रूप से लाभ होगा: न्यायपालिका में सुधार जैसे परिवर्तनों का व्यावहारिक प्रभाव अदालतों और अटॉर्नी जनरल के अधिकार को कमजोर करना होगा. नेतन्याहू के मुकदमे को रद्द करने वाला कानून पारित करना भी कार्ड में हो सकता है. अपने राजनीतिक और व्यक्तिगत हितों का पीछा करते हुए इजरायल के नाजुक लोकतंत्र को संरक्षित करना एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है - जिसपर पार पाना नेतन्याहू जैसे राजनीतिक जादूगर को भी दुर्गम लग सकता है. सोर्स- भाषा