जयपुर: डॉ. भीमराव अम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. देव स्वरूप ने डिग्री विवाद के बीच पद से इस्तीफा दे दिया है. इस बीच विश्वविद्यालय के नए कुलपति की सर्च कमेटी में मेंबर बनाए जाने को लेकर नया विवाद सामने आया है. विश्वविद्यालय की बोम कमेटी ने एक ऐसे शिक्षाविद को सर्च कमेटी का सदस्य नामित कर दिया था, जो कि पहले से विश्वविद्यालय की कमेटी में सदस्य हैं. हालांकि राजभवन के दखल के बाद विश्वविद्यालय बोम को अपने फैसले को पलटना पड़ा है.
डॉ. भीमराव अम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय से इन दिनों एक के बाद एक विवाद सामने आ रहे हैं. पहले कुलपति डॉ. देव स्वरूप की एलएलबी डिग्री को लेकर विवाद सामने आया. जिसमें राजभवन द्वारा जांच बिठाने के बाद जांच कमेटी को सहयोग नहीं करते हुए कुलपति डॉ. देव स्वरूप ने पद से इस्तीफा दे दिया है. वहीं नए कुलपति के चयन के लिए बनाई गई सर्च कमेटी में विश्वविद्यालय की बोम ने एक ऐसे शिक्षाविद को नामित कर दिया, जो कि पहले से ही विश्वविद्यालय के साथ जुड़े हुए हैं.
दरअसल, 21 अक्टूबर 2022 को राज्यपाल कलराज मिश्र के प्रमुख सचिव सुबीर कुमार ने डॉ. भीमराव अम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय के कुलसचिव अयूब खान को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में नए कुलपति के चयन के लिए खोजबीन समिति में सदस्य के मनोनयन के लिए लिखा गया था. दरअसल खोजबीन समिति में यूजीसी, राजभवन, राज्य सरकार के सदस्यों के अलावा एक सदस्य विश्वविद्यालय के बोर्ड द्वारा नामित किया जाता है. इस पत्र के जवाब में अगले ही दिन यानी 22 अक्टूबर को विश्वविद्यालय के बोर्ड ऑफ मैनेजमेंट यानी बोम की बैठक हुई. इस बैठक में प्रोफेसर रनबीर सिंह को खोजबीन समिति के सदस्य के तौर पर नामित किया गया. प्रोफेसर रनबीर सिंह नलसार, हैदराबाद में लॉ यूनिवर्सिटी और दिल्ली में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति रह चुके हैं.
इस तरह हुआ विवाद:-
- विश्वविद्यालय प्रशासन ने 27 अक्टूबर को राजभवन को पत्र लिखा
- प्रमुख सचिव सुबीर कुमार को प्रो. रनबीर सिंह का नाम सर्च कमेटी सदस्य के रूप में भेजा
- 22 अक्टूबर को हुई बोम के इस फैसले पर राजभवन में हुई शिकायत
- कहा गया, प्रो. रनबीर सिंह पहले से विश्वविद्यालय की कमेटी फॉर स्टेट्यूट्स के सदस्य
- विश्वविद्यालय एक्ट 2019 के अधिनियम संख्या 6 की धारा 11 (4) का उल्लंघन बताया
- इसके तहत वही व्यक्ति बन सकता है कुलपति खोजबीन समिति का सदस्य
- जो विश्वविद्यालय और उसके महाविद्यालयों से किसी भी रूप में जुड़ा हुआ नहीं हो
- इस सम्बंध में 31 अगस्त 2020 को राजभवन ने भी जारी किया था स्पष्ट परिपत्र
- इसमें विश्वविद्यालय से सम्बद्ध व्यक्ति को मनोनीत करने पर अधिनियम की होगी अवहेलना
- इससे खोजबीन/ चयन समिति का गठन पारदर्शी नहीं रह पाने की बात का भी उल्लेख
- इस पर विश्वविद्यालय प्रशासन ने 30 नवंबर की बैठक में कमेटी फॉर स्टेट्यूट्स भंग की
- कमेटी भंग कर माना कि अब प्रो. रनबीर सिंह का विश्वविद्यालय से कोई संबंध नहीं
विश्वविद्यालय प्रशासन ने 22 अक्टूबर और 30 नवंबर को जब प्रोफेसर रनबीर सिंह को सदस्य नामित किए जाने का प्रस्ताव पारित किया, तब यह कार्य कुलपति डॉ. देव स्वरूप की अध्यक्षता में ही किया गया. यानी विश्वविद्यालय अधिनियम के उल्लंघन में खुद डॉ. देव स्वरूप ही शामिल थे. 30 नवंबर को विश्वविद्यालय की बोम बैठक में यह प्रयास किया गया कि प्रोफेसर रनबीर सिंह को ही बतौर सदस्य रखा जाए. इसके लिए पूर्व की कमेटी फॉर स्टेट्यूट्स में उनका नाम होने पर उस कमेटी को ही भंग कर दिया गया. हालांकि विश्वविद्यालय प्रशासन के इस निर्णय में भी खामियां देखते हुए एडवोकेट अखिल शुक्ला ने राजभवन को शिकायत भेजी कि विश्वविद्यालय प्रशासन का यह निर्णय नियमों के मुताबिक सही नहीं है.
राजभवन के दखल से बदला गया नाम:-
- 3 दिसंबर की शिकायत के आधार पर राजभवन ने फिर लिखा पत्र
- राज्यपाल के सहायक सचिव मोहम्मद रईस ने 12 दिसंबर को मांगी सफाई
- लिखा, जिस समय प्रोफेसर रनबीर सिंह नामित किए खोजबीन समिति के सदस्य
- उस समय तक अस्तित्व में थी कमेटी फॉर स्टेट्यूट्स
- इस पर 17 दिसंबर को विश्वविद्यालय प्रशासन ने बुलाई बोम की स्पेशल बैठक
- स्पेशल बोम बैठक में बदला गया प्रोफेसर रनबीर सिंह का नाम
- अब नागपुर नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के कुलपति प्रो. विजेन्द्र कुमार नामित
खबर के लिए विश्वविद्यालय खोज बीन समिति से सम्बंधि पत्र असाइनमेंट के व्हाट्सएप पर भेजे हैं. साथ में भीमराव अम्बेडकर विधि विश्वविद्यालय भवन और कुलपति डॉ. देव स्वरूप के फाइल विजुअल उपयोग में लेवें.