VIDEO: कुछ वर्ष पहले बाघ विहीन हो चुका था सरिस्का, अब फिर सुनाई देने लगी है वनराज की दहाड़, देखिए ये खास रिपोर्ट

जयपुर: कुछ वर्ष पहले बाघ विहीन हो चुके सरिस्का में अब फिर से वनराज की दहाड़ सुनाई देने लगी हैं. बाघों की शरण स्थली से गांवों के विस्थापन का ही नतीजा है कि सरिस्का में बाघों की आबादी भी बढ़ी है और इको सिस्टम भी तेजी से मजबूत हो रहा है. महज ढाई वर्ष में 3 गांवों का विस्थापन किया जा चुका है और 2 गांवों ने विस्थापन की सहमति दे दी है. जबकि पिछले 3 दशक में महज 3 गांव ही सरिस्का से विस्थापित हो सके थे. 

सरिस्का के कोर क्षेत्र में बसे गांव वन और वन्य जीवो के लिए सबसे बड़ा खतरा रहे हैं. करीब डेढ़ दशक पहले जब सरिस्का बाघ विहीन हुआ तो उसके पीछे सबसे बड़ा कारण यहां बसे गांव ही थे. वन विभाग ने गांवों के विस्थापन के प्रयास तो किए लेकिन इनके पीछे दृढ़ इच्छा शक्ति नजर नहीं आई यही कारण रहा कि पिछले डेढ़ दशक में या यूं कहें कि वर्ष 2020 तक सरिस्का से महज तीन गांवों को ही विस्थापित किया जा सका था. इसके बाद यहां फील्ड डायरेक्टर के तौर पर रूप नारायण मीणा का पदस्थापन हुआ. रूप नारायण मीणा ने गांव विस्थापन को चुनौती के तौर पर लिया और पूरी टीम को साथ लेकर महज ढाई वर्ष में 3 गांव डाबली, पानीढाल और लॉज को विस्थापित कराने में सफलता अर्जित की. इसके बाद नाथूसर और बेरा गांव भी विस्थापन के लिए सहमति दे चुके हैं. हरिपुरा और सुकोला गांव से भी आधे परिवारों को विस्थापित किया जा चुका है. इसका फायदा यह हुआ कि जिन गांव को यहां से विस्थापित गया उस क्षेत्र में ग्रास लैंड विकसित की गई जंगल और सघन हुए और कुछ बाघों ने वहां अपनी टेरिटरी भी बना ली है. पीसीसीएफ हॉफ डॉक्टर डीएन पांडे ने भी बेरा गांव निवासियों से मुलाकात की जो खुद आकर स्वयं को विस्थापित करने की मांग कर रहे थे. डॉक्टर पांडे का कहना है कि सरिस्का के लिए यह अंतिम अवसर है. इसलिए पूरी शिद्दत से काम करना होगा गांव विस्थापन की प्रक्रिया पिछले ढाई साल में तेजी से आगे बढ़ी है. उम्मीद है कि इससे इको सिस्टम मजबूत होगा.

राज्य वन विभाग के प्रधान मुख्य वन संरक्षक एवं वन बल प्रमुख डॉ डीएन पांडे ने अपने सरिस्का के संक्षिप्त दौरे पर बहुत ही बारीकी से हर व्यवस्था का मुआयना किया, जरूरतों को जाना और समस्याओं को भी देखा ताकि उनका निराकरण किया जा सके. इस दौरान फील्ड डायरेक्टर रूप नारायण मीणा, डीएफओ देवेंद्र जगावत, डीएफओ विस्थापन जगदीश दहिया व अन्य अधिकारी एवं कर्मचारी उनके साथ मौजूद रहे. पांडे ने नए सफारी रूट को भी देखा. एन्क्लोजर में बूढ़ी मां बाघिन एसटी 2 को देखा ताकि उसकी वर्तमान स्थिति का पता लगाया जा सके. रणथंभौर से सरिस्का शिफ्ट किए गए बाघ टी 113 जिसे यहां एसटी 29 यानी रूप कुमार का नाम दिया गया है... उसकी स्थिति भी जानी. रूपनारायण मीणा और उनकी टीम ने जिस तरह से सरिस्का में एकजुट होकर काम किया है उसके लिए पांडेय ने उनकी पीठ थपथपाई. सरिस्का में फिलहाल बाघों की संख्या 25 है जल्दी ही यहां रणथंभौर से एक बाघिन और लाई जा सकती है.  जिस बेर गांव ने विस्थापन की सहमति दी है उसके आसपास ही बाघ रूप कुमार भी अपनी टेरिटरी तलाश रहा है. डॉक्टर पांडेय का कहना है कि सरिस्का में राज्य के सभी जंगलों से बेहतर प्रे बेस है, यह का इको सिस्टम और जंगलों से बेहतर है. यहां तेजी से ग्रास लैंड विकसित की जा रही है. ऐसे में कोशिश की जा रही है कि आने वाले समय में सरिस्का सभी टाइगर रिजर्व में एक मिसाल बन कर उभरे. डॉक्टर पांडे ने एलिवेटेड रूट परियोजना, गांव विस्थापन, वन नाकों के विकास एवं जीर्णोद्धार, कर्मचारियों की सुझाव एवं शिकायत, ट्रैकिंग, सर्विलांस सिस्टम सहित तमाम व्यवस्थाओं का जायजा लिया. अवैध खनन गतिविधियों को सख्ती से रोकने और सरिस्का में एक बार फिर स्लॉथ बियर बस आने पर भी अधिकारियों से चर्चा की गई.

दरअसल बाघ विहीन हो चुके सरिस्का में बाघों का पुनर्वास बड़ी चुनौती था लेकिन इस खौफनाक कहानी को दोबारा नया दोहराया जाए इसके लिए गांवों का विस्थापन और भी बड़ी चुनौती रहा. इस चुनौती से पार पाने में पिछले ढाई वर्ष में फील्ड डायरेक्टर रूप नारायण मीणा के नेतृत्व में जोरदार काम हुआ है. उम्मीद की जा रही है कि सरिस्का आने वाले दिनों में राज्य का ही नहीं वरन उत्तर भारत का श्रेष्ठ टाइगर रिजर्व बनकर उभरेगा.