जयपुर: अरुण चतुर्वेदी के राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष बनने के साथ प्रदेश में सियासी नियुक्तियों का नया दौर शुरू हुआ है, लेकिन बोर्डों, आयोगों में अध्यक्ष या सदस्य बनने के बाद कैबिनेट,राज्यमंत्री और अप मंत्री का दर्जा देने में सावधानी बरती जा रही है . अब तक धरोहर संरक्षण प्राधिकरण अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावट और राज्य वित्त आयोग अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी को ही कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिला है और बाकी सात गणमान्यों को दर्जे का इंतजार है.
अब तक भजनलाल सरकार में हुई नौ सियासी नियुक्तियों में सात गणमान्यों को मंत्री, राज्य मंत्री या उप मंत्री स्तर के दर्जे का इंतज़ार है.
चतुर्वेदी को मिला कैबिनेट मंत्री का दर्जा
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता, पूर्व मंत्री और राज्य वित्त आयोग के नवनियुक्त अध्यक्ष अरुण चतुर्वेदी को राजस्थान सरकार ने कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया है.
इस आदेश के तहत उन्हें कैबिनेट मंत्री के समकक्ष सभी सुविधाएं प्राप्त होंगी, जिनमें वेतन, भत्ते, आवास, वाहन, स्टाफ और दूरसंचार सुविधाएं शामिल हैं.
कैबिनेट मंत्री को यह मिलती हैं सुविधाएं
-₹65,000 प्रतिमाह वेतन
-₹55,000 सत्कार भत्ता प्रतिमाह
-₹2,000 प्रतिदिन का दैनिक भत्ता (अधिकतम 180 दिनों के लिए)
-₹10,000 प्रतिमाह टेलीफोन, पोस्टपेड मोबाइल, ब्रॉडबैंड और इंटरनेट के लिए
-सरकारी आवास, वाहन और स्टाफ की सुविधा
इससे पहले, फरवरी 2024 में राजस्थान धरोहर संरक्षण प्राधिकरण के अध्यक्ष ओंकार सिंह लखावत को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था.
अब तक सिर्फ इन्हीं दो गणमान्यों को यह सम्मानजनक दर्जा प्राप्त हो सका है.
सात अन्य अध्यक्ष अब भी दर्जे के इंतजार में
राज्य सरकार ने विभिन्न बोर्डों व आयोगों में कुल नौ गणमान्यों को सियासी नियुक्ति दी है, लेकिन इनमें से किसी को अभी तक कैबिनेट मंत्री या राज्य मंत्री का दर्जा नहीं मिला है. यह स्थिति सियासी गलियारों में असंतोष और चर्चा का विषय बनी हुई है.
दर्जे से वंचित अध्यक्ष:
-रामगोपाल सुथार – अध्यक्ष, विश्वकर्मा बोर्ड
-प्रेमसिंह बाजौर – अध्यक्ष, सैनिक कल्याण बोर्ड
-प्रहलाद टांक – अध्यक्ष, माटी कला बोर्ड
-जसवंत सिंह – अध्यक्ष, जीव-जंतु कल्याण बोर्ड
-ओमप्रकाश भड़ाना – अध्यक्ष, देवनारायण बोर्ड
-सी. आर. चौधरी – अध्यक्ष, किसान आयोग
-राजेन्द्र नायक – अध्यक्ष, अनुसूचित जाति वित्त एवं विकास आयोग
साथ ही, राज्य ओबीसी (राजनीतिक वर्ग) आयोग में भी गैर-शासकीय अध्यक्ष/सदस्य की नियुक्ति हुई है, पर उन्हें भी अब तक कोई संवैधानिक दर्जा प्राप्त नहीं हुआ है.
दर्जे के इंतज़ार में बैठे गणमान्यों के लिए बेचैनी बढ़ रही है. साथ ही दो ही गणमान्यों को दर्जा देने के सियासी मायने भी निकाले जाते रहे हैं.