नई दिल्ली: दिल्ली विधानसभा चुनाव के प्रचार का शोर आज थम चुका है.पिछले दो चुनाव में खाता नहीं खोल पाई कांग्रेस पार्टी के लिए इस बार भी सियासी परिस्थितियां अनुकूल बिल्कुल नजर नहीं आ रही.हालांकि कांग्रेस ने परफॉर्मेंस सुधारने के लिए चुनाव तारीखों से पहले अपने प्रत्याशी घोषित कर दिए थे.पर जानकारों के मुताबिक दिल्ली के रण में मुख्य मुख्य मुकाबला आप पार्टी और भाजपा के बीच में ही है.कांग्रेस की उम्मीदें दलित,झुग्गी झोंपड़ी और मुस्लिम वोट बैंक पर टिकी हुई है.
देश की राजधानी दिल्ली.जहां 1998 से लेकर 2013 तक लगातार 15 साल कांग्रेस की हुकूमत रही.शीला दीक्षित के नेतृत्व में दिल्ली में कांग्रेस ने विकास की गंगा बहा दी थी.लेकिन अन्ना हजारे आंदोलन से निकले अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को चुनौती दी और दिल्ली से कांग्रेस साफ हो गई.तब से कांग्रेस पिछले 3 चुनाव में दिल्ली में लगातार संघर्ष कर रही है.2013 के चुनाव में कांग्रेस को 8 सीटें मिली तो उसके बाद हुए दो चुनाव में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुला.कुछ ऐसे ही हाल कांग्रेस के अब हो रहे चुनाव में नजर आ रहे है...दरअसल दलित,कच्ची-झुग्गी बस्ती और मुस्लिम वोट कांग्रेस से छिटकर आप पार्टी में जाने से पंजे वाली पार्टी हाशिए पर चली गई.
दिल्ली में क्यों पिछड़ी कांग्रेस:
-शीला दीक्षित जैसी करिश्माई लीडर का अभाव
-कांग्रेस का परंपरागत वोट बैंक पार्टी से छिटका
-दलित,कच्ची बस्ती-झुग्गी झोपड़ी और मुस्लिम वोट बैंक चला गया आप में
-हाईकमान ने नई लीडरशिप डेवलप पर फोकस नहीं किया
-दिल्ली कांग्रेस नेताओं की गुटबाजी
-संगठन की सक्रियता पर नहीं किया फोकस
-जातिगत औऱ सियासी समीकरण साधने में कांग्रेस रही फेल
ऐसे कईं सियासी कारण रहे जिसके चलते दिल्ली में कांग्रेस हार के बाद अब तक खड़ी नहीं हो पाई.इस बार भी कांग्रेस ने कोई खास रणनीति और मजबूती से दिल्ली का चुनाव नहीं लड़ा.यहां तक की पार्टी ने स्थायी पीसीसी चीफ की नियुक्ति तक नहीं की और कार्यकारी पीसीसी चीफ देवेन्द्र यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ रहे हैं.भले ही कांग्रेस ने इस बार समय रहते प्रत्याशियों का ऐलान कर डाला था, लेकिन दिग्गज नेताओं ने आखिरी दौर को छोड़कर चुनाव प्रचार से दूरी बनाए रखी.वहीं अलका लांबा और संदीप दीक्षित जैसे बड़े चेहरों ने चुनाव लड़ने से मना तक कर दिया था, लेकिन हाईकमान के कड़े रुख अख्तियार करने के बाद दोनों ने चुनाव लड़ने की हामी भरी.दिग्गज नेताओं के इस रुख से मतदाओं के बीच यह गलत संदेश फैल गया कि कांग्रेस चुनाव को लेकर बिल्कुल भी गंभीर नहीं है.चुनाव पूरा गांरटी लॉन्च और नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस करने के ईर्द गिर्द रहा.
दिल्ली के चुनावी रण में दिग्गजों ने आखिरी राउंड में प्रचार शुरु किया.राहुल और प्रियंका गांधी ने प्रचार थमने से एक हफ्ते पहले सभाएं करना शुरु किया.वहीं अध्यक्ष खड़गे ने तो केवल एक चुनावी सभा दिल्ली के रण में की.हालांकि पार्टी अपने इंटरनल सर्वे में एक दर्जन सीटों पर कड़ा मुकाबला मानकर चल रही है.लेकिन कांग्रेस अच्छा प्रदर्शन तभी कर पाएगी जब पार्टी से छिटककर आप पार्टी में गया दलित,झुग्गी झोपड़ी औऱ मुस्लिम वोट बैंक वापस पाले में आएगा.