जयपुर: रंगों का त्योहार होली हिंदू पंचांग के अनुसार हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि के दिन बाद मनाया जाता है. होली के एक दिन पहले पूर्णिमा तिथि पर होलिका दहन किया जाता है. इस बार होलिका दहन 24 मार्च 2024 को है फिर उसके एक दिन बाद 25 मार्च को होली खेली जाएगी. हिंदू धर्म में होली का त्योहार विशेष महत्व रखता है. होली के एक दिन पहले होलिका दहन होती है. जिसमें लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं. होली के दिन सभी मिलकर एक दूसरे को रंग, अबीर और गुलाल लगाते हैं. पाल बालाजी ज्योतिष संस्थान जयपुर जोधपुर के निदेशक ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार होलिका दहन के लिए एक घंटा 20 मिनट का ही समय रहेगा. इसकी वजह इस दिन उस दिन भद्रा प्रातः 9:55 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 11:13 तक भूमि लोक की रहेगी. जो की सर्वथा त्याज्य है. अतः होलिका दहन भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:13 से मध्य रात्रि 12:33 के मध्य होगा. होलिका दहन के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहा है. सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:34 बजे से अगले दिन सुबह 06:19 बजे तक है. वहीं रवि योग रवि योग सुबह 06:20 बजे से सुबह 07:34 बजे तक है.
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि होली के एक दिन पहले पूर्णिमा की तिथि में होलिका दहन किया जाता है. वहीं पूर्णिमा तिथि की शुरुआत 24 मार्च सुबह 8:13 मिनट से लेकर अगले दिन 25 मार्च सुबह 11:44 मिनट तक रहने वाली है. दिन भर उदय के कारण 24 मार्च को ही पूर्णिमा तिथि मान्य रहेगी. इस वर्ष होली का त्योहार 25 मार्च को मनाया जाएगा. जबकि इसके एक दिन पहले 24 मार्च को होलिका दहन है. होली उत्सव से आठ दिन पहले होलाष्टक लगेगा. होलाष्टक 17 मार्च से लग जाएगा.
होलिका दहन पर भद्रा का साया:
ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि पंचांग के अनुसार 24 मार्च को होलिका दहन के लिए लोगों के पास केवल 1 घंटा 20 मिनट का समय रहेगा. इसकी वजह इस दिन उस दिन भद्रा प्रातः 9:55 से आरंभ होकर मध्य रात्रि 11:13 तक भूमि लोक की रहेगी. जो की सर्वथा त्याज्य है. अतः होलिका दहन भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:13 से मध्य रात्रि 12:33 के मध्य होगा. उस दिन भद्रा की पूंछ शाम 06:33 बजे से शाम 07:53 बजे तक है, वहीं भद्रा का मुख शाम 07:53 बजे से रात 10:06 बजे तक है. भद्रा योग रहेगा. भद्रा को अशुभ माना जाता है.
यथा भद्रायां हे न कर्तव्ये श्रावणी (रक्षाबंधन) फाल्गुनी (होलिकादहन) तथा.
श्रावणी नृपतिं हन्ति ग्राम दहति फाल्गुनी ॥
( मुहर्त्तचिंतामणि )
भद्रा समाप्ति के बाद होलिका दहन मुहूर्त:
साल 2024 में होलिका दहन का शुभ मुहूर्त भद्रा के पश्चात मध्य रात्रि 11:13 से मध्य रात्रि 12:33 तक है. होलिका दहन के लिए 1 घंटा 20 मिनट का शुभ समय प्राप्त होगा. होलिका दहन के दिन सर्वार्थ सिद्धि योग और रवि योग बन रहा है. सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 07:34 बजे से अगले दिन सुबह 06:19 बजे तक है. वहीं रवि योग रवि योग सुबह 06:20 बजे से सुबह 07:34 बजे तक है.
नहीं होते भद्रा में शुभ कार्य:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि पुराणों के अनुसार भद्रा सूर्य की पुत्री और शनिदेव की बहन है. भद्रा क्रोधी स्वभाव की मानी गई हैं. उनके स्वभाव को नियंत्रित करने भगवान ब्रह्मा ने उन्हें कालगणना या पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टिकरण में स्थान दिया है. पंचांग के 5 प्रमुख अंग तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण होते हैं. करण की संख्या 11 होती है. ये चर-अचर में बांटे गए हैं. इन 11 करणों में 7वें करण विष्टि का नाम ही भद्रा है. मान्यता है कि ये तीनों लोक में भ्रमण करती हैं, जब मृत्यु लोक में होती हैं, तो अनिष्ट करती हैं. भद्रा योग कर्क, सिंह, कुंभ व मीन राशि में चंद्रमा के विचरण पर भद्रा विष्टिकरण का योग होता है, तब भद्रा पृथ्वीलोक में रहती है.
होलिका दहन विधि:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होलिका दहन का तैयारी कई दिनों पहले से होने लगती हैं. होलिका दहन वाले स्थान पर लकड़ियां, उपले और अन्य जलाने वाली चीजों को एकत्रित किया जाता है. इसके बाद होलिका दहन के शुभ मुहूर्त पर विधिवत रूप से पूजन करते हुए होलिका में आग लगाई जाती है. फिर होलिका की परिक्रमा करते हुए पूजा सामग्री को होलिका में डाला जाता है.
होली की पौराणिक कथा:
भविष्यवक्ता और कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि होली का त्योहार मुख्य रूप से विष्णु भक्त प्रह्राद से जुड़ी है. भक्त प्रह्लाद का जन्म राक्षस परिवार में हुआ था, परन्तु वे भगवान विष्णु के अनन्य भक्त थे. उनके पिता हिरण्यकश्यप को उनकी ईश्वर भक्ति अच्छी नहीं लगती थी इसलिए हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को अनेकों प्रकार के कष्ट दिए. हिरण्यकश्यप ने कई बार भक्त प्रह्राल को मारने की कोशिश की लेकिन हर बार नकामी ही मिली. तब हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका को भक्त प्रह्राद को मारने की जिम्मा सौपा. होलिका को आग में न जलने का वरदान प्राप्त था. उनकी बुआ होलिका जिसको ऐसा वस्त्र वरदान में मिला हुआ था जिसको पहनकर आग में बैठने से उसे आग नहीं जला सकती थी. होलिका भक्त प्रह्लाद को मारने के लिए वह वस्त्र पहनकर उन्हें गोद में लेकर आग में बैठ गई. भक्त प्रह्लाद की विष्णु भक्ति के फलस्वरूप होलिका जल गई लेकिन भक्त प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ. इसके प्रथा के चलते हर वर्ष होलिका दहन किया जाता है और अगले दिन रंगों की होली खेली जाती है.