Bombay High Court ने दृष्टिबाधित छात्रा को फिजियोथेरेपी का अध्ययन करने की अनुमति दी

Bombay High Court ने दृष्टिबाधित छात्रा को फिजियोथेरेपी का अध्ययन करने की अनुमति दी

मुंबई : बंबई उच्च न्यायालय ने एक दृष्टिबाधित छात्रा को फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम करने की अनुमति देते हुए कहा है कि एक समाज और राज्य सरकार के रूप में ‘हमारा सामूहिक प्रयास’ उन लोगों की सहायता करने के तरीके ढूंढना है जिन्हें मदद की सबसे अधिक आवश्यकता है.

न्यायमूर्ति गौतम पटेल और न्यायमूर्ति नीला गोखले की पीठ ने फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम के नियामक ‘महाराष्ट्र स्टेट ऑक्यूपेशनल थेरेपी एंड फिजियोथेरेपी काउंसिल’ को उसके इस रुख के लिए कड़ी फटकार लगाई कि किसी भी सीमा तक के दृष्टिबाधित छात्र को फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम में शामिल होने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

निर्देश वाली याचिका को किया मंजूर: 

अदालत ने 20 जून को पारित अपने आदेश में 40 प्रतिशत तक दृष्टिदोष विकलांगता से पीड़ित छात्रा जिल जैन की फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम में दाखिले के लिए निर्देश वाली याचिका को मंजूर कर लिया. काउंसिल ने जैन की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि फिजियोथेरेपिस्ट को ऑपरेशन थिएटर, सर्जिकल कक्ष और गहन चिकित्सा कक्ष (आईसीयू) में जिम्मेदारी निभानी होती है. इसलिए, किसी भी हद तक दृष्टिबाधित छात्रा को फिजियोथेरेपी के अध्ययन या ‘प्रैक्टिस’ की अनुमति नहीं दी जा सकती है.

सहायता के तरीके खोजने का निरंतर प्रयास:

पीठ ने अपने आदेश में कहा कि ऐसे कई छात्र, वकील, सहायक और अन्य लोग हैं, जो दृष्टिबाधित हैं और देश भर में कई अदालतों में सफलतापूर्वक काम कर रहे हैं. अदालत ने कहा कि हमें नियामक काउंसिल के इस दृष्टिकोण पर अपनी गहरी निराशा और नाराजगी व्यक्त करनी चाहिए. उच्च न्यायालय ने कहा कि एक समाज के रूप में हमें और विशेष रूप से राज्य सरकार को मदद की सबसे अधिक आवश्यकता वाले लोगों की सहायता के तरीके खोजने का निरंतर प्रयास करना होगा और यह कभी न कहें कि कुछ नहीं किया जा सकता.

वैधानिक कर्तव्य के साथ विश्वासघात:

पीठ ने कहा कि काउंसिल का रुख न केवल किसी भी न्यायिक, संवैधानिक या नैतिक समझ के लिए अस्वीकार्य है, बल्कि स्पष्ट रूप से, संवैधानिक आदेश और वैधानिक कर्तव्य के साथ विश्वासघात है. उच्च न्यायालय ने कहा कि हमें यह सुझाव देना गैर-जिम्मेदाराना और पूरी तरह से अनुचित लगता है कि दिव्यांग लोग नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी के मानकों को पूरा नहीं कर सकते या उनकी दिव्यांगता उन्हें इन आवश्यकताओं को पूरा करने में असमर्थ बनाती है.

न्याय की हर अवधारणा का होगा उपहास: 

पीठ ने कहा कि काउंसिल का मानना है कि उन लोगों को, जो दिव्यांग हैं, जिसमें उनकी कोई गलती नहीं है, यह बताना बिल्कुल ठीक है कि मानव प्रयास के कुछ क्षेत्रों को उनके लिए हमेशा के लिए बंद कर दिया जाना चाहिए. उच्च न्यायालय ने कहा कि काउंसिल के इस रुख को स्वीकार करना, कानून के विपरीत और न्याय की हर अवधारणा का उपहास होगा.

दृष्टिबाधित होना स्वीकार्य नहीं:

जैन ने मार्च 2022 में कक्षा 12वीं की पढ़ाई पूरी की और फिजियोथेरेपी का अध्ययन करने की इच्छा जताई. हालांकि, स्नातक चिकित्सा शिक्षा पर विनियमों के प्रावधानों के अनुसार, फिजियोथेरेपी का अध्ययन या ‘प्रैक्टिस’ करने की अनुमति के लिए दृष्टिबाधित होना स्वीकार्य नहीं है. अक्टूबर 2022 में उच्च न्यायालय द्वारा पारित एक अंतरिम आदेश द्वारा, जैन को नीट (स्नातक) 2022 में उपस्थित होने की अनुमति दी गई थी और उन्हें मुंबई के नायर अस्पताल में फिजियोथेरेपी पाठ्यक्रम में प्रवेश दिया गया था. वह इस समय पाठ्यक्रम के प्रथम वर्ष में हैं. पीठ ने निर्देश दिया कि केवल दृष्टि दोष के आधार पर जैन का प्रवेश और अध्ययन बाधित या रद्द नहीं किया जाना चाहिए. सोर्स भाषा