जयपुर: प्रदेश में 7 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव को लेकर रणभेरी बज चुकी है. 13 नवंबर को चुनाव है, लेकिन इन 7 सीटों पर चुनावी गणित धीरे धीरे उलझती जा रही है. प्रदेश के बड़े नेताओं की साख इन चुनावों में दांव पर है. बात कांग्रेस की करें, तो पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली और कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट व भंवर जितेंद्र सहित कई सांसदों व विधायकों की साख दांव पर लगी हुई है. कांग्रेस के सामने अपनी चारों सीटों को बचाना सबसे बड़ी चुनौती है.
पिछले साल विधानसभा चुनाव हारने के बाद इस साल लोकसभा चुनाव में बड़ी सफलता हासिल करने से प्रदेश की विपक्षी पार्टी कांग्रेस उत्साहित थी, लेकिन अब एक बार फिर उसे चुनाव की अग्निपरीक्षा से गुजरना है. प्रदेश में सात विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने जा रहे हैं. इन सात सीटों में से चार सीटें कांग्रेस के पास थी. ऐसे में अब कांग्रेस के सामने सबसे बड़ी चुनौती इन चारों सीटों को बरकरार रखना है. चुनाव की इस चुनौती में कांग्रेस के बड़े नेताओं की साख दांव पर लगी हुई है. चाहे प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा हो या फिर पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली हो या फिर कांग्रेस महासचिव सचिन पायलट व भंवर जितेंद्र सिंह सभी इन चुनावों में सफलता को तलाश रहे हैं. बड़े नेता होने नाते इनकी जिम्मेदारी तो सबसे पहले तय है ही लेकिन इनके अलावा भी विधानसभा सीट वाइज कई नेताओं की सांख दांव पर लगी हुई है.
कांग्रेस के दिग्गजों की साख लगी है दांव पर
- गोविंद सिंह डोटासरा, अशोक गहलोत, टीकाराम जूली, सचिन पायलट व भंवर जितेंद्र सिंह पर बड़ा जिम्मा
- सातों सीटों पर टिकट वितरण में इन नेताओं की रही है अहम भूमिका
- सभी सीट पर जातीय समीकरण के साथ-साथ सियासी समीकरण भी अलग है
- कांग्रेस के लिए भी अपनी जमीन बचाना किसी चुनौती से कम नहीं है
- दौसा, देवली-उनियारा व झुंझुनूं पर सबसे ज्यादा टिकी है निगाहें
- कांग्रेस के मौजूदा सांसदों के अनुसार दिए गए थे इन सीटों पर टिकट
- तीनों ही सांसद सचिन पायलट ग्रुप के माने जाते हैं
- ऐसे में इन तीनों सीटों पर सांसदों व पायलट पर टिका है दारोमदार
- दौसा में सांसद मुरारीलाल मीणा की पसंद से दिया गया है टिकट
- मुरारी के नजदीकी दीनदयाल बैरवा है विधायक पद के उम्मीदवार
- सचिन पायलट एक पूरे दिन दौरा कर चुके हैं दौसा विधानसभा सीट पर
- देवली-उनियारा सीट पर पायलट खेमे के सांसद हरीश मीणा की पसंद पर दिया टिकट
- विधायक से सांसद बने हरीश मीणा पर जीत दिलाने की बड़ी जिम्मेदारी है
- सांसद उम्मेदाराम बेनीवाल को भी यहां पर जिम्मेदारी देकर भेजा गया है
- मीणा और गुर्जर बाहुल्य है देवली-उनियारा विधानसभा सीट
- झुंझुनू की जाट बाहुल्य सीट कांग्रेस के गढ़ के रूप में देखी जाती है
- इस सीट पर कांग्रेस के ओला परिवार का लम्बे समय से कब्जा रहा है
- अब विधायक से सांसद बने बृजेन्द्र ओला की प्रतिष्ठा इस सीट से जुड़ी हुई है
- बृजेंद्र ओला ने अपने बेटे अमित ओला को दिलवाया है विधायक का टिकट
- शेखावाटी क्षेत्र की सीट होने के कारण प्रदेश अध्यक्ष गोविंद डोटासरा की साख भी दांव पर
- अलवर की रामगढ़ सीट कांग्रेस विधायक जुबेर खान के निधन के बाद खाली हुई
- पूर्व केंद्रीय मंत्री भंवर जितेंद्र सिंह, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली के लिए सीट बचाना बड़ी चुनौती
- दो सांसद भजनलाल जाटव व संजना जाटव को भी दी गई है रामगढ़ की अहम जिम्मेदारी
- ऐसे में चार बड़े कांग्रेसी नेताओं की अग्निपरीक्षा होगी रामगढ़ सीट पर
- खींवसर सीट पर पीसीसी अध्यक्ष गोविंद डोटासरा की साख दांव पर लगी है
- डोटासरा ने ही हनुमान बेनीवाल से गठबंधन करने से मना कर दिया था
- डोटासरा ने ही आखिर में खींवसर सीट के लिए कांग्रेस उम्मीदवार का चयन किया
- हालांकि नागौर विधायक हरेंद्र मिर्धा को भी जिम्मेदारी दी गई है इस सीट की
- चौरासी की आदिवासी बाहुल्य सीट पर कांग्रेस ने उतारा है बिलकुल नया चेहरा
- तारांचद भगौरा व गणेश घोघरा को दी गई है इस सीट की जिम्मेदारी
- सलूंबर सीट पर पूर्व मंत्री अशोक चांदना की सांख दांव पर लगी हुई है
- अर्जुन बामनिया व रघुवीर मीना का राजनीतिक भविष्य भी टिका है इस सीट से
प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का मानना है कि इन चुनाव में भाजपा एक भी सीट जीत सकेगी क्योंकि जनता मौजूदा सरकार पर भरोसा खो चुकी है.
वैसे तो किसी भी विधानसभा चुनाव में पार्टी के सभी बड़े की सामूहिक जिम्मेदारी होती है, लेकिन इन उपचुनाव की बात करे, तो कुछ नेताओं की टिकट वितरण में बड़ी भूमिका रही. झुंझुनूं, दौसा व देवली-उनियारा में तो कांग्रेस ने अपने सांसदों के कहने पर ही टिकट दी है. ऐसे में जीत की जिम्मेदारी भी उनकी ही बनती है. संयोग से ये तीनों ही सांसद सचिन पायलट ग्रुप के हैं. वहीं प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद डोटासरा की सभी सात सीटों में भूमिका मानी जाएगी, लेकिन तीन सीट पर उनकी भूमिका सबसे अहम थी. ये सीट है चौरासी, सलूंबर व खींवसर. डोटासरा की पहली पर ही कांग्रेस ने आरएलपी या बीएपपी से गठबंधन नहीं किया. रामगढ़ की टिकट भंवर जितेंद्र सिंह व टीकाराम जूली द्वारा तय की गइ्र है, ऐसे मे दारोमदार भी उन पर ही है. अशोक गहलोत ने हालांकि टिकट वितरण में ज्यादा रुचि नहीं ली, लेकिन माना जा रहा है कि झुंझुनू, दौसा, रामगढ़, देवली-उनियारा व खींवसर में उनकी भूमिका अहम होगी, क्योंकि इन सीटों पर माली समाज के वोट अच्छी खासी तादाद में है.