संयुक्त राष्ट्र/जिनेवा: चीन में करीब 10 लाख तिब्बती बच्चों को सरकारी बोर्डिंग स्कूलों में डालने की खबर के बाद संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार के मामलों से जुड़े विशेषज्ञों ने दमनकारी कार्रवाइयों के जरिए तिब्बती अस्तित्व को मिटाने और उन्हें जबरन बहुसंख्यक हान-चीनी समुदाय के साथ मिलाने की चीन की नीति को लेकर आगाह किया है. संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने कहा कि हम तिब्बती शैक्षिक, धार्मिक और भाषाई संस्थानों के खिलाफ दमनकारी कार्रवाइयों के जरिए तिब्बती अस्तित्व को बहुसंख्यक हान-चीनी समुदाय के साथ मिलाने की नीति से चिंतित हैं.
विशेषज्ञों ने कहा कि चीन की सरकार की आवासीय विद्यालय प्रणाली के माध्यम से तिब्बती लोगों की सांस्कृतिक, धार्मिक और भाषाई पहचान मिटाने पर केंद्रित नीति से तिब्बती अल्पसंख्यकों के करीब 10 लाख बच्चे प्रभावित हुए हैं. संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने सोमवार को एक बयान में कहा कि हम तिब्बती बच्चों के लिए आवासीय विद्यालय प्रणाली को लेकर चिंतित हैं, जो तिब्बतियों को बहुसंख्यक हान संस्कृति में शामिल करने के उद्देश्य से शुरू किया गया एक कार्यक्रम प्रतीत होता है, जो अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार मानकों के विपरीत है. विशेषज्ञों के इस दल में अल्पसंख्यक मुद्दों पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत फर्नांड डी वेरेन्स, शिक्षा के अधिकार पर विशेष दूत फरीदा शहीद और सांस्कृतिक अधिकारों के क्षेत्र में विशेष दूत एलेक्जेंड्रा जांथाकी शामिल हैं.
बयान के अनुसार, आवासीय विद्यालयों में शैक्षिक सामग्री और वातावरण बहुसंख्यक हान संस्कृति के अनुरूप है, जिसमें पाठ्यपुस्तक की सामग्री लगभग पूरी तरह से हान छात्रों के अनुभवों पर आधारित है. तिब्बती अल्पसंख्यक बच्चों को पारंपरिक या सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक शिक्षा देने के बजाए मन्दारिन चीनी (पटु घुआ भाषा) में ‘‘अनिवार्य शिक्षा’’ पाठ्यक्रम पढ़ने के लिए मजबूर किया जाता है. पटु घुआ भाषा के सरकारी स्कूल तिब्बती अल्पसंख्यकों की भाषा, इतिहास और संस्कृति की कोई खास पढ़ाई नहीं कराते. सोर्स- भाषा