जयपुर: कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद (Congress president election) के लिए अशोक गहलोत का नाम सबसे प्रमुख तौर पर उभरा है. लेकिन सवाल खड़े हैं कि क्या अशोक गहलोत (ashok gehlot) राजस्थान के मुख्यमंत्री के साथ-साथ कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद पर भी रहेंगे. खुद गहलोत ने एक बात एक व्यक्ति सिद्धांत को लेकर जो बातें कही है उसने अटकलों को जन्म दे दिया है लेकिन सवाल कई खड़े होते.
यह भी एक यक्ष प्रश्न है अशोक गहलोत दोनों पद के लिए आखिर किस तरह मुफीद है. कांग्रेस में नरेंद्र मोदी के फेस के सामने अगर कोई सबसे बड़ा विकल्प है तो वह अशोक गहलोत लेकिन गहलोत नहीं रहे राज्य के मुख्यमंत्री तो क्या सरकार पूरे पांच साल चल पाएगी ये सवाल भी सियासी गलियारों में कौंध रहा. आज देश में बीजेपी और उसके मातृ संगठन आरएसएस के खिलाफ तीखे प्रहार गहलोत ही करते है.
श्राद पक्ष समाप्त नहीं हुआ लेकिन राजस्थान में सियासी गतिविधियों में तेज हो गई है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुनाव में कांग्रेस को अंदर तक हिला दिया राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद का मुफीद उम्मीदवार माना जा रहा लेकिन गहलोत राजस्थान के मुख्यमंत्री पद पर रहेंगे या नहीं इसे लेकर संशय है. कारण साफ है राजस्थान में एक बार गहलोत सरकार गिराने को लेकर कांग्रेस के अंदर बगावत हो चुकी है ये भी सच है अगर गहलोत नहीं होते तो सरकार गिर चुकी होती. यही कारण है राजस्थान कांग्रेस के सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा है कि क्या गहलोत दोनों पदों पर रहेंगे या नही !
नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस के पास गहलोत से बड़ा फेस है नहीं:
लेकिन इससे पहले आपको ये बताना जरूरी है कि गहलोत ही कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए क्यों उपयुक्त. कई तथ्य है लेकिन उनमें सबसे अहम है पीएम नरेंद्र मोदी के सामने कांग्रेस के पास गहलोत से बड़ा फेस है नहीं. मोदी की तरह गहलोत देश की मूल ओबीसी के बड़े नेता. इतना ही नहीं दोनों की जातियों का संख्याबल उतना नहीं इसके बावजूद प्रशासनिक क्षमता, विचारधारा और कार्य कुशलता हट कर है. देश की कांग्रेस में गहलोत ही ऐसे नेता जो कांग्रेस के विचारों को अपने अंदाज में सामने रखते, कार्यकर्ताओं को विचारों की घुट्टी पिलाते है और गांधीवाद का संदेश देते है. जिस तरह नरेंद्र मोदी ने गुजरात सीएम रहते हुए जनहितकारी योजनाओं की झड़ी लगा दी थी. उसी तरह गहलोत ने तीन बार सीएम रहते हुए कल्याणकारी योजनाओं का पिटारा खोला. चिरंजीवी, OPS, बिजली में राज्य जैसी योजना लेकर आए पहले सीएम थे तब मुफ्त इलाज, दवा और पेंशन योजना चर्चा में रही.
-- गहलोत ही क्यों ! --
- आज पूरे देश में कांग्रेस के सबसे शक्तिशाली नेताओं में गिने जाते है अशोक गहलोत
- गहलोत हमेशा ही संघ की नीतियों पर निशाना साधते रहे
- हिंदी पट्टी के सबसे बड़े राज्य के सीएम
- राजस्थान में हुए विधानसभा उप चुनावों और राज्यसभा चुनावों में पार्टी को सफलता दिलाई
- कांग्रेस सरकार ने सत्ता में आते ही बीजेपी राज में बने शैक्षणिक पाठ्यक्रम को बदल दिया
- शैक्षणिक संस्थानों और विश्वविद्यालयों से संघ निष्ठ चेहरों की रवानगी कर दी गई
- गहलोत एक तरह से संघ व बीजेपी के लिये चुनौती है
- मूल ओबीसी नेता के तौर पर भी देशभर में चर्चित
- गहलोत अपने हर संबोधन में संघ को आड़े हाथ लेने से नहीं चूकते
- इन दिनों बीजेपी ने मूल ओबीसी पर विशेष फोकस कर रखा है
- बीजेपी ने राजस्थान और छत्तीसगढ़ की हिन्दी पट्टी को खोया है
- यह बीजेपी के लिये झटके के समान रहा था
- यही कारण है कि राजस्थान में एक बार कांग्रेस सरकार गिराने का प्रयास हो चुका
----कांग्रेस संगठन में अशोक गहलोत का अनुभव !---
- 2017 में एआईसीसी संगठन महासचिव की अहम जिम्मेदारी संभाली
- 2004 से 2008 के बीच एआईसीसी के महासचिव रहे
- कई राज्यों के प्रभारी का दायित्व गहलोत ने निभाया
- 1973 से 1979 के बीच एनएसयूआई के प्रदेश अध्यक्ष रहे
- 1979 से 1982 जोधपुर जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे
- 1982 में गहलोत बने कांग्रेस ( इंदिरा ) के पीसीसी महासचिव
- 3 बार पीसीसी के चीफ बने
- पहली बार 1985 से 1989, दूसरी बार 1994 से 1997, तीसरी बार 1997 से 1999 तक पीसीसी चीफ रहे
राजस्थान अशोक गहलोत सरकार के मुखिया है जिसे निर्दलीय विधायक और अन्य दल सपोर्ट कर रहे हैं. इसी सपोर्ट की बदौलत अशोक गहलोत ने राज्यसभा के चुनाव को जीता बीएसपी के 6 विधायकों को तोड़कर कांग्रेस में लाएं. उनके समर्थक कहते हैं कि 2 पदों पर है तो कांग्रेस के लिए अच्छी बात रहेगी. इससे राजस्थान में कांग्रेस को लाभ होगा.
अशोक गहलोत आज विराट सियासी शख्सियत:
राजस्थान के कांग्रेस राज के चेहरे अशोक गहलोत आज विराट सियासी शख्सियत है. इन्हें रोकना संघ और बीजेपी के लिये एक तरह की चुनौती है. क्योंकि गहलोत एक सियासी व्यक्ति नहीं है बल्कि एक विचार है जो कांग्रेस विचारधारा को पोषण देता है. अब सवाल उठता है कि गहलोत ही सीएम पद पर बरकरार क्यों रहे. इसके पीछे उनके समर्थक नेता तर्क दे रहे अगर गहलोत को सीएम पद से हटाया जाए तो..राज्य की कांग्रेस किस हक से उन फ्लैगशिप योजनाओं पर वोट मांगेगी,जो राजस्थान में अशोक गहलोत ने लागू की. चाहे वो चिरंजीवी योजना हो या फिर OPS बिजली बिलों में आम जन को राहत देने का काम किया गहलोत ने, ऐसी ही कुछ बड़ी योजनाएं जिन पर गहलोत की छाप है. अगर सीएम पद से देर सवेर हटते है तो विपक्षी दल के हाथ बड़ा मुद्दा आ जायेगा. भविष्य में सरकार गिरने का ख़तरा भी मंडरा सकता है!