लखनऊ: इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ ने एक कम्पनी के स्वतंत्र निदेशक की अग्रिम जमानत याचिका खारिज करते हुए कहा कि सामाजिक-आर्थिक अपराधों में लिप्त आरोपी आर्थिक तौर पर भी मजबूत होते हैं और जमानत अथवा अग्रिम जमानत मिल जाने पर उनके देश छोड़कर भागने का खतरा होता है तथा एक बार देश से भाग जाने पर उन्हें वापस लाना व आपराधिक प्रक्रिया का सामना कराना बड़ा मुश्किल हो जाता है.
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति चंद्रधारी सिंह की एकल पीठ ने पंकज ग्रोवर की अग्रिम जमानत याचिका को खारिज करते हुए की. याची पर एनआरएचएम (राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन) के कोष में घोटाले को लेकर धन शोधन रोकथाम कानून के तहत मामला दर्ज है. याची सर्जिकॉन मेडीक्विप प्राइवेट लिमिटेड में स्वतंत्र निदेशक है. ग्रोवर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आई बी सिंह ने तर्क दिया था कि तथ्यों से स्पष्ट होता है कि याची के खिलाफ धन शोधन रोकथाम कानून (पीएमएलए) के तहत प्रथम दृष्टया कोई मामला नहीं बनता है.
ऐसे मामलों में याची अग्रिम जमानत का हकदार नहीं:
याचिका का विरोध करते हुए सहायक सॉलिसिटर जनरल एस बी पांडे व विशेष अधिवक्ता एस पी सिंह का तर्क था कि याची के खिलाफ पर्याप्त साक्ष्य हैं और उसे गिरफ्तार करके मामले में शामिल अन्य लोगों के विषय में जानकारी प्राप्त करनी है अतः याची अग्रिम जमानत का हकदार नहीं है. अदालत ने याची को अग्रिम जमानत देने से इंकार करते हुए कहा कि इस तरह के अपराधी प्रभावशाली होते हैं, वे हमेशा ऐसी स्थिति में होते हैं कि विवेचना, साक्ष्य व गवाहों को प्रभावित कर सकें. सोर्स-भाषा