जयपुरः राजस्थान में लगातार कोल संकट मंडरा रहा है. माइनिंग में देरी के कारण से अक्टूबर तक संकट बने रहने की संभावना है, जिसको लेकर दिल्ली में मंथन लगातार जारी है. राजस्थान के संकट को दूर करने के लिए छत्तीसगढ़ में माइनिंग ही कोल संकट का एकमात्र स्थाई विकल्प है.
दरअसल PEKB के पहले फेज से कोयले की आपूर्ति पूरी हो चुकी है. सितम्बर 23 में PEKB से राजस्थान में अंतिम बार कोयला आया था. जबकि दूसरे फेज के लिए अधिकांश मंजूरी मिलने के बावजूद भी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. 1136 हेक्टेयर के PEKB दूसरे फेज से राजस्थान को बड़ी उम्मीद है. यहां से माइनिंग शुरू होने पर स्टेट को रोजाना 10 रैक कोयला मिलेगा. यहां पिछले दिनों की पेड़ कटाई का काम शुरू हुआ लेकिन उसे बीच में रोका गया.
हालांकि पेड़ कटाई के बाद भी ओवरबर्डन रिमूवल(OBR) में दो माह का समय लगेगा. लेकिन अगर पेड़ कटाई में देरी हुई तो बरसाती सीजन की शुरुआत से OBR अटक जाएगी. ऐसे में अगले अक्टूबर माह तक राजस्थान में कोयले के संकट की चिंता गहरा रही है.
राजस्थान विद्युत उत्पादन निगम के आंकड़ों पर नजर दौड़ाए तो कोटा थर्मल में 3 दिन, सूरतगढ़ थर्मल में कोयले में 1 दिन, छबड़ा थर्मल में 1 दिन, छबड़ा सुपर क्रिटिकल में 5 दिन, कालीसिंध थर्मल पावर प्रोजेक्ट में 4 दिन का कोयला बचा है. हालांकि सूरतगढ़ सुपर क्रिटिकल में 7 दिन का कोयला शेष रह गया है. लेकिन विदेशी कोयले को हटा दे तो यहां पर भी सिर्फ 4 दिन का कोयला ही शेष बचा है. सभी पावर प्लांट को फुल लोड पर चलाने के लिए हर दिन 23 रैक कोयले की दरकार है. जबकि अभी कोल इंडिया से औसतन 15 रैक ही कोयला मिल रहा है.