ई-रवन्ना घोटाला: चौमूं की फर्म ने राजस्थान को लगाया ₹20.92 करोड़ का चूना, IT जांच से हुआ बड़ा खुलासा, देखिए खास रिपोर्ट

जयपुरः खनन क्षेत्र में एक बार फिर बड़ा घोटाला सामने आया है. चौमूं स्थित एक निजी फर्म "मैसर्स बालाजी मिनरल्स" ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) के माध्यम से की गई राज्य खान विभाग की जांच में चार खनन पट्टों के जरिए राज्य सरकार को ₹20.92 करोड़ की चौंकाने वाली राजस्व हानि पहुंचाई है. यह खुलासा न केवल अवैध खनन के संगठित नेटवर्क को बेनकाब करता है, बल्कि ई-रवन्ना प्रणाली की तकनीकी खामियों और अधिकारियों की लापरवाही को भी उजागर करता है. 

खनन निदेशक दीपक तंवर के निर्देश पर खान विभाग के निदेशालय ने आईटी टूल्स और डेटा ऐनालिटिक्स की मदद से जब जयपुर जिले के चौमूं क्षेत्र में स्थित खनन पट्टा संख्या 112/1992 की जांच की, तो ई-रवन्ना प्रणाली में भारी गड़बड़ी का पता चला. मैसर्स बालाजी मिनरल्स ने ₹3.03 करोड़ की राजस्व हानि इस एक ही पट्टे से राज्य को पहुंचाई थी.इसके बाद विभाग ने उसी फर्म के तीन अन्य पट्टों—110/1992, 424/1997 और 39/1998—की जांच का निर्णय लिया. इन पट्टों के पिछले पांच वर्षों के डेटा की समीक्षा ई-वेब्रिज और ई-रवन्ना पोर्टल से की गई. नतीजे चौंकाने वाले थे: हर पट्टे से औसतन 1.34 लाख मीट्रिक टन से अधिक खनिज ई-रवन्ना के जरिए निर्गमित किए गए, जिनमें से 70-75% अवैध थे.

आंकड़ों में घोटाले की तस्वीर
पट्टा संख्या 110/1992: 7,671 ई-रवन्ना के जरिए 1.34 लाख मीट्रिक टन खनिज, ₹5.91 करोड़ की हानि

पट्टा संख्या 424/1997: 8,078 ई-रवन्ना, 1.36 लाख मीट्रिक टन खनिज, ₹5.98 करोड़ की हानि

पट्टा संख्या 39/1998: 7,942 ई-रवन्ना, 1.39 लाख मीट्रिक टन खनिज, ₹6.10 करोड़ की हानि

कुल हानि: ₹20.92 करोड़ 

तकनीक से हुआ पर्दाफाश
निदेशालय ने फर्म के पट्टों की KML फाइल बनाकर उन्हें गूगल अर्थ पर सुपरइम्पोज किया, जिससे यह स्पष्ट हुआ कि संबंधित खनन क्षेत्र में वास्तविक खनन बहुत कम हुआ था. ज्यादातर खनिज पट्टा क्षेत्र के बाहर से लाकर ई-रवन्ना प्रणाली में वैध दिखा दिए गए. यह संगठित रूप से की गई धोखाधड़ी का स्पष्ट संकेत था. निदेशालय ने इस गड़बड़ी को गंभीरता से लेते हुए तत्काल प्रभाव से फर्म के सभी खनन पट्टों को निरस्त करने, ₹20.92 करोड़ की वसूली चल-अचल संपत्तियों से करने और उच्च न्यायालय में कैविएट दायर करने के आदेश जारी किए हैं. साथ ही इस पूरे मामले में शामिल वेब्रिज ऑपरेटर और ई-आरसीसी ठेकेदार के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराने की प्रक्रिया शुरू की जा रही है. विभागीय प्रोग्रामर को निर्देशित किया गया है कि ई-सर्विस प्रोवाइडर कंपनी द्वारा बनाए गए कमजोर सॉफ्टवेयर की तकनीकी समीक्षा की जाए और जिम्मेदार कंपनी की भूमिका की गहन जांच हो.यह मामला स्पष्ट करता है कि कैसे एक संगठित गिरोह तकनीक का दुरुपयोग कर राज्य के संसाधनों को चूसने में सक्षम है. लेकिन इस बार खान विभाग द्वारा अपनाई गई डिजिटल जांच प्रणाली ने इस पूरे रैकेट को समय रहते उजागर कर दिया. अब देखने वाली बात यह होगी कि दोषियों पर कितनी तेजी और सख्ती से कार्रवाई होती है और क्या यह केस राज्य में अवैध खनन के खिलाफ एक स्थायी उदाहरण बन पाता है.