लोगों की अपेक्षाओं व आकांक्षाओं के प्रति जागरूक हों जनप्रतिनिधि- Jagdeep Dhankar

लोगों की अपेक्षाओं व आकांक्षाओं के प्रति जागरूक हों जनप्रतिनिधि- Jagdeep Dhankar

जयपुर: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद और विधानसभाओं की बैठकों में व्यवधान की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए बुधवार को कहा कि चुने हुए जनप्रतिनिधियों को लोगों की अपेक्षाओं के प्रति जागरूक होना चाहिए.

धनखड़ यहां देश की विधायी संस्थाओं के अध्यक्षों का सबसे बड़े समागम, अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारी सम्मेलन को संबोधित कर रहे थे. यह दो दिवसीय सम्मेलन राजस्थान विधानसभा में शुरू हुआ जिसका उद्घाटन उपराष्ट्रपति ने किया. अपने उद्घाटन भाषण में धनखड़ ने भारत को 'मदर ऑफ डेमोक्रेसी' (लोकतंत्र की जननी) बताया और जोर दिया कि लोकतंत्र का सार लोगों के जनादेश की व्यापकता और उनका कल्याण सुनिश्चित करने में निहित है.

हल करने के तरीकों पर विचार-विमर्श करेगा:
उपराष्ट्रपति ने संसद और विधानमंडलों की बैठकों में व्यवधान की बढ़ती घटनाओं पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रतिनिधियों से लोगों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं के प्रति सचेत रहने का आग्रह किया. उन्होंने आशा जतायी कि सम्मेलन इन मुद्दों को तत्काल हल करने के तरीकों पर विचार-विमर्श करेगा. संविधान में परिकल्पित राज्य के सभी अंगों के बीच सामंजस्यपूर्ण संबंधों की आवश्यकता पर जोर देते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि लोकतंत्र तब कायम रहता है और फलता-फूलता है जब विधायिका, न्यायपालिका और कार्यपालिका लोगों की आकांक्षाओं को साकार करने के लिए मिलकर काम करती हैं.

जीवन में सुखद और सकारात्मक बदलाव सुनिश्चित:
इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संदेश भी पढ़ा गया जिसमें उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र को सशक्त और समृद्ध करने में हमारे विधायी निकायों की भूमिका सराहनीय है. प्रधानमंत्री ने अपने संदेश में यह भी कहा कि समय के साथ बदलते विश्व के अनुरूप देश प्रगति की राह पर अग्रसर है. उन्होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में विधायिका के कामकाज में तकनीक के अधिकतम इस्तेमाल से लेकर अनेक अप्रासंगिक कानूनों को खत्म करने तक सरकार ने लगातार ऐसे कदम उठाए हैं जिनसे जनसामान्य के जीवन में सुखद और सकारात्मक बदलाव सुनिश्चित हो.

लोगों के घटते विश्वास पर चिंता जतायी:
अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के 83वें सम्मेलन के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता कर रहे लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विधायी निकायों में लोगों के घटते विश्वास पर चिंता जतायी. उन्होंने कहा, ‘‘जनता के मन में विधायिकाओं एवं जनप्रतिनिधियों के बारे में सवाल उठ रहे हैं. हमें इस प्रश्न चिन्ह को भी सुलझाना है और विधानमंडलों की छवि व उत्पादकता को और बेहतर बनाना है.’’ बिरला ने कहा कि विधानमंडलों में होने वाली चर्चा अधिक अनुशासित, सारगर्भित और गरिमामयी होनी चाहिए.

संतुलन के सिद्धांत का अनुपालन करे:
विधायिका और न्यायपालिका के बीच संबंधों पर बिरला ने कहा कि हमारे देश में विधानमंडलों ने न्यायपालिका की शक्तियों और अधिकारों का सदैव सम्मान किया है. इस सन्दर्भ में उन्होंने जोर देकर कहा की न्यायपालिका से भी यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने 'संवैधानिक जनादेश' का प्रयोग करते समय सभी संस्थाओं के बीच संविधान द्वारा प्रदत्त शक्तियों के पृथक्करण और संतुलन के सिद्धांत का अनुपालन करे.

दोनों अंगों का साथ काम करना जरूरी है:
उन्होंने कहा कि विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका- तीनों ही अपनी शक्तियां तथा क्षेत्राधिकार संविधान से प्राप्त करते हैं और तीनों को एक दूसरे का और क्षेत्राधिकार का ध्यान रखते हुए आपसी सामंजस्य, विश्वास और सौहार्द के साथ कार्य करना चाहिए. उन्होंने न्यायपालिका को संवैधानिक मर्यादा के भीतर रहने की सलाह दी. राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने अपने भाषण में कहा कि आजादी के 75 वर्षों में देश ने संसदीय लोकतंत्र को मजबूत किया है और कई अन्य देशों की तुलना में भारत ने संसदीय प्रणाली को दिशा प्रदान करने वाली प्रणाली को मजबूत किया है. उन्होंने न्यायपालिका और विधायिका के संबंधों का उल्लेख करते हुए कहा कि दोनों अंगों का साथ काम करना जरूरी है.

विशेष रूप से युवाओं का विश्वास कम न हो:
राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश ने विधानसभाओं में गुणवत्तापूर्ण बहस पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि हमारी विधायिकाएँ उत्तम कोटि के वाद-विवाद का मंच रही हैं और हमारी कोशिश होनी चाहिए कि हम उस परंपरा को बनाए रखें और उसे आगे बढ़ाएँ. हरिवंश ने कहा कि हमें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोकतांत्रिक संस्थानों पर लोगों का विश्वास, विशेष रूप से युवाओं का विश्वास कम न हो. इससे पहले अतिथियों का स्वागत करते हुए राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष डॉ सी. पी. जोशी ने कहा कि अमृत काल में लोकतंत्र के सभी अंगों में विधायिका का विशेष महत्व है. विधायी संस्थानों की वित्तीय स्वायत्तता के विषय पर डॉ जोशी ने कहा कि वित्तीय स्वायत्ता के अभाव में विधायिका अपने दायित्वों के निर्वहन में असक्षम रह जाती है.

न्यायपालिका के बीच संतुलन अत्यंत महत्वपूर्ण:
सूचना क्रांति के कारण आए बदलावों का उल्लेख करते हुए डॉ जोशी ने कहा कि विधायी नियमों और कानूनों की समीक्षा की विशेष आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि लोकतांत्रिक शासन के प्रभावी क्रियान्वयन हेतु विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका के बीच संतुलन अत्यंत महत्वपूर्ण है. इस अवसर पर लोकसभा सचिवालय द्वारा प्रकाशित संसद में राष्ट्रपति के संबोधन का अद्यतन संस्करण और राष्ट्रमण्डल संसदीय संघ (सीपीए) राजस्थान शाखा की स्मारिका "नए आयाम" का विमोचन किया गया. सोर्स-भाषा