जयपुर: चिकित्सा मंत्री परसादी लाल मीणा के गृहजिले दौसा में "सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र की आड़ के अंदर करोड़ों का "खेल" सामने आया है.अकेले चालू वित्तीय वर्ष की बात की जाए तो जिले में रेण्डम सैम्पल जांच में 80% से अधिक मरीजों के "सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र फर्जी दस्तावेजों के आधार पर बने मिले हैं.इन प्रमाण पत्र के आधार पर अनुदान के रूप में न सिर्फ करोड़ों रुपए का राजकोष को चुना लगा है, बल्कि पूरे सिस्टम की कार्यशैली भी सवालों के घेरे में है.
आखिर क्या है पूरा प्रकरण और चिकित्सा विभाग का एक्शन:
"सिलिकोसिस" यानी खतरे का दूसरा नाम.ये बीमारी उन लोगों में ज्यादा होती है,जो श्रमिक खदानों में लगातार काम करते है.सिलिका युक्त धूल में सांस लेने से फेफड़ों पूरी तरह से खराब हो जाते है."सिलिकोसिस" से पीड़ित श्रमिकों के प्रति संवेदनशीलता दिखाते हुए गहलोत सरकार ने सिलिकोसिस नीति 2019 लागू की थी, जिसमें मरीजों को आर्थिक सहायता देने का प्रावधान है.लेकिन इस नेक सोच का कुछ लोगों ने बड़ा फायदा उठाया शुरू कर दिया है,जिसकी बानगी दौसा जिले में सामने आए भष्टाचार में देखी गई.चिकित्सा विभाग की प्रथमदृष्टया जांच में सामने आया है कि महुआ समेत सभी जगहों पर जिन श्रमिकों का आवेदन बीमारी नहीं होने के कारण रिजेक्ट कर दिया गया, उनमें से 90 फीसदी से अधिक को अपील करने पर जिला स्तरीय बोर्ड ने प्रमाण पत्र जारी कर दिए.
यूं पकड़ में आया "खेल":
-एक प्रमाण पत्र के लिए एक लाख तक की रिश्वत !
-दौसा में "सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र जारी करने में बड़ा करप्शन
-सूत्रों के मुताबिक इस वित्तीय वर्ष में अब तक 6000 केस रजिस्टर्ड
-इसमें से अकेले दौसा जिले में रजिस्टर्ड किए गए 2800 के आसपास केस
-एक ही जिले में राजस्थान के 40 फीसदी से अधिक केस मिलने पर हुआ अंदेशा
-सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग की सजगता से खुला प्रकरण
-विभाग के सचिव डॉ समित शर्मा ने चिकित्सा विभाग को भेजा था पत्र
-पत्र के आधार पर सिर्फ महुआ में कराई जांच तो सामने आया फर्जीवाड़ा
-पूरे घटनाक्रम में महुआ जिला अस्पताल के प्रभारी चिकित्सा डॉ.दिनेश मीणा,
रेडियोलॉजिस्ट सुरेश कुमार सैनी, रेडियोग्राफर लोकेंद्र सिंह हो चुके है निलंबित
-लेकिन अब रेण्डम जांच में पूरे दौसा जिले के प्रमाण पत्रों पर ही खड़े हुए सवाल
-सूत्रों के मुताबिक एक गिरोह के रूप में किया गया प्रमाण पत्र बनवाने का काम
-गिरोह ने एक एक प्रमाण पत्र के एवज में लिए है एक से डेढ लाख रुपए
-खुद एसीएस मेडिकल शुभ्रा सिंह इस पूरे मामले में ले रही पल-पल की अपडेट
-सिंह ने कहा कि जिन-जिन की भी भूमिका आएंगे सामने, होगी सख्त कार्रवाई
जांच में 100 केस देखे, करीब 80 फीसदी में फर्जीवाड़ा!:
-दौसा में "सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र जारी करने में बड़ा करप्शन
-चिकित्सा विभाग की तरफ से गठित कमेटी की रिपोर्ट की बानगी
-हाईलेवल कमेटी में संयुक्त निदेशक जयपुर जोन डॉ अजय चौधरी,
-एसएमएस मेडिकल कॉलेज के रेडियोडाईग्नोसिस एचओडी सीपी स्वर्णकार,
-रेडियोडाईग्नोसिस के डॉ मुकेश मित्तल,सिलिकोसिस नोडल ऑफिसर डॉ विनोद गर्ग,
-राज्य सिलिकोसिस अनुभाग की सदस्य डॉ विजय लक्ष्मी,
-विशेष योग्यजन निदेशालय के सलाहकार डॉ पीके सिसोदिया को किया गया शामिल
-सूत्रों के मुताबिक तीन दिन की जांच में कमेटी ने कुल 100 मरीजों का देखा रिकॉर्ड
-इनमें से 80 फीसदी मरीजों के प्रमाण पत्र रिकॉर्ड में मिला बड़ा फर्जीवाड़ा
चिकित्सा विभाग की अतिरिक्त मुख्य सचिव शुभ्रा सिंह तक जैसे ही ये मामला पहुंचा तो उन्होंने तत्काल एक्शन लेते हुए कार्रवाई भी शुरू कर दी है.सिंह ने रेण्डम जांच में अनियमिताएं सामने आने की बात स्वीकारते हुए कहा है कि जिन लोगों ने गलत तथ्य पेश किए है, उनकी फिर से मेडिकल जांच करवाई जाएगी.इसमें गड़बड़ी मिलती है तो ऐसे लोगों पर भी नियमानुसार कार्रवाई करेंगे.
बीमारी पर तीन लाख, मौत पर दो लाख का अनुदान!:
-दौसा में "सिलिकोसिस" प्रमाण पत्र करप्शन से जुड़ी इनसाइड स्टोरी
-दरअसल, सिलिकोसिस नीति 2019 में किया हुआ है प्रावधान
-"सिलिकोसिस" बीमारी होने पर मरीजों को दिए जाते है 3 लाख रुपए
-इसके बाद यदि मरीज की होती है मौत,तो परिवार को दो लाख रुपए
-इसके साथ ही अंतिम संस्कार के लिए 10 हजार रुपए की सहायता
-"सिलिकोसिस" मरीज को 1000 से 1500 रुपए तक पेंशन का भी प्रावधान
-अनुदान का फायदा लेने के लिए कईयों से मिलीभगत करके बनवाएं प्रमाण पत्र
-एसीएस मेडिकल शुभ्रा सिंह ने माना कि जांच में सामने आई है अनियमिता
-जिन लोगों ने गलत तथ्य पेश करके बनाया प्रमाण पत्र और अनुदान लिया है
-उन सभी लोगों की फिर से करवाई जाएंगी मेडिकल जांच और एक्स-रे
-इसमें रिपोर्ट अलग मिलती है तो उन लोगों के खिलाफ भी होगी कार्रवाई
चुनाव से ठीक पहले सामने आए करोड़ों के इस खेल ने चिकित्सा महकमें में ऊपर से लेकर नीचे तक खलबली मचा दी है.क्योंकि मामला चिकित्सा मंत्री के गृह जिले से जुड़ा है, जिसमें कई स्थानीय लोगों की भूमिका से भी इनकार नहीं किया जा सकता है.हालांकि, प्रकरण की गंभीरता को देखते हुए दौसा जिले के मामलों में अब अनुदान की प्रक्रिया पर रोक लगाई गई है.लेकिन देखना ये होगा कि जिन लोगों ने भुगतान ले लिया है, उनसे विभाग कैसे वापस वसूली करता है और इस खेल में लिप्त अफसरों पर क्या सख्त एक्शन होता है.