जयपुर: बीसलपुर बांध क्षेत्र से बजरी निकालने पर एनजीटी की रोक के बाद परियोजना प्रस्तावक द्वारा बिना बजरी बेचान के परमिट के करोड़ों रुपए की बजरी बेचने का मामला सामने आया है. करीब डेढ़ महीने की अवधि में केकडी और भीलवाड़ा क्षेत्र से दस हजार से ज्यादा ट्रक बजरी बेचे जाने की सूचना है जिसकी कीमत करीब 28 करोड़ रुपए आंकी गई है. पूरे मामले में खान विभाग परियोजना प्रस्तावक पर कार्रवाई कर सकता है.
दरअसल बीसलपुर बांध की भंडारण क्षमता को सुधारने के लिए ईआरसीपीसीएल द्वारा 20 वर्ष के लिए बांध क्षेत्र से बजरी गाद निकालने के लिए डिसिल्टिंग व ड्रेजिंग का ठेका दिया गया था. परियोजना प्रस्तावक द्वारा 212 वर्ग किलोमीटर के इस प्रोजेक्ट के लिए अजमेर के केकड़ी क्षेत्र में जीतपुरा के पास मशीन लगाकर काम शुरू कर दिया गया था. रोजाना हजारों टन बजरी निकाली गई और स्टॉक किए गए. नियमानुसार इस बजरी को बेचने के लिए खनन निदेशालय में परियोजना प्रस्तावक ने परमिट के लिए आवेदन किया लेकिन अभी तक परमिट जारी नहीं किया है. बावजूद इसके प्रस्तावक द्वारा डेढ़ महीने की अवधि में यहां के बजरी स्टॉक से दस हजार से ज्यादा ट्रक बजरी बेचान की जानकारी मिल रही है.
इस बजरी की अनुमानित कीमत करीब 28 करोड़ रुपए बताई गई है. ध्यान रहे एनजीटी में शिकायत के बाद एनजीटी ने पिछले दिनों बीसलपुर बांध क्षेत्र से बिना पर्यावरण अनुमति प्राप्त किए डिसिल्टिंग व ड्रेजिंग पर रोक लगा दी है. साथ ही प्रदूषण नियंत्रण मंडल को निगरानी के आदेश दिए हैं. दरअसल यह प्रोजेक्ट शुरू से ही विवादों में रहा है. पहले तो बिना पर्यावरण अनुमति के यहां डिसिल्टिंग व ड्रेजिंग शुरू करने के आदेश ईआरसीपीसीएल द्वारा लजारी कर दिए गए और अब परियोजनना प्रस्तावक द्वारा खान विभाग से परमिट लि बिना बजरी बेचने के आरोप कई सवाल खड़े कर रहे हैं. आखिर हजारों टन बजरी को बेचने के मामले में खान विभाग ने आंखें कैसे मूंदी रखी ? जबकि इस क्षेत्र में खान विभाग के रॉयल्टी नाके भी हैं. सूचना के मिलने के बाद भी रॉयल्टी चोरी की गणना क्यों नहीं की जा रही ?
इसके अलावा खान विभाग के संबंधित अधिकारी बांध क्षेत्र से निकाली गई बजरी के स्टॉक को नियमित चेक भी नहीं कर रहे और स्टॉक वेरीफाई भी नहीं किया गया है. अजमेर और भीलवाड़ा के खान विभाग के अधिकारियों से बात करने पर उन्होंने स्टॉक चैक करवाने की बात कही है लेकिन बिना परमिट बजरी बेचान को लेकर वे भी कुछ भी कहने से कतराते रहे. अब सवाल उठता है बजरी बेचान से हुए रॉयल्टी के नुकसान की भरपाई आखिर कौन करेगा ?