जयपुर: अभी तक अपनी समृद्ध विरासत और रजवाड़ी आन बान और शान के लिए देश दुनिया में अपनी पहचान बनाने वाला राजस्थान अब पर्यटन की एक नई विधा को लेकर भी दुनिया भर में धूम मचा रहा है. जी हां गुलाबी नगर जयपुर वाकई अब गुलाबी ही नहीं रहा वरन इसकी आभा में सुनहरी चमक भी जुड़ है.यही कारण है कि राजधानी जयपुर अब सुनहरी चमड़ी के आकर्षक तेंदुओं की समृद्ध बस्ती के चलते 'लेपर्ड स्थान' के तौर पर भी पहचान बना रखी है. राजे-रजवाड़ों की धरती.. अपने आन बान और शान के लिए सरहद की रक्षा करते हुए शहादत देने वाले वीर सेनानियों की धरती.. जोहर करने वाली वीरांगनाओं की धरती.. प्रकृति संरक्षण का संदेश देने वाली अमृता देवी की धरती, सूर्यनगरी, स्वर्ण नगरी, गुलाबी नगरी, झीलों की नगरी, बाघों की नगरी, संगमरमर की नगरी जैसी अनेकों नगरियों को अपने आंचल में समेटने वाले इस मरुधरा की पावन धरा और उसकी राजधानी जयपुर देश दुनिया में अभी तक अपनी समृद्ध पुरा विरासत को लेकर लोकप्रिय रहा हो. लेकिन यह भी सत्य है कि गुलाबी नगर भी आधुनिकता की निर्मम सीढ़ियों को चढ़ने से खुदको नहीं रोक पाया.
यही कारण है कि राजधानी में आज 60 लाख से ज्यादा लोग रहने लगे हैं.ऐसे में लाखों वाहनों की चिल्ल पों, धूल, धुआं और बढ़ते शोर से राजधानी भी अछूती नहीं रही.ऐसे में बृहद आकार लेती गुलाबी नगरी को पर्यावरण के नुकसान से बचाने के लिए जरूरी था कि बेहतर नगरीय प्रबंधन के साथ ही प्रदूषण को कम करने के भी नैसर्गिक और तकनीक सम्मत उपाय किए जाएं.सूबे में सरकारें आई, योजनाएं बनी और अच्छे काम भी हुए. लेकिन राजधानी के गिरते भूजल स्तर को रोकने, पर्यावरण को स्वच्छ रखने और कार्बन उत्सर्जन को नियंत्रित रखने में जिसका सबसे बड़ा योगदान रहा है वह है गुलाबी नगरी के चारों ओर बसे हुए सघन जंगल.
दरअसल नाहरगढ़, गलता, झालाना, जामडोली और जमवारामगढ़ से लगता क्षेत्र इतना सघन है और इसमें हजारों की संख्या में वन्यजीव पल रहे हैं.यही कारण है कि यह सब गुलाबी नगर की ढाल बने हुए हैं.पर्यावरण को स्वच्छ रख रहे हैं.भूजल स्तर को गिरने से रोक रहे हैं.प्रदूषण को नियंत्रित किया हुआ है और कार्बन उत्सर्जन के नियंत्रण में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.इन्हीं सजजन जंगलों में गुलाबी नगर की शान को सुनहरी करने का जिम्मा उठा रखा है उन तेंदुओं ने जो देश दुनिया में गुलाबी नगर को अलहदा पहचान दे रहे हैं.जी हां अभी तक राजस्थान की बात करें या राजस्थान की राजधानी जयपुर की बात करें तो यहां के किले, महल, बावड़ियां, रजवाड़ी आन-बान-शान का प्रतीक रही हैं.हर 7 कोस पर बदलने वाले पगड़ी के रंग, पहनावे और खानपान ने हमारी विरासत को इतना समृद्ध किया है कि देश दुनिया से आने वाले पर्यटक बरबस ही राजस्थान के आकर्षण में खुद को बंधा हुआ पाते हैं.
दरअसल यहां यह चर्चा करना भी जरूरी है कि कोरोना के दौर में जब पूरी दुनिया खौफ के साए में जी रही थी और पर्यटन का ढांचा बुरी तरह चरमरा गया था उस दौर में भी राजस्थान एक मिसाल बनकर उभरा.मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नेतृत्व में इतना शानदार कोरोना प्रबंधन किया गया कि पूरी दुनिया ने हमारी मॉडल को अपनाया और खुद को कोरोना से सुरक्षित करने में सफलता प्राप्त की.पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह, पर्यटन विभाग की प्रमुख सचिव गायत्री राठौड़, पर्यटन निदेशक रश्मि शर्मा और पर्यटन उद्योग से जुड़े तमाम स्टेक होल्डर्स समन्वय से काम करते रहे हैं.पर्यटन को उद्योग का दर्जा देने और नई पर्यटन नीति लाने के बाद तो मानो राजस्थान के पर्यटन में चार चांद लग गए हों.इस बेहतर कोरोना प्रबंधन का ही परिणाम था कि राजस्थान की पहचान देश दुनिया में एक सुरक्षित प्रदेश के तौर पर बनी और 2022 में तो एक ऐसा रिकॉर्ड बना जिसका टूटना संभव नजर नहीं आता.
जी हां वर्ष 2022 में राजस्थान के अंदर 10 करोड़ 87 लाख पर्यटक आए जोकि पर्यटकों की आवक का सर्वकालीन रिकॉर्ड है.पर्यटकों की रिकॉर्ड आवश्यक के पीछे जिन सिटी वाइल्डलाइफ सफारीज ने अपने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई उनका जिक्र करना यहां बहुत जरूरी है.जयपुर दुनिया का एकमात्र ऐसा शहर है जहां पर झालाना और आमागढ़ के तौर पर दो लेपर्ड सफारी, नाहरगढ़ में लॉयन सफारी, कुंडा में हाथी सफारी चल रही है.इसी तरह जल्द ही नाहरगढ़ में एक और लेपर्ड सफारी और टाइगर सफारी भी इसी वर्ष शुरू कर दी जाएगी.इसका सीधा मतलब है कि दुनिया में जयपुर एकमात्र ऐसा शहर है.. जहां वन्यजीव न केवल स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं वरन पर्यावरण सुधार में भी अपना शानदार योगदान दे रहे हैं.
राजधानी जयपुर में करीब 80 से 100 लेपर्ड का विचरण है और झालाना लेपर्ड रिजर्व तो अपनी ऐसी पहचान बनाता जा रहा है कि यहां लेपर्ड की साइटिंग के अवसर 90 फ़ीसदी से ज्यादा हैं.बॉलीवुड सेलिब्रिटीज हों या खेल जगत के सितारे या फिर कॉरपोरेट जगत की हस्तियां.. सभी के लिए गुलाबी नगर की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत यहां के वन्यजीव, खान-पान, वेशभूषा और मेहमान को भगवान मानने की परंपरा पर्यटकों को बरबस ही यहां खींच लाती है.उम्मीद की जानी चाहिए कि हमारी सांस्कृतिक विरासत, हमारी धार्मिक मान्यताएं और वन्यजीवों के संरक्षण की विधा न केवल जयपुर बरन राजस्थान को दुनियाभर में नई पहचान दिलाएगी.