जयपुर: राजधानी जयपुर पिक सिटी होने के साथ ही अपरा काशी और छोटी काशी भी कहा जाता है. जयपुर के परकोटे में गोविंद देवजी बसते है तो बाबा ताड़कनाथ भी. यही के चांदी के टकसाल पर ऐतिहासिक महालक्ष्मी मंदिर स्थापित है. कहा जाता है कि 1100साल पहले ये मंदिर जयपुर के राज परिवार द्वारा स्थापित किया गया था.
गुलाबी शहर का इतिहास अपने आप में अनूठा है. यहां की समृद्धि, वास्तु शिल्प और इमारतों ने पूरी दुनिया को आकर्षित किया. यहां के वैभव के पीछे महालक्ष्मी का वो मंदिर है जिसकी पूजा महाराजा मानसिंह प्रथम किया करते थे. आज सालों से पूजा की ये परम्परा जयपुर के चांदी के टकसाल स्थित महालक्ष्मी मंदिर में निभाई जा रही. 11वीं शताब्दी में आमेर टकसाल के अंदर तांबे के सिक्के बनाए जाते थे. पहले आमेर राजधानी हुआ करती थी. तब महालक्ष्मी की मूर्ति आमेर की टकसाल में स्थापित थी. उल्लेखनीय है कि जयपुर की स्थापना से करीब 100 साल पहले चांदी की टकसाल बनाई गई थी साल 1727 मे जयपुर की स्थापना के बाद चांदी की टकसाल में मूर्ति को स्थापित किया गया.
महालक्ष्मी मंदिर इतिहास काफी प्राचीन और महत्वपूर्ण है, खासकर रियासत काल से इसका गहरा संबंध रहा है..मान्यता के अनुसार, टकसाल में सिक्के ढालने का काम शुरू करने से पहले और यहाँ तक कि सिक्कों को राजकोष में जमा करने से पहले पहला सिक्का माता महालक्ष्मी को चढ़ाया जाता था..मंदिर महंत के अनुसार, जयपुर के महाराज मानसिंह प्रथम हर दिन महालक्ष्मी की साधना के लिए आया करते थे..ऐसा बताया जाता है कि महाराजा मानसिंह मां लक्ष्मी से अपने राजकोष को सदैव भरे रहने की याचना किया करते थे. महालक्ष्मी की कृपा से राजकोष से जितना खजाना खर्च होता था, उसके दूसरे दिन ही वह खजाना फिर से भर जाता था.
रियासत काल में माता महालक्ष्मी के इस मंदिर में सुबह-शाम आरती और पूजा के बाद ही चांदी के सिक्के और सोने की मोहरें बनाने का काम शुरू किया जाता था. पहले यहाँ राजपूत राइफल्स मिलिट्री का पहरा रहता था और चांदी के सिक्के, सोने की मोहरें माता को चढ़ाकर इसी कैंपस में सुरंग से राजकोष में जमा कराए जाते थे.
-महालक्ष्मी विग्रह की विशेषता--
यह प्रतिमा कमल के फूल पर विराजित है
-कहा जाता है कि इसमें तीनों लोकों – धरती, पाताल और स्वर्ग के दर्शन होते हैं..
- इसमें विष्णुमंडप, समुद्र से निकलती हुई लक्ष्मी माता, गजलक्ष्मी, पाताललोक, गुफा और शेषनाग आदि के दर्शन होते हैं
--- विग्रह के ऊपर स्वर्ग लोक है ---
इसमें राजा इंद्र अपनी इंद्राणी के साथ और दो ऐरावत हाथी के साथ स्वर्ग से मां लक्ष्मी पर पुष्प वर्षा करते हुए दिखाई दे रहे हैं.
-मंदिर महंत पंडित राजेंद्र कुमार शर्मा ने बताया- यह विग्रह
-वास्तु के हिसाब से स्थापित किया गया
-चांदी की टकसाल को भी वास्तु के हिसाब से ही स्थापित किया गया था
-वास्तु शास्त्र के अनुसार भंडार या लक्ष्मी का स्थान ईशान कोण में होता है
-इसलिए जयपुर परकोटे के ईशान कोण मे इस मंदिर की स्थापना हुई थी
कुछ साल पहले तक यहा आम आदमी के दर्शन लिए केवल दीपावली के दिन खोले जाते थे. साल 2022 के बाद से दर्शन के लिए आम आदमी के लिए प्रतिदिन खोला गया. दीपावली के पर्व पर यहाँ विशेष पूजा-अर्चना होती है और चांदी के सिक्के चढ़ाए जाते हैं.