जैसलमेर: महाशिवरात्रि पर जिले के अनेकों शिव मंदिरों में पूजा अर्चना हो रही है. मगर जैसलमेर से 16 किलोमीटर दूर लोद्रवा गांव में एक ऐसा प्राचीन शिव मंदिर है जहां सदियों से पूजा-अर्चना नहीं होती. कहते हैं मोहम्मद गौरी जब भारत आया तब वो इसी रास्ते से आया था और उसने इस मंदिर की मूर्ति को खंडित कर दिया था.
हिन्दू मान्यता के अनुसार खंडित मूर्ति की पूजा नहीं होती है इसलिए आज भी यहां बिराजे शिव भगवान अपने भक्तों का इंतजार कर रहे हैं. हालांकि गांव के लोग मंदिर में जाते हैं तथा शिवजी के आगे दीया धूप करते हैं, मगर विधिवत पूजा अर्चना आज भी यहां नहीं होती.
जैसलमेर में भाटी वंश का राज रहा है. मगर भाटी वंश से पहले जैसलमेर में परमार वंश का शासन था. कहते हैं परमार वंश शिव के उपासक थे. जैसलमेर में कई जगहों पर शिव के मंदिर बनवाए लेकिन समय समय पर बाहरी आक्रमणकारियों ने मंदिरों को तोड़ा. मोहम्मद गौरी जब भी भारत आता तब वो रास्ते में आने वाले सभी मंदिरों को तोड़ता जाता था. ग्रामीण बताते हैं कि जैसलमेर में जब महारावल जैसल का राज था. उस समय साल 1178 में मोहम्मद गौरी ने आक्रमण किया था.
इसके बाद लौद्रवा सूना हो गया:
उसने उस दौरान कई मंदिरों को जमींदोज किया था. इसमें लौद्रवा का ये शिव मंदिर भी शामिल था. इसके बाद लौद्रवा सूना हो गया. लोद्रवा गांव के जालम सिंह ने बताया कि गांव के पास मूमल की मेडी है. इसके पास ही पुराना शिव का मंदिर है. इस मंदिर में चतुर्मुखी शिवलिंग है जिस पर भगवान शिव का चेहरा उकेरा हुआ है. प्रतिमा खंडित होने से यहां पूजा पाठ नहीं किए जाते हैं, लेकिन शिवरात्रि के दिन गांव के लोग यहां आकर भजन कीर्तन करते हैं. मूर्ति के आगे दीया जलाते हैं.