जयपुर: पिछले दो दिनों में राजस्थान की जाट पॉलिटिक्स अपने चरम पर नजर आ रही है. लालचंद कटारिया और रिछपाल मिर्धा जैसे दिग्गज कांग्रेस छोड़ बीजेपी का दामन थाम चुके हैं तो वही आज चूरू सांसद राहुल कसवां ने बीजेपी को त्याग कर कांग्रेस के हाथ से हाथ मिला लिया. अब राहुल कसवां चूरु से कांग्रेस टिकट पर चुनावी समर में उतरेंगे. बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही दलों की निगाहें राजस्थान के तकरीबन 18% जाट मतदाताओं पर टिक गई है,जो 25 में से 21 लोकसभा सीटों को प्रभावित करते है.
राजस्थान की किसान कौम के बीच चुनावी बयार बह रही. पिछले 48घंटों में जाट राजनीति ने अलग अलग करवट ली. कांग्रेस से जुड़े परंपरागत कद्दावर जाट परिवार के नेता बीजेपी का दामन थाम चुके तो वहीं भारतीय जनता पार्टी से जुड़े परंपरागत कसवां परिवार ने कांग्रेस का रुख कर लिया. चूरु से बीजेपी सांसद राहुल कसवां ने बीजेपी को छोड़कर कांग्रेस के हाथ से हाथ मिला लिया. राहुल कसवां अब चूरू से कांग्रेस के टिकट पर मुकाबले में होंगे. लाल चंद कटारिया, रिछपाल मिर्धा और आलोक बेनीवाल जैसे प्रमुख जाट चेहरों की कांग्रेस से विदाई के बाद राहुल कसवां का कांग्रेस में आना फौरी चुनावी और सियासी राहत से कम नही. अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने राहुल कसवां को कांग्रेस की सदस्यता दिलाई.
तमाम घटनाक्रम से साफ है कि राजस्थान में सत्ताधारी दल बीजेपी और विरोधी दल कांग्रेस दोनों ही दलों की निगाहें राजस्थान के तकरीबन 18% जाट मतदाताओं पर टिक गई है,जो 25 में से 21 लोकसभा सीटों को प्रभावित करते है. पिछले लोकसभा चुनाव की बात करें तो राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी ने जाट समाज के चेहरों को टिकट देने में कोई कंजूसी नहीं बरती थी. भारतीय जनता पार्टी ने छह लोकसभा सीटों पर जाट चेहरे उततारे तो कांग्रेस ने पांच लोकसभा सीटों पर.
---2019 लोकसभा चुनाव में जाट वर्ग से आने उम्मीदवार--
बीजेपी के जाट चेहरे
बाड़मेर से कैलाश चौधरी
अजमेर भागीरथ चौधरी
चूरु से राहुल कसवां
झालावाड़ से दुष्यंत सिंह
झुंझुनूं से नरेंद्र मंडावा
सीकर से सुमेधानंद
कांग्रेस के जाट चेहरे
सीकर से सुभाष महरिया
झुंझुनूं से श्रवण कुमार
जयपुर ग्रामीण से कृष्णा पूनिया
पाली से बद्री जाखड़
नागौर से ज्योति मिर्धा
RLP के हनुमान बेनीवाल ने बीजेपी से गठबंधन के तहत नागौर से चुनाव लड़ा बीजेपी के सभी जाट चेहरों ने लोकसभा चुनाव जीता और कांग्रेस के सभी चेहरे हारे पीएम मोदी ने बाड़मेर सांसद कैलाश चौधरी को केंद्र में मंत्री बनाया.
जाट वर्ग की सियासत के मद्देनजर भजन लाल शर्मा ने अपने मंत्रिपरिषद में सुमित गोदारा, कन्हैया लाल चौधरी , झाबर सिंह खर्रा और विजय सिंह चौधरी को मंत्री बनाया.
राजस्थान की राजनीति किसान आधारित रही है. लोकसभा की तकरीबन 21 और 200 विधानसभा सीटों में से तकरीबन सवा सौ सीटें ऐसी मानी जाती है जहां हार और जीत का फैसला किसान करते है. गहलोत सीएम बने तो उन्होने किसान कर्ज माफी की घोषणा की थी, भजन लाल शर्मा ने सीएम बनने के बाद किसान के लिए सबसे जरूरी सिंचाई और बिजली पर फोकस किया. ERCP और यमुना जल समझौता भजनलाल सरकार की ही देन है.
-- ERCP और यमुना जल समझौता बीजेपी का चुनावी कार्ड--
- सीएम भजन लाल शर्मा ने कम समय में किसान कौम को साधने के लिए दो बड़े काम किए ERCP और यमुना जल समझौता
अगर इन दोनों महत्वपूर्ण जल समझौतों कि अगर बात करें तो ये सीधे तौर पर जाट बहुल लोकसभा सीटों भरतपुर, धौलपुर,टोंक सवाई माधोपुर,झुंझुनूं,सीकर,जयपुर ग्रामीण,चूरु,अलवर,नागौर,बीकानेर को प्रभावित करेंगे.
1940 से 1950 के दशक के बीच जमींदारी और सामंती प्रथा के खिलाफ राजस्थान में किसान आंदोलन का बिगुल बज गया था. मारवाड़ से लेकर शेखावाटी तक हर ओर सामंती-जागीरदारी प्रथा के खिलाफ किसान आंदोलन ने हिंलौरे लेना शुरु कर दिया था. देश को आजादी मिली तो आंदोलन को और धार मिल गई. उस समय देश की सबसे बडी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस का भी आंदोलन के प्रति समर्थन आ गया. आगे चलकर 1952 के चुनावों मे किसान आंदोलन के प्रणेता कांग्रेस के साथ खड़े हो गये तो राजे-रजवाड़ो से निकले नेताओं ने अलग पार्टी का गठन कर लिया. किसान नेता आगे चलकर कांग्रेस पार्टी की बैक बॉन साबित हुये. इनमें सबसे प्रखर नाम रहा चौधरी बलदेव राम मिर्धा का किसान आंदोलन को ख्याति दिलाने में बलदेव राम मिर्धा का योगदान रहा. सरदार हरलाल सिंह,नाथूराम मिर्धा, रामनिवास मिर्धा,कुंभाराम आर्य, दौलतराम सारण, परसराम मदेरणा,शीशराम ओला, राजा बृजेंद्र सिंह भरतपुर, रामनारायण चौधरी, रामदेव सिंह महरिया,नारायण सिंह, गंगाराम चौधरी, डॉ हरी सिंह, कुंवर नटवर सिंह , गोपाल सिंह खंडेला,लक्ष्मी नारायण किसान, आत्मा राम चौधरी, शिवनाथ सिंह गिल, भीमसेन चौधरी, यदुनाथ सिंह , मनफूल सिंह भादू, लक्ष्मी नारायण चौधरी,
सरीखे दिग्गज नेताओं ने किसानों के बीच सामाजिक , शैक्षिक औऱ राजनीतिक चेतना की अलख जगाई. इनमें से अधिकांश नेताओं का कांग्रेस पार्टी से जुड़ाव रहा. तब हरियाणा के किसान नेता सर छोटूराम के विचारों का राजस्थान की किसान राजनीति पर असर दिखता था. सियासत में किसान नेताओं ने कांग्रेस को भी परवान चढाने का काम किया भले ही क्षेत्र कोई भी रहा. किसान नेता मिर्धा परिवार का सियासी गढ़ नागौर रहा. शेखावाटी में कुम्भा राम आर्य,दौलत राम सारण और शीशराम ओला का सियासत में प्रभाव रहा. झुंझुनूं के गुढा गौड़जी के गिलों की ढाणी की झौंपड़ी में रहने वाले शिवनाथ सिंह गिल ने बिरला परिवार को चुनाव हराकर यह जत्ता दिया था कि क्यों राजस्थान को किसान पॉलिटिक्स का केन्द्र कहा जाता है. देश के प्रखर किसान नेता औऱ पूर्व उपप्रधानमंत्री चौधरी देवीलाल ने हरियाणा से आकर शेखावाटी की धरती से चुनाव लड़ा. बलराम जाखड़ भी यहां चुनाव लडने के लिये आये थे. राजस्थान की सियासत में किसान हमेशा से ही पॉवर सेंटर रहे है. बीजेपी ने 1980 में अपने जन्म के बाद से ही खुद पर राजे रजवाड़ों की छाप हटाने के लिए किसान कौम पर फोकस किया, कांग्रेस, जनता दल, लोकदल और इनेलो के नेताओं को अपने दल में शामिल करना शुरु कर दिया , बीजेपी में समय समय पर जाट नेताओं को अन्य दलों से लाने में भैरों सिंह शेखावत और बाद में वसुंधरा राजे ने सफलता अर्जित की ताजा सियासी हालात में नए सियासी मूवमेंट के तहत किसान कौम के नेताओं को बीजेपी से जोड़ने की रणनीति के अगुवा बने हुए है.