19 मई को होगा ज्येष्ठ अमावस्या, शनि जयंती और वट सावित्री व्रत, जानिए शुभ संयोग, मुहूर्त और पूजा विधि

जयपुर: वैदिक पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ मास का शुभारंभ हो चुका है. इस पवित्र महीने में व्रत, त्योहार और तिथियों का विशेष महत्व है. ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि के दिन 'ज्येष्ठ अमावस्या' व्रत रखा जाएगा. इस दिन दो अन्य प्रमुख त्योहार भी मनाए जाएंगे, जिस वजह से इस दिन का महत्व और अधिक बढ़ जाता है. ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत और शनि जयंती मनाया जाएगा. 

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि ज्येष्ठ अमावस्या, वट सावित्री व्रत और शनि जयंती 19 मई 2023 को मनाई जाएगी. इस विशेष दिन सुहागिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए वट वृक्ष की पूजा करती है और उपवास रखती हैं. साथ ही इस विशेष दिन पर शनि देव, भगवान विष्णु और भगवान शिव की उपासना करने से सुख-समृद्धि और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है. इस बार वट सावित्री व्रत और अमावस्या का खास संयोग बन रहा है. वट सावित्री व्रत 19 मई को है. ज्येष्ठ मास में पड़ने वाले सारे व्रतों में वट सावित्री व्रत को बहुत प्रभावी माना जाता है. जिसमें सौभाग्यवती महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र और सभी प्रकार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं.

ज्योतिषाचार्य डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिंदू धर्म में अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है. साल में 12 अमावस्या होती हैं, इनमें से कुछ अमावस्या को विशेष माना गया है. ज्येष्ठ अमावस्या महत्वपूर्ण मानी जाती है. इसी दिन पति की लंबी उम्र के लिए सुहागिनें वट सावित्री का व्रत करती हैं. ज्‍येष्‍ठ महीने की इस अमावस्‍या पर तीन महत्वपूर्ण पर्व पड़ते हैं. इस दिन शनि जयंती भी पड़ती है और महिलाएं वट सावित्री व्रत रखती हैं. ज्‍येष्‍ठ अमावस्‍या के दिन प्रात: सुबह उठकर स्नान करना, व्रत और वट वृक्ष की पूजा करना लाभदायक होता है. इस साल ज्‍येष्‍ठ अमावस्‍या 19 मई को पड़ रही है. यानी इस दिन वट सावित्री व्रत रखा जाएगा और शनि जयंती भी मनाई जाएगी. शास्त्रों के अनुसार ऐसा करने से पितरों का आशीर्वाद मिलता है. इसके अलावा शनि देव, भगवान विष्णु और भगवान शंकर की भी कृपा होती है. शास्त्रों में बताया गया है कि इस दिन स्नान-दान करने से व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है और जीवन में आ रही समस्याएं दूर हो जाती हैं. वहीं ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि का विशेष महत्व है.

तिथि:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि हिन्दू पंचांग के अनुसार, ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि की शुरुआत 18 मई को रात्रि 09:42 मिनट पर होगी और इस तिथि का समापन 19 मई को रात्रि 09:22 मिनट पर हो जाएगा. ऐसे में ज्येष्ठ अमावस्या, वट सावित्री व्रत और शनि जयंती 19 मई 2023 को मनाई जाएगी.

शुभ मुहूर्त: 
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि वैदिक पंचांग में बताया गया है कि ज्येष्ठ अमावस्या के दिन शोभन योग का निर्माण हो रहा है जो 08:17 मिनट तक रहेगा. इसके साथ स्नान मुहूर्त सुबह 05 बजे से सुबह 05:15 मिनट तक रहेगा. वहीं वट सावित्री व्रत पूजा सुबह 05:43 मिनट से सुबह 08:58 मिनट के बीच की जाएगी. साथ ही शनि देव की पूजा शाम 06:42 मिनट से रात्रि 07:03 मिनट के बीच करने से विशेष फल की प्राप्ति होगी.

जरूर करें ये काम:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि ज्‍येष्‍ठ अमावस्‍या के दिन पवित्र नदी, जलाशय या कुंड में स्नान करें और सूर्य देव को अर्घ्य दें और बहते जल में काले तिल प्रवाहित करें. ऐसा करने से कई कष्‍टों से मुक्ति मिलती है. ज्‍येष्‍ठ अमावस्या के दिन पितरों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान करें और गरीबों को दान-दक्षिणा दें. इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु के लिए व्रत रखती और सुहागिनों को यम देवता की पूजा करनी चाहिए. सुहाग की चीजें बांटनी चाहिए.  ज्‍येष्‍ठ अमावस्‍या के दिन शनि देव का जन्‍म हुआ था. शनि जयंती के शनि देव को सरसों का तेल, काले तिल, काले कपड़े और नीले पुष्प चढ़ाएं. इसके साथ ही शनि चालीसा का जाप करें.

महत्व: 
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि शास्त्रों में बताया गया है कि ज्येष्ठ मास में स्नान-दान का विशेष महत्व है. इस विशेष दिन पर पितरों को तर्पण प्रदान करने से उनकी आत्मा तृप्त हो जाती है. साथ ही इस दिन जल का दान करने से व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है. इस विशेष दिन पर शनि देव की उपासना करने से शनि दोष से मुक्ति प्राप्त हो जाती है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठ अमावस्या पर शनि देव का जन्म हुआ था, इसलिए ज्येष्ठ अमावस्या का धार्मिक महत्व और भी बढ़ जाता है. वैदिक ज्योतिष में शनि देव सेवा और कर्म के कारक हैं, अतः इस दिन उनकी कृपा पाने के लिए विशेष पूजा-अर्चना की जाती है. शनि देव न्याय के देवता हैं उन्हें दण्डाधिकारी और कलियुग का न्यायाधीश कहा गया है. शनि शत्रु नहीं बल्कि संसार के सभी जीवों को उनके कर्मों का फल प्रदान करते हैं.

शनि जन्म कथा:
कुण्डली विश्ल़ेषक डा. अनीष व्यास ने बताया कि शनि देव के जन्म से संबंधित एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है. इस कथा के अनुसार शनि, सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया के पुत्र हैं. सूर्य देव का विवाह संज्ञा से हुआ था और उन्हें मनु, यम और यमुना के रूप में तीन संतानों की प्राप्ति हुई. विवाह के बाद कुछ वर्षों तक संज्ञा सूर्य देव के साथ रहीं लेकिन अधिक समय तक सूर्य देव के तेज को सहन नहीं कर पाईं. इसलिए उन्होंने अपनी छाया को सूर्य देव की सेवा में छोड़ दिया और कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ. हालांकि सूर्य देव को जब यह पता चला कि छाया असल में संज्ञा नहीं है तो वे क्रोधित हो उठे और उन्होंने शनि देव को अपना पुत्र मानने से इनकार कर दिया. इसके बाद से ही शनि और सूर्य पिता-पुत्र होने के बावजूद एक-दूसरे के प्रति बैर भाव रखने लगे.

वट सावित्री व्रत:
भविष्यवक्ता डा. अनीष व्यास ने बताया कि यह सौभाग्यवती स्त्रियों का प्रमुख पर्व है, हालांकि इस व्रत को कुमारी और विधवा महिलाएँ भी कर सकती हैं. इस व्रत का पूजन ज्येष्ठ अमावस्या को किया जाता है. इस दिन महिलाएँ वट यानि बरगद के वृक्ष का पूजन होता है. यह व्रत स्त्रियां अखंड सौभाग्यवती रहने की मंगल कामना के साथ करती हैं. इस दिन सत्यवान-सावित्री की यमराज के साथ पूजा की जाती है.